-दीपक रंजन दास
राज्य के कुछ हिस्सों से खबर आ रही है कि हिन्दू संगठन लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे गैर हिन्दू समुदायों की दुकानों से सामान न खरीदें. कहीं-कहीं इन संगठनों ने संकल्प भी लिया है. कोरबा के एक व्यापारी ने लोगों से अपील की है कि वे केवल अपने ही धर्म के लोगों को नौकरियां दें. सरगुजा जिले से एक वीडियो सामने आया है जिसमें कुछ लोग गैर हिन्दुओं की दुकान से सामान नहीं खऱीदने की अपील कर रहे हैं. अब जगदलपुर से एक वीडियो सामने आया है जिसमें भाजपा और विहिप के नेता लोगों से गैर-हिन्दुओं की दुकानों से सामान नहीं खरीदने का संकल्प ले रहे हैं. वैसे आर्थिक बहिष्कार का यह टोटका पुराना है. पहले इसका उपयोग अपने ही समुदाय के लोगों को अलग-थलग कर उन्हें गांव से निकालने के लिए किया जाता था. ऐसा उन लोगों के साथ किया जाता था जो या तो समाज की बात नहीं मानता था या फिर गांव की पंचायत के किसी आदेश का पालन नहीं कर पाता था. ऐसे लोग गांव-बिरादरी से बेदखल होकर दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो जाते थे. इसे पौनी पसारी बंद करना कहते थे. ऐसा एक मामला दो साल पहले भी खल्लारी थाने में दर्ज हुआ था. अब ऐसे मामलों में कानूनी उपचार उपलब्ध हैं. ऐसे मामलों में गांव वालों का पलड़ा ही भारी होता था क्योंकि पौनी पसारी इक्का-दुक्का लोगों या परिवारों की बंद की जाती थी. उसपर समाज का दबाव बन जाता था और वह समाज के आगे समर्पण कर देता था. पर इस बार मामला अलग है. इस बार समुदायों को निशाने पर रखा गया है. एक समुदाय की पौनी पसारी बंद होगी तो वह चुप नहीं बैठेगा. ऐसा करना न केवल गैरकानूनी है बल्कि संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है. जो लोग इस देश पर धर्म के बहाने कब्जा करने चाहते हैं, देखने में उनकी आबादी ज्यादा भले ही लगती हो पर हैं वो अल्पसंख्यक. जिन्हें अपने साथ मिलाकर वो अपना संख्या बल दिखाना चाहते हैं, उनके हाथ का तो वो पानी तक नहीं पीते थे. उनका साया मात्र पड़ जाने पर कुलीन दोबारा स्नान करते थे. सिर उठाने की इनकी छोटी सी कोशिश को बेरहमी से कुचल देते थे. यही कारण है कि संविधान लागू होने के बाद भी बहुजन समाज के नाम पर राजनीति संभव हुई. सवाल यह उठता है कि आखिर छत्तीसगढ़ में इस तरह की राजनीति की जरूरत क्यों पड़ी? जाहिर है कि विपक्ष एक भी ऐसा मुद्दा उठाने में अब तक विफल रहा है जो सत्ता को असहज करता हो या उसे पहले से बुरी सरकार साबित करता हो. अब उसके पास यही एक आखिरी रास्ता बचा है. घिर जाने पर तो बिल्ली भी शेरनी हो जाती है, किसी का रोजगार छीन लेने पर वह क्या-क्या कर सकता है, इसका अंदाजा लगा पाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है.
Gustakhi Maaf: हरकतें बता रहीं कि हताश है पार्टी
