-दीपक रंजन दस
बारिश की ठंडी फुहारों के बीच चाय, पकौड़े के साथ एक और चीज आनंद देती है, वह है बतोलेबाजी. कुछ लोगों के यहां टीवी दिन-रात एक ही चैनल पर फिक्स रहते हैं. एक टोपी वाला, एक दाढ़ी वाला और एक चश्मा वाला एक होशियार के साथ वहां जमे होते हैं. जैसे ही कोई चीखने चिल्लाने लगता है, उसका माइक बंद कर दिया जाता है. ऑनलाइन होने वाले कार्यक्रमों में यह बेहद आसान भी है. इन बहसों से लोगों की राजनीतिक चेतना जागे या न जागे, उनका मनोरंजन खूब होता है. छत्तीसगढ़ में भी अब चुनावी बिसात बिछने लगी है. हर दूसरे दिन एक से बढ़कर एक नए प्रयोग देखने को मिल रहे हैं. इसमें साहित्य का तड़का भी लग रहा है. ईडी की छापों को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि भ्रष्टाचार का अंतरराष्ट्रीय पितामह ईडी का प्रवक्ता बना घूम रहा है. नान की डायरी में नागपुर से लखनऊ तक का जि़क्र है. वो किस स्वाइप मशीन से हस्तांतरित हुए थे, प्रदेश की जनता जानना चाह रही है. पूर्व मुख्यमंत्री को भाजपा के मार्गदर्शक मंडल की वाइल्ड कार्ड एंट्री बताते हुए उन्होंने कहा, ‘पनामा खाते में दर्ज है जिनका नाम वो फिर करने लगे छत्तीसगढ़ को बदनाम’. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री भी नए अंदाज में नजर आए. उन्होंने कहा कि ‘चार्जशीटेड मुखिया’ दिल्ली का एटीएम बन गए हैं. सीएम का मतलब जो ‘कलेक्टिंग माफिया’ समझ रहे हैं. छत्तीसगढ़वासियों की मेहनत का पैसा लूटने नहीं देंगे. उन्होंने एक कविता भी पढ़ी – ‘कोयले से भी काला है जिसका दामन, जनता दहन करेगी वो भ्रष्टाचार का रावण.’ पहले जहां इस तरह के फिकरों का इस्तेमाल रैली-सभा में किया जाता था, वहीं अब यह काम बेहद आसान हो गया है. अब चहकने वाले ऐप ‘ट्विटर’ पर चंद लाइनें लिख देने भर से काम चल जाता है. दिन हो या रात, नेता जब चाहे इसमें ‘चहक’ सकता है. कुछ नेताओं ने तो अपना ट्विटर हैंडल एक्सपट्र्स को सौंप रखा है. एक्सपट्र्स की टीम खबरों और बयानों पर लगातार नजर बनाए रहते हैं. इस टीम में ऐसे लोग भी होते हैं जो डायलॉग लिखने में कादर खान को मात कर दें. यह सब पालीटिकल माइंडगेम का हिस्सा है. जो नेता सिर्फ कहते हैं और सुनने की हिम्मत नहीं रखते, वे डिप्रेशन में चले जाते हैं. उनके चेहरे पर चिंता और आक्रोश की मिली जुली रेखाएं नाचने लगती हैं. जो माइंड गेम खेलने के एक्सपर्ट होते हैं, उन्हें इन बयानों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो चुपचाप अपना काम करते रहते हैं. खुद भी इन बयानबाजियों का लुत्फ उठाते हैं. बतरस से मतदाता का ज्ञान भी बढ़ता है. भूले बिसरे गीत –प्रसंगों की यादें ताजा हो जाती हैं. पुराणों में नरक लोक की नदी ‘वैतरणी’ को गाय की पूंछ पकड़कर पार करने का उल्लेख है. इसके बाद मोक्ष मिल जाता है. चुनावी वैतरणी पार कराने में माइंड गेम की भूमिका भी गाय की पूंछ वाली ही है. जरा संभल के…
गुस्ताखी माफ़: आनंद लें, सीजन आ रहा है बतरस का
