-दीपक रंजन दास
अंग्रेजी में एक कहावत है ‘ऐन ऐप्पल अ डे, कीप्स द डॉक्टर अवे! जिसका अर्थ है, प्रतिदिन एक सेब का सेवन करने से डॉक्टर को दूर रखा जा सकता है। सीधी भाषा में प्रतिदिन एक सेब का सेवन करने से लोग निरोग रह सकते हैं। अब यही बात ऐप्पल के फोन पर भी लागू हो रही है। ऐप्पल के सिक्यूरिटी फीचर्स तमाम अन्य मोबाइल कंपनियों से बेहतर बताए जाते हैं। ताजा मामला चुनावकाल में नेताओं के फोन में सेंध लगाने की है। जितने भी नेता ऐप्पल का आईफोन इस्तेमाल करते हैं, उनमें से कई नेताओं को ऐप्पल ने सूचित कर दिया है कि उनके फोन को टैप करने की कोशिश की जा रही है। इस मामले में छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा, टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत, कांग्रेस के सांसद शशि थरूर, आप के सांसद राघव चड्ढा के नाम अब तक सामने आए हैं। उपमुख्यमंत्री सिंहदेव ने अपने आईफोन पर मिले इस नोटिफिकेशन को शेयर करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ‘एक्सÓ पर लिखा – ये सियासत है या लानत। वे यहीं नहीं रुकते। वे भाजपा की फासीवादी सोच पर भी तल्ख टिप्पणियां करते हैं। दिल्ली में राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस कर इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि विपक्ष के खिलाफ यह साजिश रची जा रही है। दरअसल, भारत में फोन टैप करना गैरकानूनी है। इसके लिए जिम्मेदार या दोषी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला चलाया जा सकता है। फोन टैपिंग करवाने का अधिकार राज्यों में पुलिस के पास है। पर इसकी एक लंबी प्रक्रिया भी है। केन्द्र के स्तर पर इंटेलिजेंस ब्यूरो, सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, एनआईए, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, अनुसंधान और विश्लेषण विंग, सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय को है। पर यह सबकुछ ऑन रिकार्ड होता है। अब आते हैं बाबा के सवाल पर। क्या सियासत वाकई लानत है? इसका कोई सीधा-सीधा जवाब नही है। जो लोग राजनीति में रुतबे के लिए आते हैं, अपने खिलाफ हो रही ऐसी घटनाओं से उनका कद बढ़ता है। वे सतर्क भी रहते हैं। उनका फोन उनका सचिव उठाता है। जिस फोन पर वो निजी बातें करते हैं उसका नंबर लगातार बदलता रहता है। ये फोन किसी कार्यकर्ता या किसी नौकर के नाम पर पंजीकृत होता है। जो लोग पैसा कमाने के लिए राजनीति में आते हैं, वो ऐसी घटनाओं के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। तकलीफ केवल उन्हें होती है जो अपना सुख चैन केवल इसलिए दांव पर लगाते हैं कि वे देश सेवा करना चाहते हैं। जिनके पास लोगों के दु:ख -दर्द को दूर करने की तरकीबें होती हैं और वे उन्हें राजनीति के माध्यम से अमल में लाना चाहते हैं। शासन की ऐसी हरकतों से वो तिलमिला जाते हैं। उनके लिए उनका आत्मसम्मान किसी भी पद से कहीं बड़ा होता है।