-दीपक रंजन दास
देश भर में ठगी करनी हो तो दिल्ली से अच्छी जगह हो ही नहीं सकती। इस शहर का इस मामले में 75 साल का उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड है। इसी शहर से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि सरकार द्वारा जारी की गई योजना राशि में से केवल 15 फीसद ही हितग्राही के पास पहुंचता है। इसी शहर से अब ऑनलाइन ठगी का मामला सामने आया है। इस नेटवर्क को एक एमकॉम, एमबीए शख्स चलाता था। उसके पास एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस और एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस में काम करने का अनुभव भी था। जाहिर है कि टैलेंट की कोई कमी नहीं थी। इस टैलेन्ट का उपयोग देश नहीं कर पाया तो उसने उसका उपयोग स्वहित में करने की ठान ली। एसबीआई और एचडीएफसी के साथ काम करते समय दो बातें एकदम क्लीयर हो गईं। व्यवस्था में कई लूपहोल हैं और देश की जनता नितांत भोली है। निजी मोबाइल कंपनियों के आने के बाद डेटा की खूब खरीद फरोख्त हो रही है। मोबाइल नंबरों से जुड़ी जानकारियां हैक भी की जा सकती हैं और खरीदी भी जा सकती हैं। ऐप के जरिए भी इस डेटा की खूब चोरी हो रही है। आप कोई भी ऐप इंस्टाल करें तो वह आपके फोन बुक, कैमरा और फोन स्टोरेज तक पहुंच मांगता है। इस डेटा को फिल्टर कर अपने काम के मोबाइल यूजर्स की पहचान की जा सकती है। यह कंपनी ठीक यही करती थी। कंपनी यूजर्स को ई-चालान भेजती थी और उसे पटाने के लिए एक लिंक शेयर करती थी। यह लिंक उनके निजी खातों से जुड़ा होता था। छोटी मोटी राशि को लोग आंख मूंदकर पटा देते थे। इसमें ट्रैफिक रूल्स वायोलेशन के मामले ही ज्यादा होते थे जिन्हें कि भोले-भाले लोग जाने-अनजाने में किया गया मान लेते थे। पर छत्तीसगढ़ के एक युवक ने इसकी शिकायत दर्ज करा दी। रायपुर के एसपी प्रशांत अग्रवाल ने इसे गंभीरता से लिये और चुटकियों में गिरोह का भंडा फोड़ कर दिया। गिरोह का भंडाफोड़ तो हो गया पर इस देश के भोलेपन का क्या कीजिए? वह किसी से पंगा नहीं चाहता। कुछ दे-दिलाकर यदि काम बन रहा हो तो वह सिरदर्द नहीं लेना चाहता। वह लोभी तो है पर इसका प्रदर्शन नहीं करना चाहता। गुपचुप जहां-तहां रकम लगा देता है। रकम डूब जाती है तो गम खा लेता है। बहुत कम लोग हल्ला करते हैं। कुछ बड़ी-बड़ी कंपनियों का तो ये स्लोगन रहा है – “चेक आता है!”। पूरा नेटवर्क मार्केटिंग और चिटफंड बिजनेस इसी की बदौलत चलता है। तीन-चार दशक पहले तक दिल्ली-06 बेहद मशहूर था। ये सस्ती पत्रिकाओं में विज्ञापन छपवाकर ठगी करते थे। कुछ लोग शहर से बाहर आयुर्वेदिक दवाखाना का तंबू लगाकर ठगी करते थे। ये सभी आज भी किसी न किसी रूप में बने हुए हैं। जाहिर है लोग ठगे जाने के लिए तैयार बैठे हैं। केवल ठग अच्छा होना चाहिए। इसपर भी शोध होना चाहिए कि इन सभी के तार दिल्ली से क्यों जुड़े होते हैं?
गुस्ताखी माफ़: दिल्ली में बैठकर देश भर में ठगी
