-दीपक रंजन दास
आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है. भारत में तम्बाकू को कैंसर का जनक माना जाता है। इसलिए तम्बाकू की बात हो और कैंसर की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। पर दुनिया यहीं नहीं ठहरी हुई, वैज्ञानिक यहीं नहीं ठहरे हुए। तम्बाकू से मुख, गले और फेफड़े के कैंसर का सीधा संबंध है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार, 2020 में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 13,92,179 थी और यह 2021 में बढ़कर 14,26,447 और 2022 में 14,61,427 हो गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2018 में एक अनुमान पेश किया था जिसके मुताबिक 2025 तक भारत में प्रति 10 व्यक्ति एक को कैंसर होगा और 15 में से एक कैंसर रोगी की मौत हो जाएगी। आईसीएमआर के एक अन्य अनुसंधान के मुताबिक पूर्वोत्तर के राज्यों में कैंसर 25 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है। कैंसर के सर्वाधिक मामले मुख या ओरल कैंसर के होते हैं। इसके लिए धूम्रपान के साथ ही ओरल सेक्स भी बराबर का हिस्सेदार है। दुनिया भर में होने वाले शोध इसे साबित करते हैं। ओरल कैंसर में ह्यूमन पैपिलोमा वायरस HPV का भी बड़ा योगदान है। डीप फ्रेंच किस और ओरल सेक्स के द्वारा यह वायरस मुंह या गले तक पहुंच सकता है। सेक्स के दौरान लगने वाली चोटें, मल्टीपल सेक्स पार्टनर्स भी गर्भाशय ग्रीवा कैंसर का कारण बन सकते हैं। पेट के अधिकांश कैंसरों का संबंध बेतरतीब उपवास, बिगड़ी हुई भोजन सारणी, फास्ट फूड, जंक फूड, ड्रिंक्स और सुपर टेस्टी फूड से है। जिन लोगों में पेट के कैंसर पाए गए उनमें सर्वाधिक का संबंध खानपान की बुरी आदतों से था। इसका दूसरा सबसे बड़ा कारक खराब लाइफ स्टाइल है। शोध बताते हैं कि आरामतलबी के कारण शरीर प्राकृतिक रूप से कमजोर हो रहा है। उसकी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली बिगड़ रही है। देश में सर्वाधिक पुरुष रोगी मुख, ग्रीवा और फेफड़े के कैंसर के शिकार पाए जाते हैं जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैंसर के मामले सर्वाधिक है। वैज्ञानिकों ने कैंसर में आनुवांशिकी (माता-पिता से आने वाले) कैंसर की भी पहचान कर ली है। अर्थात कैंसर के खिलाफ युद्ध केवल तम्बाकू के पीछे लाठी लेकर घूमने से नहीं जीता जा सकता। वैसे भी तम्बाकू का आगमन भारत में अंग्रेजों के जरिए हुआ। अंग्रेजों ने गांजा को प्रतिबंधित किया और तम्बाकू को लाइफ स्टाइल से जोड़ कर उसका व्यापार शुरू किया। ठीक उसी तरह जिस तरह उन्होंने भारतीयों को चाय पीना सिखाया। सस्ते नशे ने महंगे नशे को चलन से बाहर कर दिया। आज वैज्ञानिक मानते हैं कि कोरोना हो या कैंसर, दोनों को अच्छी लाइफ स्टाइल और बेहतर इम्यून सिस्टम से ही मात दिया जा सकता है। कैंसर के कुछ मामलों में वैक्सीन हमारी मदद कर सकता हैं। जल्द निदान से जीवन संभव है, पर यह महंगा है और लाइफ की क्वालिटी भी कम्प्रोमाइज होती है।
Gustakhi Maaf: और हम तम्बाकू के पीछे पड़े रह गए




