-दीपक रंजन दास
अफवाह उड़ाना इंसान की फितरत का हिस्सा है. सदियों से वह ऐसा करता आ रहा है. संचार साधनों के अभाव के युग में अफवाह कमोबेश उसके नियंत्रण में हुआ करती थी. पर अब संचार के साधनों ने अफवाहों को भी पंख लगा दिए हैं. अफवाह चंद मिनटों में पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौट आती है. कुछ लोग इन्हें इतना पुष्ट कर देते हैं कि स्वयं अफवाह फैलाने वाला भी झांसे में आ जाता है. अफवाहों से कई बड़े-बड़े कार्य किये जा सकते हैं. इसलिए अब अफवाह गढऩे के भी विशेषज्ञ होने लगे हैं. वे सबूत भी जुगाड़ देते हैं. जरूरत पडऩे पर फर्जी तस्वीरें और फेक वीडियो का भी इंतजाम कर देते हैं. पिछले एक डेढ़ दशक से इनका अच्छा खासा इस्तेमाल भी हो रहा है. पर अब अफवाह फैलाने की यह बीमारी लोगों के जान-माल को नुकसान पहुंचाने लगी है. हालिया घटनाएं बच्चा चोरी से जुड़ी हैं. पिछले कुछ समय से रह-रहकर इससे जुड़ी खबरें आ रही हैं. कहीं कोई महिला गिरफ्तार हो रही है तो कहीं कोई साधु पिट रहा है. बनाने वालों ने सरकार की तरफ से एक विज्ञापन भी जारी कर दिया. रायपुर की घटना तो इसकी इंतेहा ही थी. 10-12 बच्चों के साथ एक महिला को देखकर युवकों ने उसे पकड़ लिया. उन्होंने यह भी तय कर लिया कि चूंकि बच्चों का चेहरा मोहरा औरत से नहीं मिलता, इसलिए जरूर उसने बच्चों को चुराया होगा. बहरहाल पुलिस ने आकर शांति से पूछताछ की और मामला वहीं का वहीं सुलझ गया. वह एक सामाजिक कार्यकर्ता थी तो इन बच्चों को कपड़े दिलाने के लिए माना से लेकर रायपुर आई थी. अब वो महिलाएं भी सावधान रहें जिनका चेहरा अपनी कोख जाए बच्चे से मेल नहीं खाता. लगे तो मेकअप-शेकअप से भी परहेज करें. सोशल पुलिस को कभी भी उसपर शक हो सकता है और मुसीबत खड़ी हो सकती है. बहरहाल, मजाक एक तरफ रखकर इस नए झमेले की गंभीरता को समझने की कोशिश करते हैं. अफवाह फैलाने वालों के हत्थे चढऩे के बाद कई बूचड़ों ने अपना धंधा ही छोड़ दिया. ये विशेषज्ञ रास्ते पर खड़े-खड़े केवल गंध सूंघकर बता देते हैं कि ट्रक या टाटा 407 में किसका मांस लदा है. सामान्यत: पढ़े लिखे डिग्रीधारियों को भी इसके लिए प्रयोगशाला की जरूरत पड़ती है. पर अफवाह की नाव पर सवार लोगों को इससे कोई लेना देना नहीं होता. समाज में अगर कुछ भी किसी भी रूप में विद्यमान है, तो वह किसी न किसी जरूरत को पूरा करने के कारण ही टिका हुआ है. इसे समझने की जरूरत है. न तो वेश्यालय बंद करने से वेश्यावृत्ति बंद हुई और न ही शराब बंदी से शराब बंद होने वाली है. कुछ लोगों की राजनीतिक रोटियां सिंक जाए, यह और बात है.
गुस्ताखी माफ: अफवाह की दुकानदारी और साइड इफेक्ट्स
