-दीपक रंजन दास
कहते हैं जिस घर में फूट पड़ी हो, उसे बाहरी दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ती। वह घर इतना कमजोर हो जाता है कि मामूली फूंक भी उसके लिए आंधी साबित होती है। हिन्दू या सनातन, मेरे लिए ये दोनों एक ही हैं, इसी फूट की वजह से लगातार कमजोर होता रहा है। शैव-वैष्णव की कभी नहीं पटी। रावण और विभीषण में भी झगड़ा इसी बात को लेकर था। विभिन्न वर्णों के बीच लगातार संघर्ष होते रहे और नए-नए पंथों का उदय होता रहा। इसकी आड़ में धर्मांतरण और मतांतरण भी खूब हुआ। अब वक्त की घड़ी को उलटा घुमाने की कोशिश की जा रही है। सन 1875 में हिन्दू कर्मकाण्डों से लोगों को निजात दिलाने के लिए ही आर्य समाज की स्थापना की गई थी। आर्य समाज केवल वैदिक रीतियों को मानता है। अलग अलग देवी देवताओं की पूजा पाठ के बजाय केवल वैदिक हवन करता है। अंत्येष्टि के बाद भी घर एवं आत्मा की शुद्धि के लिए हवन मात्र किया जाता है। आर्य समाज में भोज, दशगात्र, 13वीं आदि के प्रावधान नहीं हैं। आर्य समाज से वृहद समाज का नाता केवल इतना है कि किसी भी दिन, किसी भी समय यदि किसी को विवाह करना हो तो आर्यसमाज के मंदिर के दरवाजे उसके लिए खुले होते हैं। विवाह का इच्छुक जोड़ा किसी भी धर्म या पंथ का हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। आर्य समाज में कोई शुभ मुहूर्त नहीं होता। उनका मानना है कि वक्त हमेशा शुभ होता है। आर्य समाज द्वारा संचालित स्कूलों में वैदिक मंत्रोच्चार की शिक्षा की जाती है। हवन कराये जाते हैं। इसलिए हिन्दू जागरण मंच के ‘ऑपरेशन घर वापसी’ अभियान में उसका जुड़ जाना सुखद है। वैसे भी दुनिया के लगभग सभी धर्मों में ग्रंथों को ही गुरू का स्थान दिया गया है। गुरुग्रंथ साहिब तो घोषित तौर पर कहता है- ‘गुरू मान्यो ग्रंथ’। अन्यान्य धर्मों में भी बाइबल, कुरान, गीता आदि को गुरू का स्थान प्राप्त है। इन धर्मों के अनुयायी ग्रंथों में दिए गए उपदेशों और निर्देशों का पालन करने की कोशिश करते हैं। पर यह भी एक विडम्बना है कि एक ही धर्म ग्रंथ को पढऩे और समझाने वाले अलग-अलग लोग इनकी अलग-अलग व्याख्या करते हैं। कोई कहता है कि ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग प्रेम है तो दूसरा कहता है कि विधर्मियों का संहार करके ही स्वधर्म की रक्षा की जा सकती है। छत्तीसगढ़ के जशपुर में धर्म जागरण समन्वय विभाग द्वारा घर वापसी का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। पिछले दिनों यहां 36 परिवारों के 250 लोगों की हिन्दू धर्म में वापसी करायी गयी। गंगाजल से इनका पाद प्रक्षालन (पैर धुलवाए) गए। इस कार्यक्रम में भाजपा के नेता, पूर्व मंत्री, वनवासी कल्याण आश्रम (संघ) के साथ ही आर्य समाज भी प्रमुख भूमिका में है। इसका नेतृत्व प्रबल प्रताप सिंहदेव कर रहे हैं। वे अपने पिता स्व। दिलीप सिंह जूदेव की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
Gustakhi Maaf: आपरेशन घर वापसी का कुछ तो फायदा हुआ




