-दीपक रंजन दास
कांग्रेस की जो हालत आज है, उसे देखकर बरबस हस्तिनापुर की याद ताजा हो जाती है। महाभारत काल में हस्तिनापुर का राजदरबार सर्वाधिक सुसज्जित दरबार था। धृतराष्ट्र, गंगापुत्र भीष्म, आचार्य द्रोण सहित एक से बढ़कर एक महारथी और ऋषि इस दरबार की शोभा बढ़ाते थे। मगर यह एक जाती हुई पीढ़ी थी जो अप्रासंगिक हो चुकी थी। नया दौर, हठी युवा राजकुमार दुर्योधन का था। मामा शकुनी चाभी भरते थे। इस आक्रामकता का अंत कैसे हुआ, यह किसी से छिपा नहीं है। इस युद्ध में पाण्डव किसी तरह सुरक्षित रहे तो केवल भगवान श्रीकृष्ण के कारण जो सारथी बनकर इनका मार्गदर्शन करते रहे। स्थितियां आज भी बहुत ज्यादा नहीं बदली हैं। सच्चाई आज भी सीधी-सादी है और झूठ बेहद आकर्षक। इसमें सच्चाई की फीकी कथाएं नहीं हैं। इसमें कूटरचित रंग-बिरंगी कहानियां हैं। यह भी एक तरह का दर्शन है। बेचना आए तो मिट्टी, चाय, यहां तक कि योग को भी बेचा जा सकता है। जमाना मार्केटिंग विशेषज्ञों का है जो जरूरतें पैदा करने में महारत रखते हैं। पिछले 500-700 साल का इतिहास खंगाल कर चतुरों ने उसमें से छांट-छांट कर कुछ किस्सों को इक_ा किया। इनके प्रसंगों को या तो विस्मृत कर दिया या बदल दिया। इसका एकमात्र उद्देश्य इतिहास का एक ऐसा चेहरा दिखाना था जो युवाओं को भ्रमित कर सके। युवा यह तक न देख सके कि जो लोग परिवारवाद का विरोध करते हैं, वे ही लोग सनातन की बातें भी करते हैं। यदि सनातन व्यवस्था नहीं होती तो अंधे धृतराष्ट्र को राजा बनाने की मजबूरी न होती। यदि सनातन व्यवस्था न होती तो भरत को राजा बनाने के लिए राम को बनवास देने की जरूरत भी नहीं होती। दरअसल, सनातन और परिवारवाद एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। आधुनिक शिक्षा के आने से पहले तक बालक अपने पिता से ही हुनर सीखते थे और बालिकाएं अपनी माता से। किसान का बेटा किसान, राजा का बेटा राजा, सुतार का बेटा सुतार और बढ़ई का बेटा बढ़ई होता था। आधुनिक शिक्षा ने इसमें व्यवधान उत्पन्न किया। लोग अपनी-अपनी पसंद का विषय पढऩे लगे। पारिवारिक विशेषज्ञता जाती रही। औद्योगिक क्षेत्रों में लोग किसी तरह गणित विषय के साथ हायर सेकण्डरी और फिर आईटीआई, पालिटेक्नीक या इंजीनियरिंग करने लगे। संपन्नों के बच्चे डाक्टर या वैज्ञानिक बनने की चाह के साथ विज्ञान पढ़ते रहे। शेष बच्चे कला के क्षेत्र में पढ़ाई कर शिक्षक आदि बनने लगे। इसका एकमात्र लक्ष्य नौकरी प्राप्त करना था। वर्ण व्यवस्था हाशिए पर आ गई। ब्राह्मण और क्षत्रियों की बेटियां नाई का काम सीखने लगीं। अब वे महिलाओं के नाखून तराशती हैं, बाल काटती हैं। वे ब्यूटीशियन कहलाती हैं और उनकी दुकानों को पार्लर कहते हैं। जब दुनिया इतना आगे निकल आई है तब पीछे सनातन में लौटने की बातें हो रही हैं। लोग मान भी रहे हैं। जाहिर है उन्होंने कभी विषय को गंभीरता से समझा ही नहीं है। वो तो केवल हंगामे के साथ हैं।
Gustakhi Maaf: कांग्रेस की हालत हस्तिनापुर के महारथियों जैसी
