-दीपक रंजन दास
शासन ने एक बार फिर यातायात सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है. सभी जिलाधीशों और जिला पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित किया गया है कि वे शैक्षणिक संस्थानों में जाकर यातायात सुरक्षा के नियमों का कड़ाई से पालन करवाएं. अगर पुलिस प्रशासन ने इस निर्देश को सीरियसली ले लिया तो 90 प्रतिशत से ज्यादा वाहन थाने में खड़े मिलेंगे। अधिकांश लोगों के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है। वैसे, जिनके पास लाइसेंस है भी, उन्हें भी गाड़ी चलाने की तमीज नहीं है। इनमें कम उम्र के किशोरों से लेकर खूब पढ़े-लिखे नौकरीपेशा लोग तक शामिल हैं। मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार 16 साल से ऊपर के किशोरों को टेम्पररी या लर्नर लाइसेंस दिया जा सकता है। इससे ये गाड़ी चलाना सीख सकते हैं। पर ऐसी गाडिय़ों के आगे पीछे लाल रंग में अंग्रेजी का ‘L’ अक्षर लिखवाना होता है। भारतीय सड़कों पर ऐसे चिन्ह केवल कारों में ही दिखाई देते हैं। 18 साल से कम उम्र के किशोर गियर वाली कोई भी गाड़ी नहीं चला सकते। उन्हें बिना गियर की 50 सीसी क्षमता वाली गाडिय़ां ही चलाने की इजाजत होती है। बैटरी चलित स्कूटरों को बिना लाइसेंस के भी चलाया जा सकता है, बशर्ते कि उनकी रफ्तार अधिकतम 25 किलोमीटर प्रति घंटा हो। दुपहिया चलाते समय हेलमेट लगाना अनिवार्य है। वाहन में इंडीकेटर और रियर-व्यू मिरर का सही हालत में होना भी जरूरी है। पर ये नियम केवल किताबों में ही हैं। हकीकत में मिडिल क्लास परिवारों के बच्चे 110 सीसी की स्कूटी से स्कूल-कालेज जाते हैं। कुछ बच्चे 4-5 गियर की बाइक भी चलाते हैं। अधिकांश गाडिय़ों में रियर व्यू मिरर नहीं होते। लोग सिर-मुंह लपेटकर दुपहिया चलाते हैं पर हेलमेट नहीं पहनते। लोग देर से निकलते हैं और जल्दी पहुंचना चाहते हैं, लिहाजा स्पीड लिमिट का कोई मतलब नहीं। लाल बत्ती पर सरकते-सरकते लोग बीच सड़क तक पहुंच जाते हैं। सयाने ड्राइवर मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी रेंगाते हैं। जैसे ही कोई ओवरटेक करने की कोशिश करता है, अपनी रफ्तार बढ़ा लेते हैं। अधिकांश लोग ओवरटेक करने के बाद अगली गाड़ी के सामने आ जाते हैं। लेफ्ट टर्न के लिए भी ओवरटेक करके गाड़ी मोड़ देते हैं। सड़क किनारे खड़ी गाडिय़ां बिना रियर व्यू मिरर देखे सड़क पर चढ़ आती हैं। दरअसल, अंग्रेजों के जाने के बाद एक दो पीढ़ी तक तो अनुशासन का असर बना रहा पर तीसरी पीढ़ी तक आते-आते इसकी पकड़ ढीली पड़ गई। गाड़ी अब जरूरत कम और स्टेटस सिम्बल ज्यादा है। पड़ोसी का बच्चा अगर स्कूटी लेकर जाता है तो अपना बच्चा बाइक लेकर जाना चाहिए। स्कूल वाले सख्ती करें तो पेरेन्ट्स नाराज, पेरेन्ट्स सख्ती करें तो बच्चे नाराज। कोई किसी की सुनकर राजी नहीं। पेरेन्टिंग का प्रवचन सुनने-सुनाने वाले ‘प्रो-औलाद पेरेन्ट्स’ की स्थिति अब बेचारों वाली हो गयी है। जिले के पूर्व एसपी ने ट्रैफिक को लेकर खूब मशक्कत की पर किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
Gustakhi Maaf: ‘ट्रैफिक सेफ्टी’ की किसी को नहीं पड़ी
