भिलाई। दुनिया में ऐसे भी कुछ लोग होते हैं जो अपने कार्यों से सेवा, समर्पण और कर्मठता की मिसाल बन जाते हैं। चुनौतियों का सामना करना, उनसे लडऩा और पार पाना मानों उनका शगल बन जाता है। फिर चाहे चुनौतियां शारीरिक हो, आर्थिक या फिर मानसिक। दरअसल डर के आगे जीत है और समर्पण के आगे प्रेम है जैसे शब्द ऐसे ही लोगों के लिए बने हैं। हम बात कर रहे हैं तुलसी साहू की। जो लोग उन्हें कम जानते हैं, उनके लिए तुलसी साहू कांग्रेस पार्टी की एक नेत्री, साहू समाज की पदाधिकारी और अधिवक्ता हैं, किन्तु जो उन्हें हृदय की गहराइयों से जानते हैं, उन्हें पता है कि तुलसी साहू का व्यक्तित्व और उनकी सोच इससे कहीं आगे हैं। ऐसे ही लोगों के लिए शायर निदा फाजली ने एक शेर कहा था- दरिया हो या पहाड़ हो, टकराना चाहिए, जब तक न सांस टूंटे, जिए जाना चाहिए।
क्या राजनीति में यह संभव है कि आप चुनाव हार जाएँ और हारने के बाद जीतने वाली प्रत्याशी की जिम्मेदारी का निर्वहन स्वयं करें? 1994 में तुलसी साहू ने पहली बार जिला पंचायत का चुनाव लड़ा था। वार्ड 18 गुंडरदेही से लड़े गए इस चुनाव में उन्हें कुछ वोटों से पराजय मिली, लेकिन यहां दिक्कत यह आई कि जीती हुई प्रत्याशी सक्रिय राजनीति से जुड़ी हुई नहीं थी। ऐसे में श्रीमती साहू ने जीती हुई प्रत्याशी का दायित्व अपने कंधों पर उठा लिया और उनके द्वारा किए जाने वाले सारे काम खुद किए। यह एक बहुत छोटा सा उदाहरण है, कांग्रेस पार्टी के प्रति तुलसी साहू के समर्पण का। राजनीति के दलदल में जहां भीतरघात और खुलाघात जैसे पहलू राजनीतिक दलों की जीत और हार को तय करते हैं, वहीं दूसरी ओर तुलसी साहू का व्यक्तित्व उन्हें हारकर भी जनता और पार्टी की सेवा के लिए तत्पर रहने को प्रेरित करता है।
बात सिर्फ यहीं तक नहीं है। 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से तुलसी साहू को वैशाली नगर से टिकट मिलना लगभग तय था। किन्तु ऐेन वक्त पर उनकी टिकट काटकर दूसरे क्षेत्र से प्रत्याशी आयातीत कर लिया गया। टिकट के किसी भी भी दावेदार के लिए यह सदैव अप्रत्याशित होता है। बावजूद इसके तुलसी साहू ने इसे पार्टी का निर्णय मानकर शिरोधार्य किया और अपने स्तर पर जितना हो सका, पार्टी प्रत्याशी के लिए निष्ठा और समर्पण से काम किया। राजनीति में ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलते हैं।

..जब ताम्रध्वज के लिए लगाई दिल्ली दौड़
वह बेहद कश्मकश भरे, कटु और संघर्षभरे दिन थे, जब तुलसी साहू कांग्रेस पार्टी के प्रति पूरी तरह समर्पित रहकर भी अपने बीमार पति और छोटी बच्ची की देखभाल किया करती थी। वर्ष था 2004। लोकसभा चुनाव करीब थे और पार्टी को एक प्रभावशाली और दमदार नेता की तलाश थी। तब जिला कांग्रेस के अध्यक्ष स्व. दाऊ वासुदेव चंद्राकर थे। पार्टी के उपाध्यक्ष भूपत साहू के भाई ताम्रध्वज साहू लोकसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक थे। ऐसे में जरूरी था कि दावेदारी से पार्टी आलाकमान को भी अवगत कराया जाए। एक टीम बनी और इसका एक अहम् हिस्सा तुलसी साहू भी थीं। कैंसर की बीमारी से जूझ रहे अपने पति और 4-5 साल की लाडली बिटिया को छोड़कर श्रीमती साहू को दिल्ली कूच करना पड़ा। यह वह वक्त था, जब संचार के साधन वर्तमान जितने सहज-सुलभ नहीं थे। यह सोचकर ही शरीर का रोम-रोम खड़ा हो जाता है, इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद तुलसी साहू पार्टी की पैठ बढ़ाने को तत्पर रहीं। श्रीमती साहू के पति रूपराम साहू का निधन 2008 में हुआ। बिटिया श्रुति अब अपने ससुराल में खुशियां बिखेर रही है, ….और तुलसी साहू आज भी अपनी पार्टी, अपने नेता के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से काम कर रही है।
मंत्री-विधायक के साथ बेहतर सामंजस्य
