भिलाई। मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निर्देश पर सोमवार को जिला कांग्रेस कमेटी भिलाई द्वारा प्रेसवार्ता ली गई। प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए जिला अध्यक्ष श्रीमती तुलसी साहू, पूर्व मंत्री बीडी कुरैशी, पूर्व विधायक भजन सिंह निरंकारी आदि ने कहा कि यूपीए सरकार के समय बनाई गई संपत्तियों को मोदी सरकार बेच रही है। देश में जिस सेक्टर से मुनाफा आ रहा है उसे निजी कंपनियों को बेच कर मोदी सरकार अपना स्वयं का मुनाफा देख रही है।
केन्द्र की मोदी सरकार ने जनता की कमाई से बनी संपत्तियों की मेगा डिस्काउंट सेल लगाई है। मोदी सरकार के गुपचुप निर्णय और अचानक घोषणा से सरकार की नीयत पर संदेह बढ़ गया है। जिला अध्यक्ष तुलसी साहू ने मोदी सरकार के कारनामों की पोल खोलते हुए कहा कि इस सरकार ने गरीबों को गर्त में फेंक दिया। बेतहाशा बढ़ती महंगाई के कारण आम आदमी पस्त हो गया है। पेट्रोल व डीजल के साथ रसोई गैस के दाम आज अपने उच्चतम स्तर पर है। महंगाई के कारण लोगों के घर का बजट बिगड़ गया है।

श्रीमती तुलसी साहू ने कहा कि एनडीए सरकार ने विकास के नाम पर दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया, एक का नाम है डिमानेटाइजेशन और दूसरे का मानेटाइजेशन। दोनों का व्यवहार एक जैसा है। डिमानेटाइजेशन से देश के गरीबों, छोटे कारोबारियों को लूटा गया। मानेटाइजेशन से देश की विरासत को लूटा जा रहा है, और दोनों ही चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किए गए काम है। मोदी सरकार जनता की कमाई से पिछले 60 साल में बनाए गए सार्वजनिक उपक्रमों को किराए के भाव पर बेचने पर आमादा है। यह सभ कुछ गुपचुप तरीके से किया जा रहा है। आज की पत्रकार वार्ता में प्रमुख रूप से नंद कुमार कश्यप, अतुल चंद साहू, वाईके सिंह, प्रवक्ता राजेश शर्मा, जय प्रकाश सोनी, मृत्युंजय भगत, सोहेब अहमद, भुनेश्वरी रानी, श्रीमती हेलीना आदि उपस्थित रहे।

इन प्रमुख बिंदुओं पर जिला कांग्रेस ने रखी अपनी बात
- एनडीए की तुलना अगर यूपीए से ढांचागत आधार के सृजन को लेकर की जाए तो यूपीए के मुकाबले एनडीए का रिकॉर्ड काफी खराब है।
- 12वीं योजना योजना काल के दौरान ढांचागत आधार में निवेश को 36 लाख करोड़ रुपए समग्रित पर आंका गया. यह जीडीपी का 5.8 प्रतिशत औसत है। वित्तीय वर्ष 2018 और 2019 में यह अनुमान 10 लाख करोड़ पर आ गया।
- मोदी सरकार का मुख्य उद्देश्य कुछ चुनिंदा उद्योगपति दोस्तों को उनके कारोबार और व्यापार में एकाधिकार का अवसर प्रदान करना है। इससे बाजार में चुनिंदा कंपनियों की मनमर्जी कायम हो जाएगी। जब चुनिंदा कंपनियां बाजार में रहेंगी तो गठजोड़ और मूल्य वृद्धि होना तय है।
- सरकार ने 12 मंत्रालयों के 20 परिसंपत्तियों का वर्गीकरण करते हुए इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए चिन्हित किया है. इनका सांकेतिक मौद्रिक मूल्य सरकार ने 6 लाख करोड रुपए दर्शाया है।
- यूपीए शासनकाल में यह निर्णय किया गया था कि रणनीतिक परिसंपत्तियों का निजीकरण नहीं किया जाएगा। गैस-पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन और राष्ट्रीय राजमार्ग भी हमेशा से रणनीतिक महत्त्व रखते रहे हैं। लेकिन इस सरकार को इसकी कोई चिंता नजर नहीं आती है।
- सरकारी संस्थानों को प्राइवेट हाथों में देने से पहले यूनियनों से बात कर, उन्हें विश्वास में लेना सबसे जरूरी है। कहीं भी अपने दो भागों वाले दस्तावेज में सरकार ने यह बताया है की मौजूद कर्मचारियों के हितों की रक्षा की जाएगी।
- रेलवे में गरीबों और जरूरत मंदों के द्वारा इस्तेमाल करे जाने वाले स्टेशन और लाइनों को किया नजरअंदाज।
- रेलवे की जिन संपत्तियों , रेलवे स्टेशनों और रेलवे लाइनों को राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन में बेचने के लिए चिन्हित किया गया है. वह हमेशा से बेहतर और फायदे का सौदा वाली परिसंपत्ति रही हैं।
- एक बार निजीकरण हो जाने के बाद लाभ कमाने वाले सभी रूट निजी क्षेत्र को सौंप दिए जाएंगे. जबकि घाटे में चलने वाले रूट और छोटे स्टेशन को सरकार चलाएगी। जहां पर सरकार पैसे की कमी का हवाला देते हुए उदासीन बनी रहेगी।
- जिन 10 रेलवे स्टेशनों को बिक्री के लिए चुना गया है। यह सभी निवेश के लिहाज से आकर्षक रेलवे स्टेशन हैं। लिहाजा बाकी के स्टेशनों पर और दूसरे रेल मार्ग, जहां गरीब ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उन सब पर कोई ध्यान नहीं देगा।
- सरकार ने इन्फ्राट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट व रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट या अन्य विशेष कंपनी के सृजन की बात की है. क्या इनका ऑडिट कैग कर पाएगी। 2007 से ही कैग के लिए यह मुश्किल बना हुआ है कि वह सार्वजनिक निजी भागीदारी या पीपीपी प्रोजेक्ट की समीक्षा कर पाए।
- इतना ही नहीं, सरकार ने निजी निवेशको और कंपनियों को यह वादा किया है कि उन्हे संचालन और प्रबंधन में उच्च स्तरीय लचीलापन या फ्लैक्सिबिलिटी प्रदान की जाएगी। ऐसे में यह सभी निवेशक किसी भी तरह की संसदीय समीक्षा से बाहर बने रह सकते हैं।
- जिन कंपनियों को परिसंपत्तियों के संचालन के लिए बनाया जाएगा. वह उन नए नियमों के तहत संचालित होंगी. जो सूचना के अधिकार या आरटीआई के दायरे में आने में दिक्कत होगी।
- सरकार उस समय पूरी तरह से झूठ बोलती है। जब वह कहती है कि बेची गई परिसंपत्तियों हमेशा सरकार के पास रहेंगी। जब भी ट्रस्ट बना कर संपत्ति बेची जाएगी तो वह कभी भी सरकार के पास कैसे रह सकती है।
- सार्वजनिक उपक्रमों के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने रियायती दरों पर जमीन दी थी। जमीन या भूमि राज्यों का विषय होता है. ऐसे में विभिन्न राज्य सरकारों को भी केंद्र सरकार को भरोसे में लेना चाहिए था. लेकिन उसकी नीयत में खोट है। इसकी वजह से उसने ऐसा नहीं किया।