36 सीटों पर भाजपा की स्थिति बहुत खराब, बाकी बची 54 सीटों से बहुमत निकालना होगा बेहद मुश्किल
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पास मौजूद सर्वे की रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा
भिलाई (श्रीकंचनपथ न्यूज़)। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के पास छत्तीसगढ़ चुनाव को लेकर जो सर्वे रिपोर्ट पहुंची है, उसमें भाजपा की स्थिति को चिंताजनक बताया गया है। इस रिपोर्ट में 90 में से कुल 36 सीटों पर पार्टी के जीतने की कोई गुंजाइश नहीं बताई गई है। जबकि बाकी बची 54 सीटों में से ज्यादातर पर आमने-सामने की टक्कर की संभावना है। इन परिस्थितियों में सत्ता के लिए वांछित 46 सीटें जुगाडऩा भाजपा के लिए लगभग नामुमकीन माना जा रहा है। दरअसल, भाजपा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के जाल में बुरी तरह फंसकर रह गई है। सीएम भूपेश ने गांव, गरीब व किसानों को लेकर जो नीतियां अख्तियार की, उससे भाजपा चारों खाने चित्त है। हालांकि सत्तारूढ़ दल पर भी असंतोष का खतरा बरकरार है। बताते हैं कि कांग्रेस इस बार अपने कई विधायकों के टिकट काट सकती है। ऐसे में विधायक व उनके समर्थकों में उभरे असंतोष को संभालना पार्टी के लिए काफी दुष्कर होगा।
अब तक स्थानीय नेतृत्व के भरोसे चलती रही भाजपा का पूरा चुनावी कंट्रोल अब शीर्ष नेतृत्व ने अपने हाथों में ले लिया है। पिछले करीब दो महीनों में पार्टी आलाकमान ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उसमें एक तरह की बदहवासी दिखती है। अभी हाल ही में शाह ने छत्तीसगढ़ के नेताओं से लम्बी राजनीतिक चर्चा की थी। इस बैठक में चुनाव प्रभारी ओम माथुर, सह प्रभारी मनसुख मंडाविया, प्रदेश सह प्रभारी नितिन नबीन, प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, संगठन महामंत्री पवन साय, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह शामिल हुए। उसके अगले दिन पीएम मोदी भी राज्य के सांसदों से मिले और उनसे फीडबैक लिया। शाह जब प्रदेश के नेताओं से रूबरू थे, तब, बताते हैं कि उनके पास हालिया करवाए गए सर्वे की रिपोर्ट मौजूद थी। इसी सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर शाह ने चर्चा की। पार्टी के जानकारों के मुताबिक, सर्वे की रिपोर्ट में पार्टी की हालत दुरूस्त नहीं पाई गई है। इन रिपोर्टों के हवाले से बताया जा रहा है कि भाजपा की कुल 36 सीटों पर हालत बहुत खराब है। यानी इन 36 सीटों पर भाजपा के जीतने की संभावना नहीं के बराबर है। शायद यही वजह है कि शीर्ष नेतृत्व ने फैसला लिया है कि चुनावी ऐलान से पहले ही ऐसी सीटों के प्रत्याशी घोषित कर दिए जाएं, ताकि प्रत्याशी को अपने हिसाब से मैनेज करने में आसानी हो। इसके लिए कर्नाटक फार्मूले को सबसे बेहतर माना गया है।
गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से काफी पहले ही कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी थी। इसका नतीजा यह निकला कि प्रत्याशियों को मतदाताओं तक पहुंचने और चीजों को अपने हिसाब से करने को काफी वक्त मिल गया था। इसी फार्मूले के चलते कांग्रेस को चुनाव में काफी फायदा हुआ और वह सरकार बनाने में भी कामयाब रही थी। बताते हैं कि भाजपा अगले महीने यानी सितम्बर में इसी कर्नाटक फार्मूले के तहत कई सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है। 2018 के चुनाव में बस्तर, सरगुजा जैसे संभागों से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था। वहीं दुर्ग संभाग में भी नाममात्र की सीटें ही मिल पाईं थी। संभावना जताई जा रही है कि पार्टी के जेहन में आदिवासी इलाके और वहां की सीटें हो सकती हैं।

4 एजेंसियों का सर्वे जारी
जानकारों के मुताबिक, अमित शाह, ओम माथुर, शिवप्रकाश और जेपी नड्डा अलग-अलग सर्वे एजेंसियों से छत्तीसगढ़ में सर्वे करवा रहे हैं। इन चारों सर्वे रिपोर्ट में जिस व्यक्ति का नाम कॉमन होगा, उसे शार्टलिस्ट किया जाएगा। फिर मंडल अध्यक्षों के माध्यम से संभाग प्रभारियों से मांगे गए दो नाम में अगर वह नाम होगा, तब उसे फाइनल लिस्ट में रखा जाएगा। इसके बाद फाइनल किए गए उम्मीदवार के बारे में फिर सर्वे करवाया जाएगा। उम्मीदवार के बारे में जीत हासिल करने की रिपोर्ट आएगी, तभी उसे प्रत्याशी बनाया जाएगा। जिस सीट पर एक नाम कॉमन नहीं मिला, वहां चारों सर्वे एजेंसियों से दोबारा रिपोर्ट मांगी जाएगी। भाजपा के जानकारों की मानें तो छत्तीसगढ़ में भाजपा कोंटा, सीतापुर, खरसिया और कोटा में कभी नहीं जीत पाई। इसके अलावा मरवाही और पाली तानाखार सीटें भी राज्य बनने के बाद से अब तक भाजपा को नसीब नहीं हुई है। सूत्रों की मानें तो सितंबर में जारी होने वाली पहली सूची में इन छह सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा हो जाएगी। इस सूची में कुछ ऐसी सीटों के प्रत्याशी हो सकते हैं, जहां भाजपा पिछले 2 चुनाव से लगातार हार रही है।
रणनीति बनाने में होती है आसानी
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि कमजोर सीटों पर पहले सूची होने का बड़ा लाभ होता है। प्रत्याशी का नाम आते ही गुटबाजी पहले ही पता चल जाती है, जिसे समझाकर शांत किया जा सकता है। विपक्ष की कमियां और पार्टी को लेकर लोग क्या पसंद कर रहे हैं यह भी पहले पता चल जाता है। इससे रणनीति बनाने में आसानी होती है। इधर, कांग्रेस भी इस बार कई कड़े फैसले लेने के मूड में है। बताते हैं कि कई बार आगाह करने के बाद भी कई विधायकों ने क्षेत्र में अपनी स्थिति में सुधार नहीं किया है। उनकी रिपोर्ट लगातार खराब ही आ रही है। ऐसे विधायकों के टिकट काटे जाने की पूरी तैयारी है। बताया जाता है कि प्रदेश नेतृत्व की ओर से ऐसे विधायकों को संकेत भी कर दिया गया है। कई विधायकों ने आलाकमान तक जुगाड़ लगाने की भी कोशिश की है। हाल ही में उपमुख्यमंत्री टीएस बाबा ने स्पष्ट कहा था कि कई विधायकों का परफारमेंस बेहद कमजोर है। सीएम भूपेश बघेल ने भी नए लोगों को टिकट देने के संकेत दिए थे। इसके पहले पूर्व प्रभारी पीएल पुनिया ने भी विधायकों के खराब प्रदर्शन की बात कही थी।