नेताओं ने संगठन को बौना बनाया, समर्थकों के लिए पार्टी से ज्यादा नेता अहम्
भिलाई। वरिष्ठ नेताओं के लगातार दौरों के बाद भी भाजपा को आक्सीजन नहीं मिल पा रहा है। स्वयं को कैडरबेस और अनुशासित बताने वाली इस पार्टी की हालत आज यह है कि उसके कार्यकर्ता पार्टी से ज्यादा अपने नेताओं को तवज्जो दे रहे हैं। संगठन पूरी तरह ध्वस्त पड़ा हुआ है। जो थोड़े-बहुत कार्यकर्ता बचे हैं, वे भी पार्टी-संगठन से बेजार (खिन्न) हैं। हास्यास्पद है कि बावजूद इसके पार्टी के भीतर हर कोई स्वयं को टिकट का दावेदार मानता और बताता फिर रहा है।
15 साल तक सत्ता-सुख भोगने वाली भाजपा के स्थानीय नेता अब भी जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। इन नेताओं के लिए पार्टी हाशिए पर है। जमीन छोड़कर आसमान निहारने वाले ये नेता, पार्टी को बुलंदियों पर पहुंचाने के बजाए अपना कद बढ़ाने में लगे रहे है। ठीक यही स्थिति इन नेताओं के समर्थकों की भी है। वे भी पार्टी के प्रति निष्ठा और समर्पण दिखाने के बजाए अपने नेता को खुश करने में लगे रहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि नेता को खुश कर वे मनोवांछित फल हासिल कर पाएंगे। दरअसल, अपने नेता में किसी समर्थक को भावी सीएम नजर आ रहा है तो किसी को मंत्री या लाभ का पद। कई समर्थक तो टिकट की प्रत्याशा में भी नेता की चाटुकारिता में व्यस्त हैं। फजीहत पार्टी की हो रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को दुर्ग जिले से महज एक सीट मिली थी। जिले के जितने भी कद्दावर नेता हैं, उन्हें इस बात पर मंथन करना चाहिए कि बाकी की सीटों को कैसे कब्जाया जाए? लेकिन इस ओर ध्यान देने के बजाए पार्टी के नेता इस गुणा-भाग में लगे रहते हैं कि दूसरे गुट के व्यक्ति को टिकट न मिल जाए।
वैसे तो दुर्ग जिले में भाजपा के दो सांसद मौजूद हैं। वरिष्ठ नेताओं के लगातार दौरों के बीच इन सांसदों से पूछा जाना चाहिए कि इन्होंने पार्टी की मजबूुती के लिए अब तक क्या किया? खासकर तब जबकि प्रदे्रश में पार्टी विपक्ष में है। गुटबाजी को बढ़ावा देकर और बंगलों में बैठकर कार्यकर्ताओं की राजनीति करने से पार्टी का भला तो होने से रहा। इस पर भी अपेक्षाकृत कम अनुभवी और भाजपा की रीति-नीति से कम वास्ता रखने वाले सांसद विजय बघेल को घोषणा-पत्र समिति का संयोजक बनाना तथाकथित बड़े नेताओं के गले नहीं उतर रहा है। माना जाता है कि कांग्रेस को अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्ता में लाने का श्रेय उसके चुनावी घोषणा-पत्र को जाता है। ऐसे में भाजपा में विजय बघेल को इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना बघेल विरोधियों के लिए असह्य है। ऐसे समय में तो और भी ज्यादा, जबकि महत्वाकांक्षाएं सीएम का पद हो।

…इसलिए घटता गया जनाधार
दुर्ग जिले में भाजपा संगठन पर लम्बे समय तक डमी लोगों को बैठाया जाता रहा। जबकि भाजपा में सत्ता से ज्यादा संगठन का महत्व है। पार्टी के नेताओं ने इस बात पर चिंतन भी नहीं किया कि इससे संगठन बुरी तरह बर्बाद हो जाएगा। एक के बाद एक गैर या कम अनुभवी लोगों को दुर्ग और भिलाई में संगठन की कमान सौंपी जाती रही। नतीजा यह निकला कि कैडर ध्वस्त हो गया। कुछ महीनों पहले पार्टी के खस्ताहाल को देखते हुए जितेन्द्र वर्मा को दुर्ग जिला संगठन की जिम्मेदारी दी गई। वर्मा ने अपने स्तर पर संगठन को मजबूती देने की कोशिश की, किन्तु सबको साथ लेकर चलने और कठिन फैसले न ले पाने की वजह से वे भी असहाय हो गए। कमोबेश यही हालत भिलाई जिला संगठन में भी है। यहां पार्टी ने कड़ा फैसला लेते हुए बृजेश बिचपुरिया को संगठन की कमान सौंपी, लेकिन वे भी संगठन में प्राण नहीं फूंक गए। दोनों जिला संगठनों में वर्तमान हालात यह है कि अध्यक्ष का दायित्व संभालने वाले लोग पार्टी के बजाए अपना कद बढ़ाने में लगे हैं। पार्टी संगठन को लगता था कि जितेन्द्र वर्मा और बृजेश बिचपुरिया को जिलाध्यक्ष बनाने से संगठन के दिन बहुरेंगे, किन्तु इन दोनों के अपने-अपने गुट खड़े हो गए। जो कार्यकर्ता सांसदों, विधायक या पूर्व मंत्री के यहां हाजिरी लगाने से परहेज करते थे, अब वे इन जिलाध्यक्षों के प्रति निष्ठावान हो गए हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि चुनावी तैयारियों के बीच पार्टी का संगठन कहां खड़ा है?
संगठन से भी टिकट की दावेदारी
माना जाता रहा है कि पार्टी में यदि किसी को संगठन का दायित्व सौंपा गया है तो वह संगठन के लिए ही काम करेगा। मुख्य रूप से संगठन को इतना मजबूत बनाएगा कि चुनाव के वक्त कार्यकर्ता, प्रत्याशी के लिए दिन-रात एक कर दें। लेकिन यहां भिलाई और दुर्ग दोनों जिला संगठन के प्रमुख स्वयं टिकट के दावेदार बताए जा रहे हैं। चर्चा है कि दोनों जिलाध्यक्षों ने संगठन को अपनी भावी पारी के हिसाब से तैयार किया है। मसलन, दुर्ग जिलाध्यक्ष जितेन्द्र वर्मा पाटन क्षेत्र के रहवासी हैं। वे यहां से विधानसभा टिकट की मांग भी करते रहे हैं। वे इस बार भी टिकट की प्रत्याशा में हैं। इसी तरह भिलाई जिलाध्यक्ष बृजेश बिचपुरिया वैशाली नगर क्षेत्र से टिकट के आकांक्षी हैं। मजे की बात है कि इन दोनों जिलाध्यक्ष के पास ऐसे लोगों की भीड़ ज्यादा है, जो स्वयं को टिकट का दावेदार मानते हैं। दुर्ग जिलाध्यक्ष के आसपास रहने वाले कई लोग दुर्ग शहर, दुर्ग ग्रामीण से कतार में हैं। वहीं बिचपुरिया के यहां भी वैशाली नगर और अहिवारा क्षेत्र के कई दावेदार डेरा जमाए हैं। इनमें से ज्यादातर दावेदारों को दोनों सांसदों के यहां उपस्थिति दर्ज कराते भी देखा गया है।




