दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ में हताश भाजपा अब मुद्दे गढ़ रही है. पिछले कुछ दिनों में यह तीसरा मुद्दा है. सबसे पहले प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने प्रभु श्रीराम का मुद्दा उठाया. गृहमंत्री ने इस फुग्गे में सुई चुभो दी. आईना दिखा तो दूसरा मुद्दा ले आए शराब खोरी और बढ़ते अपराध का. इस मुद्दे को भी लेवाल नहीं मिले. अब तीसरा मुद्दा तराशा गया है बेरोजगारी का. इसका नेतृत्व भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंपा गया है. उन्हें बेंगलुरू से बुलाया गया है. अब वो छत्तीसगढ़ के युवाओं को बेरोजगारी भत्ते के लिए उकसाएंगे. भूपेश सरकार को घेरने की यह रणनीति खुद उस पार्टी ने बनाई है जिसका राष्ट्रीय नेतृत्व सेना में ठेका श्रमिक भर्ती करने पर आमादा है. दुख इस बात का भी है कि यह सब उस पार्टी के नुमाइंदे कर रहे हैं जो सनातन की बातें करती है. सनातन भारत में कृषि और स्वरोजगार को श्रेष्ठ माना जाता था. नौकरी निकृष्ट आजीविका की श्रेणी में आती थी. उन्हें तो छत्तीसगढिय़ा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को गुरू मान लेना चाहिए. वे सनातन भारत के अच्छे प्रतिनिधि हैं. वे कचरा पेटी पर महात्मा गांधी का चश्मा नहीं लगाते बल्कि महात्मा गांधी की सोच को वास्तिवकता की जमीन पर उतारने के लिए काम कर रहे हैं. बेरोजगारी की बात करने वालों को गोबर से निकलते स्वरोजगार को देखना चाहिए. भूजल स्तर बढ़ाने के लिए पुनर्जीवित किये जा रहे नरवा को देखना चाहिए. गोबर खाद और गोमूत्र कीटनाशक से हो रही आर्गेनिक खेती को देखना चाहिए. इसके लिए कोई रॉकेट साइंस नहीं लगता. केवल नेक इरादे और दृढ़ इच्छा शक्ति की दरकार होती है. उन्हें राजनांदगांव की महिला स्व-सहायता समूहों को भी देखना चाहिए जिन्होंने घरेलू बाडिय़ों में सूरन उगाकर करोड़ों का व्यापार किया. पर ये बातें उन लोगों की समझ में कैसे आएगी जिन्होंने उच्च शिक्षा को नेस्तनाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. रमन सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में इतने प्रफेशनल कॉलेज खुले कि तकनीकी कॉलेज खोलना स्वयं प्रफेशन हो गया. इन कॉलेजों ने इंजीनियर कम और नेता ज्यादा पैदा किये. इनकी फीस का ऐसा नियमन कर दिया कि ढंग के प्रोफेसर या प्रयोगशाला की गुंजाइश ही खत्म हो गई. बड़े निजी स्कूलों में 12वीं पढऩे का खर्च भी इन कॉलेजों से ज्यादा था. अब जब उसकी फसल कट रही है तो उसका ठीकरा फकत चार साल पुरानी सरकार पर फोडऩे की कोशिश की जा रही है. वह लांछन भी उस सरकार पर लगा रही है जिसकी पीठ स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ठोंक रहे हैं. वैसे भी देश में सकारात्मक विपक्ष केवल किताबों में है. रचनात्मक सहयोग भी केवल शिगूफा है. देश की किसी को नहीं पड़ी. सब अपनी-अपनी रोटी सेंक रहे हैं. जिस पार्टी का उद्देश्य ही कांग्रेस मुक्त भारत हो, उससे इससे ज्यादा की उम्मीद करना भी नादानी होगी.
गुस्ताखी माफ: भाजपा के गढ़े हुए मुद्दे, आयातित नेतृत्व
