रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज)। अपने दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने समेत कांग्रेस ने कई सारे कार्ड एकसाथ खेले हैं, लेकिन इन पर मोदी की गारंटी अब भी भारी पड़ रही है। सभी 11 सीटों पर भाजपा के कार्यकर्ता चेहरों की बजाए कमल के फूल को प्रत्याशी मानकर काम कर रहे हैं। इसके विपरीत कांग्रेस ने कई क्षेत्रों में जातीय समीकरणों के हिसाब से प्रत्याशी तो तय कर दिए, लेकिन उन्हें स्थानीय कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में पहले चरण में आज बस्तर में वोटिंग जारी है, लेकिन यहां भी कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा पर मोदी की गारंटी और कमल फूल का निशान भारी पडऩे की संभावना है। हालांकि लखमा को कांग्रेस का मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है। अलग राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में संसदीय चुनाव में भाजपा का परचम लहराता रहा है, लेकिन इस बार कई सीटों पर भाजपा को कड़ी चुनौती इसलिए मिल रही है, क्योंकि कांग्रेस ने जातीय व सामाजिक समीकरण के हिसाब से टिकट बांटकर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश की है। सवाल यह है कि कांग्रेस का यह कार्ड कितना कारगर साबित होगा?
कांग्रेस भले ही भाजपा से टिकट वितरण में पिछड़ गई लेकिन उसने चुन-चुनकर ऐसे चेहरों को टिकट दिया है, जो भाजपा का गणित बिगाड़ सकते हैं। दुर्ग के पाटन सीट से विधायक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनांदगांव की सीट से उतारा गया तो उसकी बड़ी वजह राजनांदगांव क्षेत्र का पिछड़ा वर्ग बाहुल्य होना है। भूपेश बघेल, पिछड़ा वर्ग से कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हैं। ऐसे में राजनांदगांव की जंग दिलचस्प हो गई है, जहां से भाजपा ने वर्तमान सांसद को रिपीट किया है। कुछ ऐसा ही महासमुंद सीट पर भी किया गया है। यहां से कांग्रेस ने पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को मैदान में उतारा है। महासमुंद क्षेत्र को साहू बाहुल्य माना जाता है। ताम्रध्वज साहू, इस समाज के शीर्ष नेता रह चुके हैं। यहां भी कांग्रेस ने सामाजिक वोटों को कबाडऩे की नीति पर काम किया। वहीं यादव बाहुल्य बिलासपुर सीट पर भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को प्रत्याशी बनाकर यहां भी यादव समाज के वोटों पर हाथ साफ करने की रणनीति अपनाई गई। गौरतलब है कि ये तीनों नेता दुर्ग जिले से आते हैं। स्थानीय स्तर पर इन नेताओं का कुछ विरोध भी हुआ था। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य की सभी 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, लेकिन कांग्रेस के जातीय व सामाजिक कार्ड के चलते उसे कई सीटों पर कड़ी चुनौती से रूबरू होना पड़ रहा है।
मोदी का चेहरा और भ्रष्टाचार
छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रचार में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे के अलावा भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाया है। इसके अलावा भी भाजपा के पास कई मुद्दे है, लेकिन सारा जोर भ्रष्टाचार पर है। वहीं कांग्रेस अपनी न्याय गारंटियों और केंद्र सरकार के आधे-अधूरे वादों को लेकर चुनाव मैदान में उतरी है। राजनीति दल चुनाव जीतने की रणनीति लगातार बदल रहे हैं। चुनाव की घोषणा होने के बाद कांग्रेस-भाजपा ने पहले अपने कार्यकर्ताओं को साधने का प्रयास किया। इसके बाद भाजपा ने कांग्रेस नेताओं को तोडऩे की रणनीति पर काम किया। इस मामले में कांग्रेस पिछड़ गई थी। जब कांग्रेस को भाजपा की रणनीति का एहसास हुआ, तो बड़ी देर हो गई थी। कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने लगा था। हालांकि इससे सबक लेते हुए कांग्रेस ने देर सबेर संवाद और संपर्क समिति का गठन किया।
कांग्रेस भरवा रही घर-घर फॉर्म
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में न्याय गारंटी का जिक्र किया। इसे ही चुनाव का बड़ा हथियार मानकर चल रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस प्रत्याशी अपने मुद्दों के साथ-साथ न्याय गारंटी पर भी जोर दे रहा है। इसमें महालक्ष्मी न्याय गारंटी योजना पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। इसके तहत गरीब महिलाओं को हर साल 1 लाख रुपए देने का वादा किया गया है। इसे भुनाने के लिए कांग्रेस के उमीदवार महिलाओं से फॉर्म भरवा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने महतारी न्याय योजना का फॉर्म भरवा था। भाजपा का यह कदम गेम चैंजर साबित हुआ था। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता 16 मार्च को लागू हुई थी। इसके बाद चुनाव सरगर्मी की शुरुआत हुई। चुनावी रणनीति के तहत भाजपा ने अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान पहले किया। इसमें भाजपा ने दो सांसदों को दोबारा मौका दिया। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी चयन करने में पिछड़ गई थी, लेकिन अपने दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतारकर सभी को चौंका दिया। इसके लिए कांग्रेस ने दिग्गजों की सीट बदलने से भी गुरेज नहीं किया। वर्तमान में पूर्व मुयमंत्री भूपेश बघेल के अलावा तीन पूर्व मंत्री भी सांसद चुनाव में अपना भाग्य आजमा रहे हैं।
मोदी पर भरोसा या न्याय गारंटी पर?
भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी की गारंटी, विष्णु का सुशासन मुद्दा है। 2014 से भाजपा के नेतृत्व में देश ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मोदी की गारंटी को पूरा करते हुए लोगों का विश्वास जीता है। भ्रष्टाचारियों पर भाजपा सरकार ने कार्रवाई की है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने संकल्प पत्र के जरिए भाजपा एक बार फिर जनता के दिलों में जगह बना चुकी है। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी विकास उपाध्याय का कहना है कि कांग्रेस की न्याय गारंटी योजना के जरिए हम जनता के बीच पहुंच रहे हैं। महालक्ष्मी न्याय गारंटी योजना में महिलाओं को सालाना एक लाख रुपये की गारंटी कांग्रेस ही दे सकती है। 30 लाख सरकारी नौकरी का वादा हमने किया है। केंद्र सरकार की 10 वर्ष की विफलता को जनता अच्छे जान चुकी है। बेरोजगारी, महंगाई से आम आदमी का जीना मुहाल हो चुका है।
विधानसभा चुनाव में फेल हुआ था जातीय कार्ड
पिछले विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने जातीय राजनीति को खारिज कर दिया था। एक ओर जहां भाजपा की जीत में समाज और जाति के प्रत्याशियों ने अहम भूमिका निभाई तो दूसरी ओर कांग्रेस के प्रत्याशियों को नकार दिया। यहां तक कि कांग्रेस के सभी ब्राह्मण प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। जबकि भाजपा के 70 फीसद ब्राह्मण प्रत्याशी जीतकर आए। छत्तीसगढ़ के चुनावी परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस पार्टी का ओबीसी कार्ड राज्य में कोई कमाल नहीं कर पाया। वहीं, भाजपा ने हिंदुत्व की विचारधारा के सहारे सोशल इंजीनियरिंग साधकर छत्तीसगढ़ अपने नाम कर लिया। भाजपा की जीत में सभी समाज और जाति के प्रत्याशियों ने अहम भूमिका निभाई। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इसकी बड़ी वजह राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और सबका साथ- सबका विकास का नारा रहा, जिसके सामने कांग्रेस का ओबीसी कार्ड धराशायी हो गया। विधानसभा चुनाव के परिणाम यह भी बताते हैं कि कांग्रेस के सभी ब्राह्मण प्रत्याशियों को जनता ने नकार दिया। कांग्रेस ने इस चुनाव में आठ विधानसभा से ब्राह्मण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था, जिनमें कोई भी जीत नहीं पाया। वहीं, भाजपा के सात ब्राह्मण प्रत्याशियों में से पांच ने जीत हासिल की है। इस प्रदर्शन के लिए राजनीतिक पर्यवेक्षक भूपेश बघेल सरकार की मुखर ओबीसी राजनीति को जिम्मेदार ठहराते हैं।
विधानसभा चुनाव-2023 में 32 ओबीसी विधायक चुने गए, इनमें सबसे ज्यादा 12 साहू समाज से हैं। इसके अलावा पांच यादव व पांच कुर्मी समाज से हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने 20 साहू प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिसमें भाजपा के 11 और कांग्रेस की तरफ से नौ प्रत्याशी थे। दोनों पार्टियों के छह-छह प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। दोनों पार्टियों ने पांच यादवों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया था, जिसमें चार ने जीत दर्ज की है। निषाद, सेन, कलार, कोष्टा समाज से भी एक-एक प्रत्याशी ने जीत दर्ज की। कांग्रेस के ओबीसी कार्ड का खामियाजा सवर्णों को भी भुगतना पड़ा। ब्राह्मण के अलावा 13 सवर्ण समाज के कांग्रेसी प्रत्याशियों को भी पराजय का सामना करना पड़ा। इसके मुकाबले भाजपा ने सवर्ण वर्ग से 18 उम्मीदवारों को मैदान पर उतारा था जिसमें 16 विजयी हुए। 18 में से सात ब्राह्मण थे, जिनमें से पांच ने चुनाव जीता। सिर्फ शिवरतन शर्मा (भाटापारा) व प्रेमप्रकाश पांडे (भिलाई नगर) को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा-कांग्रेस के बीच विधानसभा चुनाव में भाजपा का हिंदुत्व कार्ड कांग्रेस पर भारी पड़ गया। कांग्रेस के ओबीसी प्रत्याशी से लेकर अगड़ी जाति के प्रत्याशियों की करारी हार हुई, जिसमें साजा विधायक रविंद्र चौबे, अंबिकापुर विधायक टीएस सिंहदेव भी शामिल थे। भाजपा ने साजा क्षेत्र में बिरनपुर गांव की घटना के बाद किसान ईश्वर साहू को प्रत्याशी बनाया। सांप्रदायिक हिंसा की इस घटना ने कांग्रेस के बड़े नेता रविंद्र चौबे को पराजित कर दिया। भाजपा के शीर्ष नेताओं ने प्रचार में हिंदुत्व के मुद्दे को जमकर भुनाया।