नेताजी सुभाष नवयुवक जागृति समिति का 54 वां वर्ष, ढोकरा आर्ट की थीम पर सजा है भव्य पंडाल
भिलाई। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दुर्गोत्सव पर्व हमें सिखाता है कि रास्ता चाहे कितना भी मुश्किल क्यों न हो, सही मार्ग पर चलने से ही जीत मिलती है। यह विश्वास पैदा होता है कि सत्य और न्याय की जीत हमेशा होती है। हमें सदैव सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए। इसी उद्देश्य के तहत पिछले 5 दशकों से पावर हाऊस भिलाई के लाल मैदान में “दुर्गोत्सव” का सफल और भव्य आयोजन करती आ रही है। इसी कड़ी में नेताजी सुभाष नवयुवक जागृति समिति द्वारा 54वें वर्ष 22 सितंबर सोमवार को सुबह 9 बजे विशाल कलश यात्रा के साथ भव्य पंडाल में मां दुर्गा की स्थापना की गई।
सामाजिक संस्कार और देशभक्ति जज्बे सहित नशे के कुप्रभावों से दूर रहने जैसी थीम के लिए पूरे छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में अपने सशक्त आयोजनों के लिए मशहूर नेताजी सुभाष जागृति समिति 54वें वर्ष कौन से ऐसे सरप्राइज थीम पर भव्य पंडाल निर्माण में महीनों से लगी है, यह सस्पेंस लगातार भिलाई वासियों में बरकरार रहा है। समिति के अध्यक्ष अरविंद गुप्ता, महामंत्री विजय सिंह और उपाध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि “हमर छत्तीसगढ़ के कला” और आदिवासियों के “ढोकरा आर्ट” को 54वें वर्ष की थीम समर्पित की गई है।

जानिए क्या है “ढोकरा आर्ट”
समिति के महामंत्री विजय सिंह ने बताया कि बस्तर छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़िसा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में रहने वाले आदिवासियों के ढोकरा आर्ट ने देश-विदेश में अपनी पहचान बनाई है। यह कला हमें और समाज को संदेश देती है कि प्रकृति और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ही हमें अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रखना है। ढोकरा थीम से हम न केवल आने वाली पीढ़ी से इसका परिचय करवा रहे हैं बल्कि विलुप्त होती आदिवासी पारंपरिक कला संस्कृति को इस्पात नगरी भिलाई वासियों के समक्ष साकार स्वरूप भी दे रहे हैं।

सागौन के पत्ते, चटाई, लाख की चुड़ियां, टोकनी-सूपा से सजा दरबार
उपाध्यक्ष गोविंद सिंह राजपूत ने जानकारी दी कि लाल मैदान का भव्य पंडाल ढोकरा कला को समर्पित है। सैकड़ों बांस की चटाई, टोकरी, लाख की चुड़ियों, पकी हुई मिट्टी (टेराकोटा) और सागौन के बड़े पत्तों से माता का विशाल दरबार सजाया गया है। सैकड़ों कारीगरों के महीनों की मेहनत यहां दुर्गोत्सव के प्रथम दिवस से सभी कलाकृतियों में मानों प्राण फूंकने जा रही है, भिलाई सहित छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों से पधारे भक्त इस आकर्षक और भव्य पूजा पंडाल में प्रवेश करते ही ऐसी अनुभूति अवश्य करेंगे। पंडाल में प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को समाज में रेखांकित करते हुए समिति ने ऐसी वस्तुओं का प्रयोग पूजा पंडाल के निर्माण में किया है जो प्रकृति प्रदत्त और पर्यावरण के अनुकूल है।

पूजा पंडाल में टोकरी से बने झूमर हैं विशेष आर्कर्षण
समिति के मंत्री अनिरूद्ध गुप्ता ने बताया कि पूजा पंडाल में अद्भुत लाइटिंग के साथ टोकरी से बने झूमर, लगभग 3 हजार टेराकोटा मूर्तियां, ढोकरा आर्ट से सुसज्जित दरबार परिसर, 20-20 फुट की अद्भुत गुड़िया, लाख से सजा दरबार, हजारों सागौन पत्ते के शेलनुमा रूप से सजे दरबार खंभ सहित अनेक आकर्षक कलाकृतियों के बीच दरबार में विराजीं माता अंबे का दर्शन और आशिर्वाद भक्तों को अद्भुत और सुखद अनुभुति देगा। गौरतलब हो कि ढोकरा कला आदिवासी समुदायों, खासकर गड़वा/घड़वा और झारा शिल्पकारों की आजीविका का महत्वपूर्ण साधन है और इन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाती है।
3 हजार कलात्मक मूर्तियों के साथ विराजी मां अंबे
अनिरूद्ध गुप्ता ने बताया कि पश्चिम बंगाल से मिट्टी मंगवा कर दुर्ग जिले के ग्राम थनौद में मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा बनवाई कर लाल मैदान पूजा पंडाल में गाजे बाजे के साथ लाया गया है। 22 सितंबर को माताजी की स्थापना के पश्चात प्रत्येक दिन और संध्याकाल में महाआरती होगी। 30 सितंबर सुबह 10 बजे से कन्या भोज और मध्यान्ह 3 बजे से हवन पूजन किया जाएगा। 2 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे से महाभंडारा, 3 अक्टूबर को मध्याह्न 2 बजे से माता प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा निकलेगी। दुर्गोत्सव को सुचारू रूप से संचालित करने में समिति के वीके गोयल, हेमन नागदेव, भीमसेन सेतपाल, मांगीलाल सोनी, डीएस गड़गे, महिमानंद सिंह, महेश श्रीरामवार, पुरूषोत्तम टावरी के संरक्षण में फत्तेलाल जंघेल, पवन सिंह राजपूत, राजाराम जाधव, शिरीष अग्रवाल, ओमप्रकाश शर्मा, प्रकाश लहरे, कार्तिक सिंह, बिंदू सोनकर, अरविंद कानतोड़े, गणेश साहू, सोमेश्वर राव, रामलाल जंघेल, आतीश गौर, दीपक सिंह, सुधाकर, रामप्रीत, कुबेरनाथ, अजरंगी, यशपाल, आयुश, लक्की सहित सैकड़ों युवाओं की टीम पूरी जिम्मेदारी के साथ लगी हुई है।