-दीपक रंजन दास
भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थक प्रकट रूप से राजनीति में वंशवाद के खिलाफ हैं। उनके पेट में दर्द की सबसे बड़ी वजह भी यही है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेहरू प्रेम को भाजपा लगातार कोसती रही है। न केवल वह नेहरू पर सवाल उठाती रही है बल्कि महात्मा गांधी की हत्या करने वाले को भी महिमामंडित करने की कोशिश होती रही है। नेहरू स्वतंत्रता संग्राम के दौर से राजनीति में थे और आजादी के बाद 17 साल, अपनी मृत्यु तक प्रधानमंत्री रहे। उनकी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी इस दौरान लगातार उनके साथ साए की तरह बनी रही और उनकी स्वाभाविक उत्तराधिकारी बनी। इसे ‘वर्क-एक्सपीरियंसÓ का तोहफा भी माना जा सकता है। इंदिरा की हत्या के बाद बनी परिस्थिति में राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। राजनीति से दूर रहे राजीव को अपने भाई संजय की मृत्यु के बाद राजनीति में आना पड़ा था। इंदिरा और राजीव की तरह राहुल और प्रियंका भी राजनीतिक माहौल में पले-बढ़े। भाजपा के पास ऐसा कोई इतिहास नहीं है। इसलिए वह खोज-खोज कर ऐसे लोगों को राजनीति में लाती है जिनके साथ किसी ऐसे स्वातंत्र्य वीर का नाम जुड़ा हो, जिनका पूरा देश सम्मान करता है। भाजपा कुछ साल पहले सुभाष चंद्र बोस के पोते को राजनीति में लेकर आई थी। पर पिछले महीने उनका भी भाजपा से मोहभंग हो गया। भाजपा का परित्याग करते हुए उन्होंने कहा था कि इंडिया बनाम भारत कोई मुद्दा ही नहीं है। सरकार के पास इससे ज्यादा जरूरी काम होने चाहिए। अब भाजपा महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ को पार्टी में लेकर आई है। वे मेवाड़ के आखिरी महाराणा भगवत सिंह के पौत्र हैं। उनके पास प्रत्यक्ष राजनीति का कोई ‘वर्क एक्सपीरियंसÓ नहीं है। हालांकि उनके पिता सांसद रहे हैं। वैसे देश के नेतृत्व पर हमेशा ही नेहरू परिवार हावी रहा हो, ऐसा भी नहीं है। स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। जवाहर लाल नेहरू के बाद गुलजारी लाल नंदा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। फिर लालबहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री चुना गया था। उनकी मृत्यु के बाद नंदा दोबारा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इसके बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। उनके दो कार्यकाल के बाद पहले मोरारजी देसाई और फिर चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री चुना गया। 1980 में इंदिरा तीसरी बार देश की प्रधानमंत्री बनीं पर कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवेगौड़ा और इंदर कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने। 1998 में अटलजी प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। इसके बाद मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपने दो कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरे किये। 2014 में नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और अब उनका दूसरा कार्यकाल पूरा होने को है। जो इस सच से इत्तेफाक नहीं रखते, वो खुद को धोखा दे रहे होते हैं।
Gustakhi Maaf: वंशवाद का विरोध और पोता-पतोहू की तलाश
