सुकमा। अक्सर नक्सलवाद और नक्सली घटनाओं के लिए ही चर्चे में रहने वाला सुकमा जिला शिक्षा के शिक्षा क्षेत्र में नए बदलाव कर रहा है। जहां लाल सलाम के नारे ही गूंजा करते थे वहां अब स्कूल की घंटी और बच्चों की एबीसीडी सुनने को मिल रही है। यह सुखद तस्वीर सुकमा जिले के दुलेड़ एलमागुंडा की है, जहां आजादी के 77 साल के बाद स्कूल खुला है।
हालांकि स्कूल झोपड़ी में है, क्योंकि इन इलाकों में व्यवस्थाओं को अब तक दुरुस्त नहीं किया जा सका है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि अब यहां बच्चे गांव में ही रहकर शिक्षा की अलख जला पाएंगे। जब ग्रामीणों को इस बात की जानकारी मिली कि स्कूल अब गांव में ही खुलेगा तो ग्रामीणों ने मिलकर बच्चों के लिए एक अस्थाई स्कूल का निर्माण झोपड़ी के रूप में किया। गौरतलब है कि इन इलाकों में शिक्षा से कटाव की मुख्य वजह गांव-गांव में स्कूल न हो पाना भी बताया जाता है।
2006 में जब सलवा जुडुम शुरू हुआ था तो सारे गांव से लोग राहत शिविर में ले जाए गए थे। इस दौरान एक दो स्थानों पर खाली स्कूल और अस्पताल को अस्थाई रूप से सुरक्षा कैंप के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। जिस वजह से नक्सली संगठन ने जिले भर के संवेदनशील इलाकों के स्कूलों व अस्पतालों को क्षतिग्रस्त कर दिया था, ताकि इन भवनों में सुरक्षाबल कैंप ना लगा पाए।
इसके बाद से शिक्षा के हालात इन इलाकों में बदतर हो गए। अंदरुनी गांव के बच्चों को आश्रमों और पोटाकेबिनों में शिक्षा से जोड़ा गया, लेकिन 50 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण अंदरूनी इलाकों में ही रह गए। जिनके बच्चे शिक्षा से नहीं जुड़ पाए, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में जिन घरों में दो बच्चे होते हैं। एक बच्चे को घर में ही घर की देखभाल खेती बड़ी और घर के कामकाज के लिए रखा जाता है। जिस वजह से वह बच्चा स्कूल गांव में न होने की वजह से शिक्षा से नहीं जुड़ पाता।
प्रत्येक घर में एक बच्चे की अगर यह स्थिति है तो समझ लीजिए कि ऐसे कितने बच्चे शिक्षा से नहीं जुड़ पाए। फिलहाल अंदरूनी इलाकों में सरकार अपनी पहुंच पकड़ मजबूत कर रही है और गांव में बुनियादी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। 26 जून को जब प्रदेश भर में शाला प्रवेश उत्सव का कार्यक्रम चलाया गया तो इस गांव के लिए बेहद खुशी का पल था। जब स्कूल गांव तक पहुंचा और बच्चे गांव में ही रहकर शिक्षा से जुड़ पाए अब वह बच्चा जो घर में देखभाल के लिए रोका जाता है। वह भी शिक्षा से अछूता नहीं रहेगा ।