-दीपक रंजन दास
शादी उसकी 29 अप्रैल को थी पर बारात नहीं पहुंच पाई। बारात आई 30 अप्रैल को। न…न…न.. ऐसा किसी की गलती या जिद की वजह से नहीं हुआ। कोई अपशकुन या कोई हादसा भी नहीं हुआ। यह कोई ज्योतिष या अंकगणित का पेंच भी नहीं है। दरअसल, देश की रेल सेवा अपग्रेड हो रही है। देश में पहली ट्रेन 16 अप्रैल, 1853 को चली थी। तब से लेकर आज तक रेलवे ने कई पड़ाव देखे। छोटी लाइन बड़ी लाइन में तब्दील हुई। बड़ी लाइनों पर ट्रेनों की रफ्तार बढ़ी। भाप के इंजन पहले डीजल इंजन और फिर इलेक्ट्रिक इंजन में बदल गए। मुम्बई के बोरीबंदर से ठाणे के बीच का 35 किलोमीटर का फासला तय करने में पहली ट्रेन ने एक घंटा 10 मिनट का समय लिया था। आज भी दुर्ग से रायपुर के बीच की 37 किलोमीटर की दूरी तय करने में पैसेंजर और लोकल ट्रेनों को लगभग इतना ही समय लगता है। 31.03.2019 को भारतीय रेल पर मार्ग की कुल लंबाई 67,956 किमी थी। 8702 यात्री ट्रेनों के साथ प्रतिदिन कुल 13523 ट्रेनें चलती थीं। पर जो अब हो रहा है, वह पहले कभी नहीं हुआ। ट्रेनों का घंटों लेट चलना या कैंसल हो जाना अब रूटीन हो गया है। अब इसके बारे में कोई बातें नहीं करता। यह अब कोई मुद्दा नहीं है। पहले शायद इसलिए बवाल होते थे क्योंकि ट्रेनों का इंतजार करने वाले रेलवे प्लैटफॉर्म पर बैठे होते थे। दरी बिछाकर लोग बच्चा-कच्चा सहित वहीं पड़े रहते थे। गर्मी और भूख से परेशान बच्चे चिल्ल-पों मचाते, मां झल्लाती और बाप का पारा सातवें आसमान पर पहुंच जाता। कम पढ़े लिखे लोग थे, वो स्टेशन मास्टर पर ही गुस्सा निकालते। ट्रेनों के लिए घंटा दो घंटा लेट से आना तो सहज स्वीकार्य था। इससे ज्यादा देर होने पर ही उसे लेट कहा जाता था। यही इंडियन स्टैंडर्ड टाइम है। ट्रेन दूसरे दिन आती तो प्रथम पृष्ठ का समाचार बन जाता था। पर यह आधुनिक दौर है। अब लोग अपने घरों में बैठकर पूछते हैं – ‘व्हेयर इज माइ ट्रेन?Ó और इसी नाम का ‘ऐपÓ उन्हें चलती हुई ट्रेन मोबाइल फोन पर दिखा देता है। वह कहां पहुंची, कितने बजे छूटेगी और कब आपके पास पहुंचेगी, यह ऐप सबकुछ बताता है। ट्रेन ज्यादा लेट होने पर लोग टिकट कैंसल करा लेते हैं। यात्रा बहुत जरुरी हो और पैसों की दिक्कत न हो तो लोग हवाई सफर बुक करा लेते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी कार से ही निकल पड़ते हैं। असंतुष्ट या परेशान लोग अब एक साथ नहीं होते। सब अपने-अपने घर में खीझ निकालते हैं। इसलिए अब कोई नाराज नहीं होता। शादी ही तो है, एक दिन बाद सही। नाचना ही तो है। पर दिक्कत उनके साथ है जो ट्रेनों के भरोसे नौकरी करते हैं। ट्रेन आए न आए उन्हें काम पर जाना होता है। अकेला वही परेशान है, बाकी बहुत खुश हैं।