छत्तीसगढ़ में 15 साल के लम्बे इंतजार के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी तो भिलाई को भी संगठन जिले की सौगात मिली। 2020 में तुलसी साहू पहली जिलाध्यक्ष बनाईं गईं। इससे पहले वे बतौर अध्यक्ष जिला ग्रामीण कांग्रेस का दायित्व भी निभा चुकीं थीं। सरकार बनीं तो जरूरी था कि पार्टी के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ संगठन का बेहतर तालमेल हो, ताकि पार्टी की रीति-नीति और कार्यों को जन-जन तक पहुंचाया जा सके। ऐसे ही वक्त में श्रीमती साहू का लम्बा राजनीतिक अनुभव काम आया। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और भिलाईनगर के युवा, तेज-तर्रार विधायक देवेन्द्र यादव के साथ बेहतर सामंजस्य के साथ काम शुरू हुआ। वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान इन्हीं नेताओं के मार्गदर्शन में कांग्रेस संगठन ने सेवाभावी कार्यों का पिटारा खोला। बड़ी संख्या में आ रहे प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन, पानी और विश्राम की व्यवस्था की। शासन की राशनिंग प्रणाली का लाभ आमजन को दिलाने के लिए कार्यकर्ताओं को घर-घर रवाना किया गया।
नेतृत्व क्षमता को किया साबित
2018 के विधानसभा चुनाव से कुछ पहले तुलसी साहू को जिला ग्रामीण कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। दुर्ग जिले में चुनाव उन्हीं की अगुवाई में हुए, जिसमें 6 में से 5 सीटें जीतकर कांग्रेस ने अभूतपूर्व उपस्थिति दर्ज कराई। वरिष्ठ नेताओं के मार्गदर्शन और श्रीमती साहू की कुशल नेतृत्व क्षमता से ही यह संभव हो पाया। इससे पहले भी तुलसी साहू निष्ठा और बेहतर कार्यक्षमता के साथ ही नेतृत्व क्षमता का जबरदस्त परिचय दे चुकीं थीं। उन्होंने कई महत्वपूर्ण और परिस्थितियां बदलने वाले चुनावों का संचालन किया। 2009 का वैशाली नगर उपचुनाव हो या 2013 का चुनाव या फिर 2015 में हुए नगर निगम के चुनाव; सभी में तुलसी साहू ने पूरी ऊर्जा के साथ 100 फीसद नतीजे देने की कोशिश की।
भिलाई भी जीतेंगे, रिसाली भी…
आत्मविश्वास से लबरेज भिलाई जिला कांग्रेस की अध्यक्ष तुलसी साहू वर्षांत में होने जा रहे नगर निगम के चुनावों के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं। वे दावा करतीं हैं कि भिलाई और नवोदित रिसाली नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस पार्टी अभूतपूर्व जीत दर्ज करेगी। वे बतातीं हैं,- बूथ स्तर पर काम काफी पहले से चल रहा है। वार्ड स्तर पर भी लगातार बैठकें की जा रही है, चुनावी रणनीति का खाका खींचा जा रहा है। श्रीमती साहू के मुताबिक, वैशाली नगर विधानसभा क्षेत्रांतर्गत कुछ विशेष प्रयासों की दरकार है। दरअसल, वहां पार्टी का विधायक नहीं है और इस क्षेत्र से निगम में पार्षद भी कम है। ऐसे में जरूरी है कि स्थानीय कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया जाए। यही काम किया जा रहा है। छाया पार्षदों के जरिए मतदाताओं से जुडऩे की कोशिशें जारी है। इसका परिणाम चुनावी नतीजों में जरूर दिखेगा।
छात्रजीवन से राजनीति की शुरूआत
श्रीमती साहू ने हायर सेकेंडरी की पढ़ाई के दौरान राजनीति में कदम रखे। सर्वप्रथम 1987 में वे सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हुईं। यह वह वक्त था, जब साहू समाज एकजुट हो रहा था। 1990 के आसपास उन्होंने कांग्रेस में अपनी सक्रियता बढ़ाई। महिला कांग्रेस की सचिव, जिला कांग्रेस की सचिव समेत कई पदों पर उन्होंने काफी समय तक काम किया। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान वे वित्त विकास निगम की सदस्य भी बनाई गईं। पहली दफा जिला पंचायत चुनाव में अल्पमतों से मिली पराजय के बाद उन्होंने दूसरी बार 2004 में फिर चुनाव लड़ा, लेकिन तत्कालीन सांसद और प्रदेश भाजपाध्यक्ष ताराचंद साहू की पुत्री झमिता साहू के समक्ष पुन: पराजय मिली। हालांकि चुनाव के इन नतीजों को लेकर भी कतिपय सवाल उठे। घनाराम साहू जब जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो तुलसी साहू को महामंत्री जैसे अहम् पद का दायित्व मिला। इस दौरान वे जिला कांग्रेस की प्रवक्ता भी बनाईं गईं। 2013 से 2017 तक वे प्रदेश कांग्रेस की सचिव और बेमेतरा जिले की प्रभारी भी रहीं।