भिलाई। पेशाब में खून जाने पर कुछ लोग कूदकर इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि यह यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन यूटीआई का मामला है। संक्रमण का इलाज शुरू कर दिया जाता है और कई दिन इसे उधेड़बुन में गुजर जाते हैं। जब तकलीफ बढ़ती चली जाती है तब जाकर लोग नेफ्रोलॉजिस्ट के पास पहुंचते हैं। कई बार यह एक गंभीर बीमारी के लक्षण होते हैं जिसका तत्काल इलाज कर किडनी को बचाया जा सकता है।
वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ विजय वच्छानी ने बताया कि कुछ दिन पहले एक 40 वर्षीय महिला को मित्तल हॉस्पिटल लाया गया। महिला का पिछले लगभग एक पखवाड़े से यूटीआई के लिए इलाज चल रहा था। इस बीच रोगी के पेशाब की मात्रा लगातार कम होती चली गई। सोनोग्राफी करने पर किडनी में छोटी-छोटी पथरियां भी मिली थीं। जब इलाज से कोई लाभ नहीं हुआ तो अंतत: उसे अस्पताल लाया गया।

जांच करने पर पाया गया कि महिला का यूरिन आउटपुट 24 घंटे में 100 मिली से भी कम था। रक्त में क्रेटिनिन की मात्रा बढ़कर 15 तक जा चुकी थी। यह एक मेडिकल इमरजेंसी थी जिसमें तत्काल आक्रामक इलाज की जरूरत थी। हमने महिला का प्रतिदिन डायलिसिस करना शुरू किया। 4-5 दिन बाद जब स्थिति कुछ संभली तो किडनी की बायप्सी की गई। किडनी में छोटे-छोटे फिल्टर होते हैं। इनमें सूजन आ गई थी। मरीज की प्लाज्माफेरेसिस (रक्त के तरल पदार्थ का शोधन) किया गया। प्लाज्माफेरेसिस के 14 चक्र दिये गये। अब महिला की स्थिति ठीक है। यूरिन आउटपुट 700 से 800 एमएल तक पहुंच गया है।

डॉ वच्छानी ने बताया कि इस बीच महिला की किडनी को स्थायी नुकसान पहुंचा है। उसे पूरी तरह रिकवर करना शायद संभव नहीं होगा। यदि रक्तस्राव को गंभीरता से लेते हुए समय पर इलाज प्रारंभ कर दिया गया होता तो स्थिति नहीं बिगड़ती। उन्होंने कहा कि पेशाब के गुलाबी दिखने या उसमें खून के थक्के दिखने पर तत्काल किसी योग्य नेफ्रोलॉजिस्ट से जांच करवानी चाहिए। प्रारंभिक चरणों में न केवल इसका इलाज सरल होता है बल्कि किडनी को स्थायी नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है।
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