आज तक नहीं हुआ सामाजिक प्रभाव पर कोई शोध
बिलासपुर। एनटीपीसी की सीपत इकाई मैं दो यूनिट से विद्युत उत्पादन का काम चल रहा है तीसरी यूनिट 1 गुना 800 मेगा वाट को शुरू होना है, और इसकी जनसुनवाई 25/2/2020 को नियत है पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन रिपोर्ट विमता लैब हैदराबाद ने तैयार की है। थर्मल पावर प्लांट मैं सुपर क्रिटिकल पद्धति से विद्युत उत्पादन शुरू हुए पर्याप्त समय बीत चुका है और राखड़, तापमान, बारिश, कृषि उत्पादन पर प्रभाव जैसे वैज्ञानिक, सामाजिक, राजनैतिक प्रभाव वाले मुद्दों पर आज तक कोई शोध कार्य नहीं हुआ जबकि बिलासपुर जिले में 3 सरकारी, एक निजी विश्वविद्यालय हैं। जिसमें से एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में पहचान रखता है कहने को इतने उन्नत शैक्षणिक संस्थान बिलासपुर में हैं। फिर भी एनटीपीसी के प्रभाव पर आज तक अध्ययन न होना शर्मनाक स्थिति है तीसरी युनिट शुरू हो जाएगी पानी का जितना उपयोग एनटीपीसी में हो रहा है उसके तीन स्रोत से ओवर ड्रा करके खेती वाले पानी को औद्योगिक उपयोग में लगाया जा रहा है।और सरकार स्वयं को किसान हितेषी बताती है एनटीपीसी और विमता का तर्क गले ही नहीं उतरता की एनटीपीसी का कुल भूमि क्षेत्र 4850 एकड़ है और कृषि पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा। वास्तविकता यह है कि एनटीपीसी के साथ अन्य उद्योग जो केनालए नदी अथवा डैम पानी ले रहे है वह पानी सरकारी रिपोर्ट के अनुसार ही कृषि के लिए था और जब उस पानी का उपयोग उद्योग में किया गया तो कृषि तो प्रभावित हो ही गई भले ही यह कृषि सीपत के आगे के जिले की हो जिसमें बलौदा बाजारए जांजगीर चांपाए और मस्तूरी शामिल है। कोयले से बिजली का सबसे बड़ा बेस्ट राखड़ है और जिस व्यक्ति को राखड़ के प्रभाव देखना हो वह एनटीपीसी के टाउनशिप के बाहर देख ले आज राखड़ मिश्रित पानी से नहाने के कारण क्षेत्र में त्वचा संबंधी रोग की संख्या सैकड़ों में बदल गई है नागरिक जागरूक नहीं हैं अन्यथा पीएससी जाते और नाम रजिस्टर में लिखा जाता स्थिति उलट है मरीज झोलाछाप के यहां जाते हैं और नाम लिखा था ही नहीं।
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