-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ के पर्यावरणविदों को एक बार फिर गिधवा-परसदा सहित राज्य की आर्द्रभूमियों की याद आई है. घोर बेइज्जती से तिलमिलाए पर्यावरणविदों ने कहा है कि राज्य की आर्द्रभूमियों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त रामसर साइट में शामिल करने की राह में आने वाली अड़चनों को दूर किया जाना चाहिए. छत्तीसगढ़ में कुल 35 हजार 534 वेटलैंड हैं, जिसमें से 2.25 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल के सात हजार 711 वेटलैंड हैं. 2.25 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल के 27 हजार 823 वेटलैंड हैं. इन समस्त वेटलैंडों का क्षेत्रफल तीन लाख 37 हजार 966 हेक्टेयर है, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.5 प्रतिशत होता है. पर वेटलैंड कभी भी राज्य की प्राथमिकता सूची में नहीं रहे. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि यहां कोई निर्माण नहीं हो सकता. जहां निर्माण नहीं हो सकता, वहां ठेका नहीं हो सकता. जहां ठेका नहीं हो सकता, वहां सरकार की कोई रुचि नहीं हो सकती. वैसे भी आर्द्रभूमि और वेटलैंड्स की फिक्र ही किसे है. वह तो इस पर्यावरण दिवस पर राजस्थान की दो आर्द्रभूमियों को अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट में शामिल कर लिया गया तो छत्तीसगढ़ के पर्यावरणप्रेमियों को भी तकलीफ हुई. राजस्थान के ये दो स्थल हैं उदयपुर का बर्ड विलेज मेनार और फलोदी का खींचन गांव. इसके साथ ही भारत के 91 स्थल अब रामसर साइट पर हैं. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, छत्तीसगढ़ में आर्द्रभूमियों की कोई कमी नहीं है. प्रकृति ने छत्तीसगढ़ को दोनों हाथों से दिया है. इनमें से गिधवा और परसदा दुर्ग संभाग के बेमेतरा जिले के दो गांव हैं. यहां लगभग 100 एकड़ में फैले पुराना तालाब के अलावा 125 एकड़ का जलाशय भी है. सर्दियों की दस्तक के साथ ही यूरोप, मंगोलिया, बर्मा और बांग्लादेश से प्रवासी पक्षी यहां पहुंच जाते हैं. गांव वाले स्वयं इन पक्षियों की सुरक्षा करते हैं. इन इलाकों में अक्टूबर से मार्च तक वाहनों का आना जाना प्रतिबंधित रहता है. आतिशबाजी और गाजे-बाजे पर भी प्रतिबंध रहता है. पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित है. यदि कोई शिकार करता पाया गया तो गांव वाले ही उसपर दंड लगा देते हैं. 2021 में पहली बार यहां पक्षी मेले का आयोजन किया गया. पर इसके बाद इसे लेकर हल्ला गुल्ला कम होता चला गया. जब राज्य को खुद ही वेट लैंड्स की नहीं पड़ी तो किसी और से इसमें सिर खपाई की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. 25 बरस के छत्तीसगढ़ में अब तक छह सरकारें हुई हैं. पहली सरकार अजीत जोगी की थी जिन्हें यह पद उपहार में मिला था. दूसरी, तीसरी और चौथी सरकार डॉ रमन सिंह की थी. इसके बाद भूपेश बघेल की सरकार आई और अब विष्णु देव साय की सरकार है. इनमें से सिर्फ भूपेश बघेल की सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए जिसमें छत्तीसगढ़ी संस्कृति और परम्परा की झलक दिखाई देती थी. गोठान योजना, बोरे बासी दिवस और पक्षी महोत्सव इसी का हिस्सा था. अब ये सब भूली-बिसरी बाते हैं.
Gustakhi Maaf: फिर आई गिधवा-परसदा की याद
