राजनादगांव। शासकीय कमलादेवी राठी स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में हिन्दी विभाग में अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। जिसमें विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ. बीएन जागृत सहायक प्राध्यापक हिन्दी शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ने जनपदीय भाषा साहित्य विषय पर उन्होंने कहा कि छग के ग्राम जीवन में रामलीलाओं की परंपरा रही है। रामलीला के मंच पर भी छत्तीसगढ़ी ने स्वाभाविक रूप से प्रवेश किया। पारासयन थियेटर का प्रभाव छत्तीसगढ़ी लोक मच पर भी पड़ा। कबीर की परंपरा छत्तीसगढ़ी नाचा हम में हमें देखने को मिलती है। कबीर की साखियों का प्रयोग बहुतायत से हुआ, लेकिन धीरे-धीरे इस साखियों ने भी वसन धारण कर लिया। धार्मिक आख्यानों में रामकृष्ण तथा पाठकों की कथा पर आधारित लोक गाथा का विविध रूप देखते ही बनता है। गुरू घासीदास छग के प्रथम संत है, जिनकी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी थी, उनके सिद्धांतों को छत्तीसगढ़ की ग्राम्य भाषाओं में लोगो ने सुना और समझा।
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