-दीपक रंजन दास
जीवन में सकारात्मकता का बहुत महत्व है। यह महत्व तब और बड़ा हो जाता है जब चुनौतियों से घिरे विश्व में हम चारों तरफ नकारात्मकता और नफरत को पांव पसारते देख रहे हैं। खुद को अच्छा साबित करने के लिए किसी और को खराब साबित कर रहे हैं। अपनी उपलब्धियों का मोल बढ़ाने के लिए दूसरों की उपलब्धियों का उपहास कर रहे हैं। अपनी परम्पराओं, अपनी सोच और अपनी प्राथमिकताओं पर गर्व करना अच्छी बात है पर इससे दूसरों की सोच, परम्परा और प्राथमिकताओं को गलत और खराब बताने का हमें कोई अधिकार नहीं मिल जाता। पर देश की राजनीति में पिछले कुछ समय से राजनीति नफरत की दलदली जमीन पर हो रही है। जैसे-जैसे यह कलुषित परिपाटी जोर पकड़ रही है, उसके पांव और शरीर उतनी ही तेजी से इस दलदल में धंसते चले जा रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सोच का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। दो दिवसीय बिलासपुर प्रवास पर पहुंची राष्ट्रपति ने चंद वाक्यों में अपने दिल की भावना को उजागर कर दिया। उन्होंने भूपेश बघेल को ‘सबसे बढिय़ा राज्य के सबसे बढिय़ा मुख्यमंत्री’ के रूप में संबोधित किया। राज्य की सराहना करने के साथ ही उन्होंने केन्द्र की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि हमारा देश नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है। उन्होंने कहा कि यदि ‘राम राज्य’ चाहिए तो ‘राम-सीता’ बनना होगा। राम और सीता दोनों ही त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति हैं। सतनाम और कबीर पंथ की इस पुण्यभूमि पर इससे अच्छी बातें नहीं कही जा सकती थी। कबीर दास जी ने कहा था – ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥’ पर भारत की राजनीति में अब केवल दूसरों की बुराई ढूंढने की कला ही शेष रह गई है। जिस छत्तीसगढ़ की कार्ययोजनाओं और उपलब्धियों की स्वयं प्रधानमंत्री प्रशंसा करते रहे हैं, जिस छत्तीसगढ़ को देश के अनेक राज्यों के मुकाबले बेहतर होने का प्रमाणपत्र दिया जाता रहा है, चुनाव आते ही राजनीति उसकी सभी उपलब्धियों को नकारने लगती है। राष्ट्रपति का अभिप्राय स्पष्ट है कि अच्छी बातों की सराहना होनी। सराहना से ऊर्जा मिलती है, लोग बेहतर करने के लिए प्रेरित होते हैं। उलाहना और आलोचना उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। दरअसल, प्रजापिता ईश्वरीय विश्वविद्यालय ‘द ईयर ऑफ पॉजीटिव चेन्ज’ की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ रहा है। जीवन और भविष्य के प्रति सकारात्मकता की जरूरत आज बड़ी शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है। राष्ट्रपति का मन होनहार बच्चों की आत्महत्या से व्यथित है। वे इसका कारण और समाधान ढूंढने का प्रयास करती हैं। वे कहती हैं, महान लोगों के जीवन से प्रेरणा लेना अच्छी बात है पर हमें अपनी रुचियों, अपनी क्षमताओं और सीमाओं को भी स्वीकार करना चाहिए। कठिनाइयों और बाधाओं को युक्तियों और श्रम से पार किया जा सकता है। बस अपने भीतर छिपी क्षमताओं को पहचानना होगा।
Gustakhi Maaf: सबसे बढिय़ा राज्य, सबसे बढिय़ा मुख्यमंत्री
