-दीपक रंजन दास
रेलवे का उन्नयन हो रहा है। नागपुर से दुर्ग आने में ट्रेन को 6 से 8 घंटे लग रहे हैं। दुर्ग से बेंगलुरू जाने वाली ट्रेन 24 घंटे लेट पहुंच रही है। कभी पटरियां उखड़ रही हैं तो कभी ट्रेन डी-रेल हो रही है। कभी सिग्नल फेल हो रहा है, ट्रेनें आपस में भिड़ रही हैं। पर देश एक अजीब से फीलगुड के दौर से गुजर रहा है। वह खुश है कि देश में अल्ट्रामाडर्न ट्रेनें चल रही हैं। इधर, लोको पायलट अमानवीय परिस्थितियों में काम कर रहे हैं और उधर एयरकंडीशन्ड लोको केबिनों की तस्वीरें छप रही हैं। रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं को लेकर भी यही फीलगुड काम कर रहा है। मुख्य प्लेटफॉर्म पर एस्केलेटर लगे हैं, शेष यात्री प्लेटफॉर्म पर रैम्प और लिफ्ट लगे हैं। यह और बात है कि दोनों सुविधाएं मर्जी की मालिक हैं। यात्री सुविधाओं का मतलब केवल बैठने की जगह, साफ सुथरे प्लेटफॉर्म और वाशेबल एप्रन नहीं होता। आज भी अधिकांश प्लेटफॉर्मों पर न तो बुक स्टाल हैं और न ही कैन्टीन। यह सब एक नम्बर प्लेटफॉर्र्म पर ही होता है। पहले सभी प्लेटफॉर्मों पर कुछ-न-कुछ सुविधाएं तो होती ही थीं। खाने-पीने की वस्तुओं को लेकर नए नियम क्या बने, अधिकांश स्टेशनों पर खाने योग्य नाश्ता मिलना ही मुश्किल हो गया। एक बड़ा दर्द रेलवे स्टेशनों की पार्किंग का भी है। लोग ट्रेनों से यात्रा बाद में करते हैं, पहले वो रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं। जो लोग अपने वाहनों से स्टेशन पहुंचते हैं, उन्हें पार्किंग भी करनी होती है। इधर ट्रेनें लेट हो रही हैं और उधर पार्किंग वाले एक्स्ट्रा पैसे वसूलना शुरू कर देते हैं। ट्रेनों के विलंब से चलने का खामियाजा भी यात्री भुगत रहा है। ऐसा नहीं है कि लोग चार-पांच घंटा पहले आकर स्टेशनों पर डेरा डाल रहे हैं। ‘व्हेयर इज माइ ट्रेनÓ ऐप पर ट्रेन का लोकेशन देखने के बाद स्टेशन पहुंचने पर भी लोगों को घंटों ट्रेन के आने का इंतजार करना पड़ रहा है। दुर्ग स्टेशन की बात करें तो ट्रेनों को 10-12 किलोमीटर दूर स्थित रसमड़ा स्टेशन से दुर्ग पहुंचने में भी डेढ़ दो घंटे लग रहे हैं। रविवार को दुर्ग और पावर हाउस रेलवे स्टेशन को लेकर कुछ घोषणाएं हुई हैं। अगले 50 साल की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए योजना बनाई गई है। यह दूरदर्शिता है जिसका स्वागत होना चाहिए। आज शहरी क्षेत्रों के रेलवे स्टेशन शहर के बीचों बीच फंस गए हैं। स्टेशनों के दोनों तरफ आबादी क्षेत्र है। इसलिए दोनों तरफ मुख्य गेट, पार्किंग की सुविधा और टिकट काउंटर होने चाहिए। पावर स्टेशन पर यह सुविधा उपलब्ध है पर दुर्ग स्टेशन का उत्तरी छोर आज भी मालधक्का ही बना हुआ है। इसे रसमड़ा शिफ्ट कर दिया जाएगा। इसके बाद इधर भी एक मुख्य द्वार होगा जिसके साथ विशाल पार्किंग भी होगी। इससे एक विशाल आबादी को ट्रेन पकडऩे के लिए दुर्ग शहर की तरफ से घूमकर नहीं आना होगा।
Gustakhi Maaf: गलती किसी की, सजा किसी को
