-दीपक रंजन दास
पेड़-पौधे से लेकर पशु-पक्षियों, यहां तक कि नदी नालों में भी ईश्वर के दर्शन करने वाला समाज इतना नीचे कैसे गिर सकता है? उनकी इन हरकतों का सबसे अधिक शिकार होते हैं गरीब मजदूर. खासकर वो जो रोजी रोटी की तलाश में अपने घर से मीलों दूर जा पहुंचते हैं. 10 जून को गुजरात के सूरत में एक ऐसी ही अमानवीय घटना को अंजाम दिया गया. अने अनमोल टेक्सटाइल मार्केट के कुछ कपड़ा व्यापरियों ने दो युवकों को चोरी के संदेह में पकड़ा था. युवकों को पहले एक दुकान में ले जाकर शटर गिरा दिया गया. इसके बाद दोनों को निर्वस्त्र करके डंडों से उनकी पिटाई की गई. अनुसूचित जाति के ये दोनों युवक महाराष्ट्र के रहने वाले हैं जो सूरत में फुटकर मजदूरी करते हैं. सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस हरकत में आई और दोनों व्यापारियों को हिरासत में ले लिया. एक माह पहले 14 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में राजस्थान के 2 दलित मजदूरों की भी बेरहमी से पिटाई की गई थी. उन्हें करंट के झटके दिए गए और प्लास से उनके नाखून और प्राइवेट पार्ट्स को खींचा गया था. उन युवकों पर भी चोरी का आरोप लगाया गया था. इस घटना के वायरल वीडियो में आरोपी भी राजस्थानी वेशभूषा में ही दिखाई दे रहे थे. वीडियो वायरल होते ही आरोपियों ने फरार होने की कोशिश की मगर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. दोनों दलित मजदूर भीलवाड़ा जिले से काम करने कोरबा की आइसक्रीम फैक्ट्री आए थे. इस तरह की घटनाएं सालों से पढ़ने सुनने को मिल रही हैं. मजदूर परिवारों को कभी ईंट भट्टे में तो कभी किसी पत्थर खदान में बंधक बनाने की खबर आती है. उनकी महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं भी होती रही हैं. कई बार तो सरकारी प्रयासों से ऐसे बंधक मजदूरों को मुक्त कराना पड़ा है. आखिर इंसानों को निकृष्ट समझने के ये संस्कार आते कहां से हैं? आखिर कोई इतना निष्ठुर हो कैसे सकता है? आजादी के 78 साल बाद भी बेघर, गरीब मजदूरों की जिन्दगी में कोई खास अन्तर नहीं आया है. उनकी बेबसी में कोई तब्दीली नहीं आई है. समर्थों द्वारा उनका शोषण बंद नहीं हुआ है. संविधान जिन्हें पिछड़ा और अति पिछड़ा मानते हुए संरक्षण देने की बात करता है, देश के ही सामर्थ्यवान उनकी आजादी को छिन्न-भिन्न कर देते हैं. उनके मानवाधिकार छीन लेते हैं. दरअसल, इस भेदभाव की जड़ें इतनी गहरी हैं कि कुछ कानून बना देने या बदल देने मात्र से इसमें ज्यादा फर्क नहीं आने वाला. जब तक लोगों में राष्ट्रचेतना नहीं जागेगी तब तक धर्म और पाखण्ड उन्हें घेरे रहेंगे. वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय व्यवस्था मानने वाले लोग इसी तरह दूसरों को अपमानित और प्रताड़ित करते रहेंगे. ऐसे लोगों को गाय और कुत्ते के लिए रोटी निकालना तो याद रहता है पर इंसानों को इंसान समझने की चेतना इनमें शायद कभी नहीं जागेगी.
Gustakhi Maaf: ये मजदूरों को जानवर समझने वाले
