-दीपक रंजन दास
भिलाई नगर पालिक निगम ने उद्योगों को प्रापर्टी टैक्स में राहत देने का फैसला किया है. जैसा कि हमेशा होता है, विपक्ष को यह पसंद नहीं आया और उसने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। विपक्षी भाजपा के पार्षदों ने कहा है कि यदि उद्योगों का टैक्स माफ किया जा सकता है तो वहां काम करने वाले गरीबों का भी टैक्स माफ किया जाना चाहिए। सही है, यदि बड़ों को राहत दी जा सकती है तो छोटों को भी इसका लाभ मिलना ही चाहिए। दरअसल, यही कम्युनिस्ट मानसिकता है, जिससे देश कभी उबर नहीं पाया। आरोप चाहे कांग्रेस पर लगते रहे हों पर सभी पार्टियां चुनावी लाभ के लिए कम्युनिस्ट लाइन पर ही चलती है। अब आते हैं हकीकत पर। जब केन्द्र सरकार ने बड़े कर्जदारों के बैंक ऋण बट्टा-खाते में डाल दिये (राइटऑफ कर दिये) तब कांग्रेस ने यही आरोप मोदी सरकार पर लगाए थे। वह हंगामा अभी तक चल रहा है। कांग्रेस ने कहा कि साढ़े आठ साल में मोदी सरकार ने नई नीतियों के तहत बड़े उद्योगपतियों को लाभान्वित किया। माफ की गई (राइटऑफ की गई) यह राशि 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। इसपर केन्द्र सरकार ने सफाई दी कि सरकारी बैंकों से बड़ा कर्ज लेने वाले हमेशा बड़े उद्योगपति ही होते हैं। जब ये ऋण गैरनिष्पादित (एनपीए) हो जाते हैं तो उन्हें माफ कर बैंक अपने खातों का संधारण करते हैं। ऐसे ऋणों को कांग्रेस की सरकारें भी माफ करती रही हैं। इसपर कांग्रेस का कहना था कि सरकारी बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियां यूपीए शासनकाल में 5 लाख करोड़ रुपए थीं। मोदी के कार्यकाल में एनपीए बढ़कर 18।28 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह 365 फीसदी का उछाल है। नए नियमों के तहत इनसाल्वेंसी बोर्ड ने 542 मामलों को निपटाया है। इससे 70 प्रतिशत कर्ज लुप्त हो गया। कर्जा नहीं चुकाने वाले उद्योगपतियों का नाम सार्वजनिक करने से रिजर्व बैंक ने इंकार कर दिया है। उद्योगपतियों को लेकर कम्युनिस्ट मानसिकता कहती है कि ये लोगों का शोषण करते हैं। रोजगार उपलब्ध कराने के नाम पर उद्योगपति स्वयं तो मालामाल हो जाते हैं पर जिन्हें वह रोजगार उपलब्ध कराते हैं वो “हैण्ड टू माइथ” की जिन्दगी जीते हैं। यानी कि लोग जितना कमाते हैं वह सिर्फ पेट भरने के ही काम आता है। कम्युनिस्ट इसे शोषण मानते हैं। चुनाव के वक्त सभी पार्टियां इसे शोषण मानती हैं पर सत्ता में आते ही परिभाषाएं बदल जाती हैं। बड़े उद्योगपतियों के कर्ज माफ हो जाते हैं और सरकारी बैंकों की हालत खराब हो जाती है। अब, भिलाई नगर निगम के पास किसी का कर्ज माफ करने की क्षमता तो नहीं है पर वह यदि संपत्ति कर में थोड़ी राहत देकर उद्योग हितैषी बनना चाहती है तो इसमें बुराई क्या है? आखिर ये उद्योग भी तो लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। भिलाई के लिये तो यही अडानी हैं, यही अंबानी हैं।
Gustakhi Maaf: उद्योगों को प्रापर्टी टैक्स में राहत
