भिलाई। टिकट की दावेदारी तो कोई भी कर सकता है, लेकिन टिकट मिलती उसे ही है जो उसके काबिल होता है। कांग्रेस की बात करें तो जिले की 6 विधानसभा सीट के लिए वैसे तो बड़ी संख्या में दावेदार सामने आए थे, लेकिन पार्टी ने जिन चेहरों पर दांव लगाया, उनके सामने बाकी सभी बौने साबित हुए। कांग्रेस ने बुधवार को अपनी दूसरी सूची जारी की। इस सूची के बाद जिले की सभी 6 सीटों पर पार्टी ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। प्रत्याशियों को देखें तो कांग्रेस के मुकाबले भाजपा पिछड़ती दिखती है। 2018 के चुनाव में जिले से कांग्रेस को 5 सीटें मिली थी। भाजपा के टिकट वितरण के बाद कार्यकर्ताओं में जो आंतरिक नाराजगी गहरा रही है, उसके चलते एक सीट बचाना भी मुश्किल दिखता है।
दुर्ग विधानसभा क्षेत्र की चर्चा करें तो यहां से पार्टी ने वरिष्ठ नेता अरुण वोरा पर एक बार फिर दांव लगाया है। वे दुर्ग से सातवीं बार भाग्य आजमाते नजर आएंगे। इससे पहले उन्होंने कुल 6 विधानसभा चुनाव लड़े हैं, जिनमें से 3 बार उन्हें जीत मिली। इस बार यदि वे जीत का परचम लहराने में कामयाब होते हैं तो लगातार जीत की हैट्रिक होगी। भाजपा ने इस सीट से एक अनाम चेहरे गजेन्द्र यादव को उतारा है। ऐसे में दुर्ग में अरुण वोरा और कांग्रेस के लिए माहौल पहले से बेहतर है। पिछले चुनाव में भाजपा ने तत्कालीन महापौर चंद्रिका चंद्राकर को उतारा था, जिसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा के लिए दुर्ग सीट आसान साबित हुई। ऐसा इसलिए क्योंकि महापौर के रूप में चंद्रिका चंद्राकर का परफारमेंस बेहद खराब रहा था। इससे उनकी छवि पर भी असर पड़ा, जिसका सीधा लाभ कांग्रेस प्रत्याशी अरुण वोरा को हुआ था। भाजपा के लिए इस बार हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं, क्योंकि उसके प्रत्याशी गजेन्द्र यादव को उनके पड़ोसी भी ढंग से नहीं जानते हैं। पिछली बार की ही तरह इस बार भी माना जा रहा है कि भाजपा ने दुर्ग शहर सीट कांग्रेस को तश्तरी में परोसकर दे दी है।
बेहतर छवि का मिलेगा लाभ
अपने लम्बे राजनीतिक कैरियर में अरुण वोरा सदैव बेदाग रहे हैं। उनकी छवि क्षेत्र में बहुत अच्छी है। इसके अलावा उनका क्षेत्र के लोगों से जीवंत सम्पर्क भी पूरे 5 वर्षों तक बना रहता है। यह विडंबना रही कि 2013 में जब वे निर्वाचित हुए तो भाजपा की सरकार थी। बावजूद इसके विपक्ष के विधायक के रूप में भी उन्होंने दुर्ग शहर के लिए अच्छा काम किया। 2018 में चुनाव जीतने के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो वोरा दुर्ग शहर को चमकाने के अभियान में लग गए। भाजपा के लोग खराब सड़कों का मुद्दा प्रमुखता से उठाते हैं, लेकिन यह देखना भी जरूरी है कि विस्तार पाते दुर्ग शहर की पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए घर-घर पानी पहुंचाना आवश्यक था। दुर्ग शहर के कई इलाकों को गम्भीर पेयजल संकट से उबारने के लिए जरूरी था कि लोगों को जलापूर्ति घर में ही और बेहतर तरीके से हो। इसलिए पानी की पाइप लाइन बिछाने के लिए सड़कों को खोदा गया। यह भी वोरा की ही उपलब्धि है कि शहर की ज्यादातर सड़कों का पुननिर्माण भी करा लिया गया है। इसके अलावा नगर निगम के माध्यम से वोरा ने पूरे शहर में अभूतपूर्व विकास के काम करवाए हैं।

