-दीपक रंजन दास
जब परिवार ढीले पड़ते हैं तो सबसे पहले बिगड़ता है लोगों का खान-पान। खाते-पीते परिवारों में एक नए प्रकार का कुपोषण पनपने लगता है। कोई फूलता चला जाता है तो किसी के शरीर में लवण का असंतुलन पैदा हो जाता है। हट्टे-कट्टे लोग चक्कर खाकर गिरने लगते हैं। घर की रसोई मजबूरी में पेट भरने के काम आती है वरना खाना या तो बाहर जाकर खाते हैं या फिर बाहर का खाना खुद चलकर घर आ जाता है। जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियों का टर्नओवर हजारों करोड़ रुपए हो जाता है। 2023 में जोमैटो ने 2416 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया। इसी तरह की एक और कंपनी स्विगी का मुनाफा 2023 में 40 फीसदी बढ़कर 8264 हो गया। भिलाई को कुछ समय पहले तक लोग रिटायर्ड लोगों का शहर मानते थे। सुबह-सुबह चहलकदमी करने वालों की संख्या इस रफ्तार से बढ़ चली थी कि सेक्टरों से लेकर पटरी पार के मोहल्लों तक में पार्क और पाथ-वे निर्माण प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर आ गए थे। इनके आस-पास जवारा रस से लेकर अंकुरित अनाज और चुकंदर का रस बेचने वालों के खोमचे लगने लगे थे। पर पिछले 10 सालों में शहर के गली-मोहल्लों में एक के बाद एक खाने की दुकानें खुलती चली गईं। कोरोना काल के बाद तो इनकी बाढ़ सी आ गई। दुकानों की बढ़ती संख्या का एक कारण यह भी है कि इधर भोजन चखने और उसे रिजेक्ट करने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। कहा जाता है कि भोजन के स्वाद का आपके मूड से गहरा संबंध होता है। यदि सोहबत अच्छी हो और मूड भी अच्छा हो तो साधारण और औसत भोजन भी अच्छा लगता है। मूड सड़ा हुआ हो तो भोजन में मीन-मेख निकालना और व्यवस्था को लेकर नुक्ता-चीनी करना स्वाभाविक हो जाता है। ऐसे लोग एक के बाद एक रेस्त्रां को रिजेक्ट करते चले जाते हैं। जिस भी समूह में ये घुस जाते हैं उन्हें कंफ्यूज कर देते हैं। ऐसे लोग खाने की नई दुकानों की तरफ दौड़ते हैं। फिर एक नई दुकान खुलती है और पुरानी रिजेक्ट हो जाती है। भोजन और रेस्त्रां रिजेक्ट करने वालों की यह भीड़ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, खाने की प्रत्येक दुकान चलती रहती है। कुछ लोग अपने व्यवहार से धंधा आगे बढ़ाते रहते हैं तो कुछ लोग नई साज-सज्जा के दम पर। कहीं 90 के दशक की तस्वीरें लोगों को खींच ले जाती है तो कहीं हीरो-हीरोइन की आदमकद तस्वीरें लोगों को आकर्षित करती रहती हैं। वैसे इनका भोजन से कनेक्शन कभी समझ में नहीं आया। पर लोग अपने मेहमानों को यह सब दिखाने के लिए भी रेस्त्रां लेकर जाते हैं। रही भोजन के स्वाद की गारंटी की बात, तो खाना रसोइया बनाता है। वह भी इंसान है। उसकी भी तबियत खराब हो सकती है। वह छुट्टी पर भी जा सकता है। क्या पता आप उसी समय वहां खाने गए हों।