-दीपक रंजन दास
लालच बुरी बला है- यह तो हम सभी जानते हैं पर जब अपनी बारी आती है तो भूल जाते हैं। लालू प्रसाद यादव के बारे में जब यह छपा कि वे पशुओं का चारा खा गए तो लोगों ने खूब चटखारे लिए। सालों बीत जाने के बाद भी आज कोई पूछे कि चारा कौन खाया तो लोगों को नाम याद है। पर लालू तो खामख्वाह बदनाम हो गए थे। इस घोर कलियुग में लोगों की फितरत ही ऐसी हो गई है कि वह जहां-जहां मुंह मार सकता है, मार ही लेता है। नेता और अफसर प्रत्येक विकास कार्य में मुंह मारते हैं। सड़कों की गिट्टी-डामर पचा जाते हैं तो सरकारी आवासों की सीमेन्ट-सरिया तक हजम कर जाते हैं। पर यह तो हद ही हो गई। राजनांदगांव जिले के ब्लाक एजुकेशन अफसर ने दुर्ग राजनांदगांव ग्रामीण बैंक के एक अफसर और एक कर्मचारी के साथ सांठ-गांठ कर नौनिहालों का मध्यान्ह भोजन ही खा गए। 2004 से 2011 तक वे इत्मीनान से मध्यान्ह भोजन की जुगाली करते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी। मजे की बात तो यह है कि मध्यान्ह भोजन के लिए जारी चेक में काट-छांट कर रकम बढ़ाई गई और हर बार बैंक से ज्यादा पैसा निकाल लिया जाता रहा। आंखों में रिश्वत का मोतियाबिंद हो तो ऐसी काट-छांट संदिग्ध क्यों लगेगी भला? वैसे तो तारीख और हस्ताक्षर के नाम पर ही ग्रामीण बैंक लोगों को बैरंग लौटाने के लिए मशहूर हैं पर जब बात मतलब की आती है तो उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता। पर जब यह मामला प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट अंजलि सिंह के पास पहुंचा तो उन्होंने इसे बेहद संजीदगी से लिया। उन्होंने तीनों आरोपियों को तीन-तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई दी। मध्यान्ह भोजन योजना एक महत्वकांक्षी योजना है जिसके कई लाभ हैं। इससे न केवल स्कूलों में हाजिरी बढ़ती है बल्कि बच्चों को पोषक भोजन मिलने के कारण उनके साधारण स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। महिला स्व सहायता समूहों को इस योजना के साथ जोड़कर शासन ने एक पंथ दो काज निपटाया है। एक तो महिलाएं अपने बच्चों को बेहतर भोजन देने के लिए काम को गंभीरता से ले रही हैं वहीं दूसरी तरफ उनकी अपनी भी रोजी रोटी चल रही है। पर दूध की कितनी भी रखवाली करो, बिल्ली मुंह मार ही जाती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। महिला स्व सहायता समूहों के लिए बनाए गए चेक की राशि से अधिक रकम बैंक से निकाली जाती रही और समूहों को उनका पैसा देकर शेष रकम की बंदरबांट होती रही।
गुस्ताखी माफ: 7 साल से अफसर डकार रहे थे मध्यान्ह भोजन
