-दीपक रंजन दास
पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय मामले में आरोप हैं कि यहां राम और बाम एक साथ हो गए हैं। निशाने पर है तृणमूल कांग्रेस की सरकार। देश के टॉप यूनिवर्सिंटीज में शामिल जादवपुर विश्वविद्यालय विश्व के चुनिंदा विश्वविद्यालयों में शामिल है। यहां छात्रसंघ चुनाव जल्द से जल्द कराने की मांग को लेकर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) आंदोलन कर रहा है। एक मार्च को ममता सरकार के शिक्षा मंत्री विश्वविद्यालय आए थे। जब वो जाने लगे तो आंदोलनरत छात्रों ने उनकी गाड़ी घेर ली। इससे पहले मंत्री ने कुछ देर तक रुककर छात्रों की बातें सुनी भीं। छात्र लगातार हंगामा कर रहे थे। इसलिए मंत्री अपने वाहन में सवार हो गए और वहां से जाने लगे। देश भर में नेता ऐसा ही करते हैं। इसके बाद छात्रों ने उनकी गाड़ी का पीछा किया। गाड़ी के सामने आ गए और बोनट पर चढ़ गए। वाहन का विंडस्क्रीन (शीशा) टूट गया। किसी अनहोनी की आशंका में ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। कुछ छात्र इस हादसे में घायल हो गये। घटना के बाद कोलकाता पुलिस ने पश्चिम बंगाल कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स एसोसिएशन की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर ली। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर एसएफआई की तरफ से भी एफआईआर दर्ज की गई है। एसएफआई सीपीआई-एम की छात्र शाखा है। सीपीआई एम को माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी कहा जाता है। तृणमूल के आने से पहले माकपा ही यहां सत्ता में थी। 2011 तक पश्चिम बंगाल में माकपा का ही शासन था। 34 साल के शासन के बाद उसे तृणमूल कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था और तभी से पार्टी हाशिए पर है। फरवरी में यहां माकपा का चार दिवसीय सम्मेलन हुआ था। तब पार्टी ने भाजपा और तृणमूल दोनों को निशाने पर लेते हुए कहा था कि माकपा ही राज्य को सुशासन दे सकती है। पार्टी का आरोप था कि भाजपा और आरएसएस पश्चिम बंगाल को पूर्वी भारत में कट्टर हिंदुत्व का केन्द्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं। तृणमूल भी सांप्रदायिक राजनीति कर रही है। माकपा के शासन में किसी भी साम्प्रदायिक ताकत, फिर चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम, को पनपने का कोई मौका नहीं दिया गया था। 2026 में यहां विधानसभा चुनाव होने हैं। तृणमूल का आरोप है कि भाजपा चुनाव आयोग के जरिए यहां भी वोटर लिस्ट से खेल रही है। ऐसे ही हथकंडों से भाजपा ने महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनाव जीते हैं। वहीं भाजपा का आरोप है कि यहां जातिगत सर्वे में सांप्रदायिक सवाल पूछे जा रहे हैं जो गैरकानूनी है। वैसे अब सांप्रदायिक शब्द का उपयोग अप्रासंगिक हो चुका है। पहले जो बातें गुपचुप होती थीं अब वो खुल कर होती हैं। जादवपुर यूनिवर्सिटी तो सिर्फ बहाना है। अब निशाने पर तृणमूल के मंत्री हैं। मंत्री के जरिए मुख्यमंत्री तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। जैसा माहौल है इस मामले को चुनाव तक तो खींचा ही जा सकता है।
Gustakhi Maaf: जादवपुर मामले में राम-बाम एक साथ?
