-दीपक रंजन दास
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि इस्लाम को मानने वालों के भी एक हाथ में लैपटॉप और दूसरे हाथ में कुरान हो. उन्होंने मार्च 2018 में एक इस्लामी स्कॉलर कान्फ्रेंस के दौरान ये बातें कही थीं. इस मौके पर जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला-2 भी मौजूद थे. मोदी ने कहा था कि दुनिया भर के मजहब और मत भारत की मिट्टी में पनपे हैं. भारत की आबोहवा में उन्होंने जिन्दगी पाई और सांस ली है. इस्लाम की सच्ची पहचान बनाने में जॉर्डन की अहम भूमिका रही है. जॉर्डन एक ऐसी पवित्र भूमि है, जहां से खुदा का पैगाम पैगम्बरों और संतों की आवाज बनकर दुनिया भर में गूंजा. इसके बाद भाजपा के अनेक नेताओं ने इस लाइन को दोहराया भी था. पर मोदी जी, भाजपा के उन नेताओं और समर्थकों का क्या कीजियेगा जिनकी पढ़ाई लिखाई भी नफरत फैलाने के ही काम आ रही है. आतंक की नई तरकीबों को देखें तो प्रत्येक आतंकी हमले में खूब पढ़े लिखे इंजीनियरों और रक्षा वैज्ञानिकों का योगदान साफ-साफ दिखाई देता है. अर्थात, शिक्षा न तो अंधविश्वास को दूर कर सकती है और न ही मजहबी पागलपन को कम कर सकती है. हाल ही में एक तस्वीर को वायरल किया गया जिसमें कांग्रेस के एक ब्राह्मण प्रत्याशी एक मुस्लिम बुजुर्ग के पैर धोते दिखाई दे रहे हैं. दरअसल, ये तस्वीर अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की है. इस अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में पाण्डेय ने बुजुर्गों के पांव पखारे थे. इसमें सभी कौमों के बुजुर्ग शामिल थे – मुसलमान भी. छांट कर एक तस्वीर निकाली गई और उसे क्रॉप करके व्हाट्सऐप पर शेयर कर दिया गया. साथ में कैप्शन लिख दिया गया कि वोट की राजनीति के लिए एक कांग्रेसी ब्राह्मण, मुसलमान के पैर धो रहा है. पहले लोगों को ऐसा लगता था कि जो लोग पढ़ लिख नहीं पाते, कुटिल धर्मगुरू उन्हें बरगलाते हैं. पर अब तो पढ़े लिखे भी अनपढ़ों की ही भाषा बोल रहे हैं. जैसे-जैसे शिक्षा का विस्तार हो रहा है, अंधविश्वास की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं. एक खूब पढ़े लिखे और उच्च पद पर आसीन व्यक्ति ने बताया कि मध्यप्रदेश में एक ऐसा मंदिर है जहां अनुष्ठान करवाने वाले के दुश्मन का नाश हो जाता है और वह राजसत्ता को प्राप्त करता है. उन्होंने बताया कि चीन और पाकिस्तान के हमले के दौरान भी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों ने यहां गुप्त अनुष्ठान करवाया था, वरना सेना में कहां दम था. चुनावों में हार-जीत का फैसला भी ऐसे ही अनुष्ठानों से होता है. पर वहां अनुष्ठान करवाने का खर्च वर्तमान में लगभग एक करोड़ रुपए का बैठता है. छत्तीसगढ़ में भी ऐसे अनेक तंत्रसिद्धि के आसन हैं जहां अनुष्ठान करवाकर जीत सुनिश्चित की जा सकती है. लगता है, ऐसे अनुष्ठानों के लिए ही नेताओं को करोड़ों की काली कमाई करने के लिए विवश होना पड़ता है. क्योंकि इस खर्च को आय-व्यय के खाते में दर्शाया नहीं जा सकता.
Gustakhi Maaf: मोदी जी, इन पढ़े लिखों का क्या करें
