-दीपक रंजन दास
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पढ़े लिखों के फेवरिट नेता हैं. हिन्दू, मुसलमान, खतरा जैसी बातों से कोसों दूर वे विकास कार्यों को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं. सड़क हादसों में होने वाली मौतों को रोकने के लिए उन्होंने कई स्तरों पर काम शुरू किया है. इन्हीं में से एक योजना इसी माह से देश भर में लागू होने जा रही है. इसके तहत सड़क हादसे में घायल होने पर उसे तत्काल निकटस्थ अस्पताल में पहुंचाना होगा जहां उसका तुरंत इलाज प्रारंभ हो जाएगा. सात दिन इलाज का पैसा सरकार देगी जो अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक होगा. देश भर की सड़कों और पुल-पुलियों की स्थिति सुधारने के लिए वे लंबे समय से प्रयास कर रहे हैं और इसके अच्छे नतीजे भी आए हैं. मंत्रालय भारी वाहनों को तीन तकनीकों से लैस करने की भी कोशिश कर रहा है. इनमें इलेक्ट्रानिक स्टेबिलिटी कंट्रोल और आटोमेटिक इमरजेंसी ब्रेकिंग सिस्टम के अलावा ड्राइवर ड्राउजीनेस सिस्टम अलर्ट जैसी अत्याधुनिक तकनीकें शामिल हैं. गडकरी कह चुके हैं कि वाहन चालक को ड्राइविंग के दौरान झपकी लगने से अधिकांश हादसे होते हैं. इसका कारण यह है कि भारी वाहनों के चालक सुबह 4.30 बजे से लेकर रात 9.30 या 10.30 बजे तक गाड़ी चलाते हैं. ऐसे में थकान और झपकी आना स्वाभाविक है. उन्होंने कहा कि ड्राइवरों को केवल 8 घंटे लगातार ड्राइव करने की अनुमति होगी. चालक अपने आधार कार्ड से जुड़े सिस्टम से इंजन को स्टार्ट करेगा जो 8 घंटे बाद खुद ब खुद बंद हो जाएगा. इसके बाद सहचालक को अपने आधार से इंजन को स्टार्ट करना होगा. इसके अलावा देश भर में 1250 ड्राइविंग ट्रेनिंग और फिटनेस सेंटर खोले जाएंगे. इन सेन्टरों से 25 लाख प्रशिक्षित चालक लाइसेंस के साथ निकलेंगे और उन्हें रोजगार मिलेगा. इन केन्द्रों पर भी 15 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा. अर्थात गडकरी कुछ तो कर रहे हैं. उनके साथ ही पूरा देश देख रहा है कि देशभर में वाहियात किस्म के सड़क हादसे हो रहे हैं. अधिकांश हादसे खाली सड़कों पर हो रहे हैं. 2024 में 1 लाख 80 हजार मौतें सड़क हादसों में हुई हैं. मृतकों में 66% लोग 18 से 34 साल के युवा थे. पर सड़क हादसों का एक बड़ा कारण अछूता रह गया है. इस मामले में सरकार भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकती. यह हमें खुद ही करना होगा. दरअसल, समय प्रबंधन के मामले में अधिकांश लोग अनाड़ी हैं. देर से निकलकर अगर कोई समय पर पहुंचना चाहे तो उसे ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ानी पड़ती है. इसे ऐसे समझें कि यदि स्कूल, कालेज या दफ्तर जाने में आपको औसतन आधा घंटा लगता है तो घर से 45 मिनट पहले निकलें. जहां रुकना पड़े रुकें, जहां दूसरों को निकलने देना जरूरी हो, उन्हें निकलने दें. जिद पकड़कर पहले निकलने की कोशिश भी हादसों को जन्म देती है. रफ्तार काबू में रखें. सड़कें स्टंट के लिए उपयुक्त जगह नहीं होतीं.
Gustakhi Maaf: सड़क हादसे, मुफ्त इलाज और टाइम मैनेजमेंट
