-दीपक रंजन दास
आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस को यही लगता रहा है कि देश में एक बड़ा तबका वंचितों का है। इनके पास पर्याप्त भोजन, आवास एवं शिक्षा-चिकित्सा की सुविधा नहीं है। वह गरीबों के लिए ही योजनाएं बनाती रह गई। काश! उसे पता होता कि देश की जनता का विकास के इस मॉडल पर कभी भरोसा नहीं रहा। वह रहता तो इंडिया में था पर पूजा पाठ जम्बूद्वीपे, भरतखंडे, आर्यावर्ते… के नाम पर ही करता था। किसे पता था कि शकुन्तला-दुष्यंत के पुत्र भरत का भारत के नाम से कोई लेना देना नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की इंडिया शाइनिंग तक भाजपा भी इसी मुगालते में थी। पर अब उसने वह गलती सुधार ली है। वह जानती है कि घाटे में रेल चलाने का कोई मतलब नहीं है। लोगों को इमरजेंसी होगी तो वे हवाई जहाज से चले जाएंगे। अपनी कार या टैक्सी से चले जाएंगे। हो भी यही रहा है – पिछले साढ़े चार साल में छत्तीसगढ़ से होकर गुजरने वाली 67 हजार यात्री ट्रेनें रद्द कर दी गईं। त्यौहारों के समय ट्रेनों का निरस्त होना तो एक फैशन की तरह हो गया है। लोग हफ्तों पहले रिजर्वेशन कराकर भी यात्रा करने से वंचित होते रहे पर किसी ने ‘चूंÓ तक नहीं की। त्यौहारी सीजन में ट्रेनों की बानगी देखिए-दीपावली-2022 पर 24 यात्री ट्रेनें रद्द रहीं। शीतकालीन अवकाश के दौरान 36 ट्रेनों को कैंसिल किया गया। 15 अगस्त, 2022 को 62 ट्रेनें निरस्त रहीं जबकि रक्षाबंधन 2022 पर 58 और रक्षाबंधन 2023 पर 22 ट्रेनें एक-एक सप्ताह तक निरस्त रहीं। ट्रेनों के रद्द होने का यह सिलसिला 2020 में शुरू हुआ। 2020 में 32757, 2021 में 32151, 2022 में 2474, 2023 में अप्रैल तक 208 ट्रेनें रद्द रहीं। अगस्त 2023 में 24 ट्रेनों को रद्द कर दिया गया। लोगों ने आने जाने का खर्चा बचा लिया। ई-राखी और ई-कार्ड से काम चला लिया। अब तो केक, मिठाई और बूके भी ऑनलाइन डिलीवर हो जाते हैं। फिर भाग-दौड़ की जरूरत ही क्या है। शादी ब्याह से लेकर मरनी-धरनी पर लोग बेकार में ही इधर से उधर भागते फिरते हैं। कच्चा-बच्चा धरकर शादी ब्याह में आ धमकने वालों को भारतवर्ष की यह पीढ़ी अब बर्दाश्त नहीं कर पाती। वह डेस्टिनेशन वेडिंग चाहती है। मजे की बात यह है कि ट्रेनों के निरस्त होने का यह सिलसिला केवल यात्री ट्रेनों को ही प्रभावित करता रहा। माल गाडिय़ों का संचालन इससे अप्रभावित रहा। इस बीच लोगों को फ्लाइट की आदत पड़ गई। छत्तीसगढ़ के बच्चे बड़ी संख्या में स्तरीय उच्च शिक्षा के लिए हैदराबाद, पुणे, मुम्बई, बेंगलुरू, चेन्नई, नई दिल्ली, आदि शहरों को जाते हैं। उन्होंने एयरपोर्ट का रुख कर लिया। भिलाई के बच्चे हैदराबाद वाया मुम्बई और पुणे वाया दिल्ली यात्रा करने लगे। कांग्रेस देश के इस पोटेंशियल को भांप नहीं पाई। नहीं समझ सकी कि यह दौर बीमार शरीर को मेकअप से छिपा लेने का है।
Gustakhi Maaf: अब तक मुगालते में जीती रही कांग्रेस
