नई दिल्ली (एजेंसी)। किसानों द्वारा पराली जलाए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्य कांत ने शनिवार को कहा कि वह भी एक किसान हैं और चीफ जस्टिस एनवी रमना भी एक किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि गरीब-सीमांत किसान पराली प्रबंधन के लिए मशीन नहीं खरीद सकते हैं।
गरीब किसान नहीं खरीद सकते महंगी मशीन
सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, आप कह रहे हैं कि दो लाख मशीनें उपलब्ध हैं, लेकिन गरीब किसान यह नहीं खरीद सकते। यूपी, पंजाब और हरियाणा में जोत तीन एकड़ से भी कम है। हम उन किसानों से उन मशीनों को खरीदने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।
जस्टिस कांत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें मशीनें क्यों नहीं उपलब्ध करा सकती हैं? पेपर मिल्स और अन्य उद्देश्यों के लिए इन्हें लिया जाए। राजस्थान में सर्दियों में पराली बकरियों आदि के लिए चारा हो सकती हैं। सर्वोच्च अदालत में पर्यावरण कार्यकर्ता आदित्य दुबे और लॉ स्टूडेंट अमन बांका की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही थी, जिसमें उन्होंने छोटे किसानों के लिए मुफ्त में पराली हटाने वाली मशीनें उपलब्ध कराने के लिए निर्देश की मांग की थी।

किसानों को दोष देना बन गया है फैशन
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ये मशीनें 80 फीसदी सब्सिडी दर पर उपलब्ध कराई जा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज ने मेहता से पूछा कि क्या उनकी सहायता करने वाले अधिकारी सब्सिडी के बाद वास्तविक कीमत बता सकते हैं। चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ बैठे जस्टिस कांत ने कहा कि क्या किसान इसका वहन कर सकते हैं। मैं एक किसान हूं और मैं जानता हूं, सीजेआई भी एक किसान परिवार से हैं और वह भी जानते हैं और मेरे भाई (जज) भी इसे जानते हैं। जस्टिस कांत ने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण के लिए किसानों को दोष देना फैशन बन गया है।