कांग्रेस के निर्विवाद नेता
कांग्रेस पार्टी में अरूण वोरा को निर्विवाद नेता के रूप में जाना जाता है। भले ही इस बार कांग्रेस की टिकट के लिए बहुत सारे लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन यह सबको पता था कि टिकट के असल दावेदार वोरा ही हैं। कांग्रेस संगठन से लेकर उसके तमाम अनुशांगिक संगठनों में वोरा की गहरी पैठ है। अब जबकि उन्हें पार्टी ने टिकट दे दी है, जो सभी मिलकर उन्हें चुनाव जीतने के लि सामने आए हैं। कहने का आशय यह है कि दुर्ग सीट में कहीं कोई नाराजगी नहीं है और सब मिल-जुलकर काम कर रहे हैं। जाहिर है कि इसका लाभ भी वोरा को ही मिलेगा। इसके विपरीत भाजपा प्रत्याशी गजेन्द्र यादव के खिलाफ आंतरिक तौर पर आवाजें उठना शुरू हो गई है। दुर्ग में भाजपा कई धड़ों में बँटी हुई है। गजेन्द्र यादव संघ परिवार से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए उनके खिलाफ खुलकर कोई सामने नहीं आया है, लेकिन कार्यकर्ताओं में भीतर ही भीतर सुलग रही नाराजगी भाजपा के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकती है। पिछले दिनों गजेन्द्र यादव का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें भाजपा के कतिपय लोग घर-घर जाकर हार बाँटते नजर आते हैं। यह हार गजेन्द्र को पहनाने के लिए वितरित किए जा रहे थे। लोग यह भी पूछते रहे कि जिस व्यक्ति को माला पहनाने को कहा जा रहा है, वह कौन है? स्पष्ट है कि भाजपा ने एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया है, जिसका काम तो दूर, लोग नाम तक नहीं जानते हैं। इसके विपरीत अरुण वोरा से दुर्ग शहर का बच्चा-बच्चा परिचित है। इसी एक अंतर से परिणामों को समझा जा सकता है।
वोरा परिवार का इतिहास ही काफी
दुर्ग शहर में वोरा परिवार का नाम यदि सम्मान के साथ लिया जाता है तो इसकी सबसे बड़ी वजह इस परिवार द्वारा शहर हित में कराए गए काम हैं। पहले वरिष्ठ नेता स्व. मोतीलाल वोरा ने एक छोटे से नगर को शहर बनाया और उसके बाद इस शहर में विकास की गंगा उनके बहाई। आज भी दुर्ग शहर की कई इमारतें और प्रतिष्ठान स्व. मोतीलाल वोरा की दूरदृष्टि की गवाही देतीं हैं। स्वयं अरुण वोरा कहते हैं कि उनके परिवार के लिए दुर्ग शहर राजनीति का अखाड़ा नहीं है। जनता उन पर भरोसा करती है और उस भरोसे पर खरे उतरने के लिए वे भरसक प्रयास करते हैं। अरुण वोरा के मुताबिक, दुर्ग के प्रत्येक घर से उनके पारिवारिक संबंध हैं। यही संबंध वोरा परिवार की पूंजी है। अरुण वोरा कांग्रेस की टिकट पर सातवीं बार चुनाव लडऩे जा रहे हैं। उनका चुनाव अभियान भी शुरू हो रहा है। इससे पहले पार्टी स्तर पर उन्हें पहले ही संकेत कर दिया गया था। इसके बाद से ही चुनाव की आंतरिक तैयारियां चल रही थी। जैसे-जैसे चुनाव अभियान, मतदान तिथि तक पहुंचेगा, जनसम्पर्क अभियान भी पूरे शबाब पर होगा। इस बार भी कांग्रेस पार्टी एकजुटता से चुनाव लडऩे जा रही है।