-दीपक रंजन दास
पुलिस और कानून की अजब-गजब शब्दावली तो लोगों का मनोरंजन करती ही है, अपराधी गिरोहों का नामकरण करने में भी पुलिस का कोई सानी नहीं है। इस नामकरण में किसी ज्योतिष या कुंडली का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि गिरोह के चाल-चलन को आधार बनाकर उनका नाम रखा जाता है। किसी जमाने में कनपटी मार गिरोह खूब बदनाम हुआ था। गिरोह का मुखिया अपने टारगेट की कनपटी पर हथौड़ी से हमला करता था। 1977-78 में उसने एक साल में 70 लोगों की हत्या कर दी थी। ऐसे ही चड्डी-बनियान में अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों का नाम ही चड्डी-बनियान गिरोह पड़ गया। वैसा ही एक गिरोह चादर गिरोह के नाम से जाना जाता है। इसके सदस्य ठंड की दौरान दूसरे राज्यों के शहरों तक पहुंचते हैं। रात को चादर ओढ़कर बंद शटरों के आगे सो जाते हैं। फिर चादर की आड़ में ही ताला काटकर शटर उठाते हैं और उसके नीचे से लेटे-लेटे ही लुढ़कर अंदर हो जाते हैं। चोरी करने के बाद पुन: शटर गिरा देते हैं और शहर छोड़ देते हैं। मध्यप्रदेश के धार जिले में एक जनजातीय गिरोह है। नाम है पत्थर गैंग। ये अपने टारगेट पर पत्थर से हमला करते हैं और जब वह अचेत हो जाता है तो उसे लूट लेते हैं। गिरोह के कई सदस्य साथ-साथ घटना को अंजाम देते हैं और लूट का माल लेकर तितर-बितर हो जाते हैं। कुछ अपराधी गिरोह ऐसे भी हैं जो अपने शहरों या देश का नाम रौशन कर रहे हैं। इनमें बांग्लादेशी गैंग, झारखंड का साहबगंज गैंग, हरियाणा का मेवात गिरोह, ओडिशा का बलांगीर गिरोह, गंजाम गैंग, आदि शामिल हैं। इन गिरोहों में अकसर परिवार शामिल होते हैं। ये किसी शहर में जाने के बाद एक कमरा किराए पर लेते हैं और आसपास की रेकी करते हैं। मौका देखकर अपराध को अंजाम देते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। पुलिस की तमाम एडवाइजरी के बावजूद लोग अपने किरायेदारों की सूचना नहीं देते जिससे घटना के बाद सभी हाथ मलते रह जाते हैं। वैसे देश की कुछ जनजातियों को भी अपराधी होने का तमगा मिला हुआ है। अंग्रेजों ने 1871 में कानून बनाकर इन खानाबदोश जनजातियों को अपराधी घोषित कर दिया था। अफसोस, कि आज भी ये जनजातियां इसी श्रेणी में आती हैं। मध्यप्रदेश के कुछ गांव भी अपराधियों की नर्सरी के नाम से जाने जाते हैं। राजगढ़ जिले के कडिय़ा गांव में छोटी उम्र से ही बच्चों को अपराध की ट्रेनिंग दी जाती है। छोटे-छोटे बच्चों को खिड़कियों के रास्ते घर में घुसा दिया जाता है जो भीतर जाकर चटखनी खोल देते हैं। बच्चों को जेबकतरा, ब्लेडमार बनाया जाता है। ऐसे अपराधियों को समूह में बांटने के लिए पुलिस ने उनका नामकरण किया हुआ है। इससे उनके चाल, चरित्र और समूह का पता लग जाता है। फिलहाल ठंड का मौसम है इसलिए पुलिस ने लोगों को ऐसे गिरोहों के प्रति चौकन्ना रहने को कहा है।