-दीपक रंजन दास
‘सनातन’ का शाब्दिक अर्थ है – शाश्वत, यानी जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म को हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आरोप लगाया है कि घमंडिया गठबंधन सनातन को खत्म करने में लगा है। जो शाश्वत है, उसे कोई कैसे खत्म कर सकता है? या तो पहली बात झूठ है या फिर दूसरी बात असत्य। दरअसल, सनातन को लेकर देश में केवल बतोलेबाजियां की जा रही हैं। सनातन के नाम पर लोगों को भरमाने की कोशिशें की जा रही हैं। जो लोग दिन भर सनातन की बात करते हैं, खुद उन्हें सनातन को समझने की जरूरत सबसे ज्यादा है। सनातन धर्म स्पष्ट है। इसमें पितृ धर्म, मातृधर्म, पुत्रधर्म, राजधर्म, आदि सुस्थापित हैं। बहुत ज्यादा क्लिष्टता में जाने की जरूरत नहीं है। मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का जीवन उठाकर देख लें, सभी जवाब हाथ के हाथ मिल जाएंगे। प्रभु श्रीराम को जनता का अपार समर्थन प्राप्त था, बावजूद इसके उन्होंने पुत्रधर्म का पालन किया क्योंकि उस समय तक उनके पिता ही राजा थे। उनके लिए वनवास का मतलब वनवास था, उन्होंने किसी भी सुख सुविधा को स्वीकार करने में अपनी असमर्थता जताई। वनवास काल में भी उन्होंने राजपरिवार का सदस्य होने के धर्म का पालन किया और किसी भी अन्य राजा का सहयोग नहीं लिया। यहां तक कि सीता माता का अपहरण होने के बाद भी उन्होंने सुग्रीव, जामवंत आदि मित्रों के सहयोग से ही त्रिलोक विजयी लंकेश्वर को चुनौती दी। भाइयों के प्रति, माताओं के प्रति उनका समभाव हमेशा बना रहा। माता सीता को लेकर उन्होंने राजधर्म का पालन किया क्योंकि तब वे राजा बन चुके थे। माता सीता ने भी सहधर्मिणी धर्म का ही पालन किया। गृहस्थ धर्म का पालन करने के कारण ही सीता माता का अपहरण संभव हुआ। रावण की कैद में उन्होंने सती धर्म का पालन किया। बाली का वध करने के बाद श्रीराम ने राजपाट राजपरिवार के ही सुग्रीव को सौंपा। रावण का वध करने के बाद भी उसी राजपरिवार के सदस्य विभीषण को सत्ता सौंपी। सनातन में धर्म का पालन करने के लिए राजपाट त्यागने का, कष्टों को शिरोधार्य करने का और धर्म की रक्षा के लिए प्राणोत्सर्ग तक करने के प्रसंग आते हैं। एक वचन का मान रखने के लिए राजा बलि वामन को अपना राजपाट सौंपकर पाताल में चले जाते हैं। सनातन में दरिद्र को नारायण मान कर उसकी सेवा की जाती है। बलवान का पहला कत्र्तव्य निर्बल की सुरक्षा करना है। सनातन में बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था की भूमिकाएं तय थीं। एक आज का सनातन है जो छल-बल-कौशल से सत्ता हथियाना चाहता है। आलीशान जिन्दगी जीने वाले धर्मगुरू राजसी सिंहासनों पर बैठकर लोगों को हिन्दुत्व और सनातन समझा रहे हैं। गरीबों को मुफ्तखोर कहा जा रहा है। जनता को राहत देने वाली सरकारों को बदनाम किया जा रहा है। फैसला करें, असली सनातनी कौन?