राजिम। सोमवार की शाम मुख्य मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने दर्शकों को ऐसा परवान चढ़ा कि तेज हवा और कड़ाके की ठंड ने भी दर्शकों को डिगा नहीं पाए। दर्शक दीर्घा में दर्शकों की भीड़ छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध लोक मंच दुष्यंत हरमुख के रंग झरोखा का आनंद देर रात तक लेते रहे। उनके सुप्रसिद्ध गीतों की जब बौछार शुरू हुई तो स्वर के आनंद में दर्शक दीर्घा खुद-ब-खुद गोता लगाते रहे। उनके द्वारा गाए गए हर गीत का लुफ्त उठाते हुए दर्शक दीर्घा में मौजूद लोग अपने जगह पर ही थिरकते नजर आए। सोमवार की रात मेला अवधि में सबसे सर्द रात थी लगातार 3 घंटे तक अपने सुरो की गंगा में गोता लगाने पर मजबूर कर दिया।
दुष्यंत हरमुख ने अपनी पहली प्रस्तुति ब्रम्हा, विष्णु, महेश तीनों देवों को पूजा करते हुए की गई। इसी के साथ देवार कर्मा और कर्मा ददरिया जिसमें मटके मोर आंखी लचके मोर कनहिया…. पानी ले जियतभर ले ऐसे गीतों की प्रस्तुति ने मंच के द्वारा रंगझरोखा कलाकारों ने अपनी छाप छोड़ते रहे। स्व. रामचंद देशमुख, खुमान साव को स्मरण करते हुए मोर मन बगीया म फुल…. के माध्यम से अपने गुरू को श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। कार्यक्रम कर अगली कड़ी तोल भरोसा मोर मया के हावे … ने दर्शकों को भी बहुत आनंदित किया। खिनवा नई मांगों मेहा.. सजना मोर परदेश… गीतों ने समा बांध दिया।
इन्हीं गीतों की प्रस्तुति के बाद गम्मत नौसीखिया रामलीला की प्रस्तुति दी गई। जिसमेंएक से बढ़कर एक हास्य पद वाक्य सुनाकर बैठे दर्शक खूब जोर-जोर से हंसते हुए लोट-पोट हुए। इसके बाद अगली प्रस्तुति तोर पैरी के झुन-झुन मोर दिल…. साथ ही रंगझरोखा के संस्थापक, निर्माता, निर्देशक दुष्यंत हरमुख ने संगी रे मोला सुरता में डाले जैसे गीतों की प्रस्तुति दी। इस गीत को सुनकर दर्शकों ने भी खूब आनंद लिये।
इसके पूर्व महासमुंद से आए माधुरिमा लोककला मंच से के पवन कुमार ने छत्तीसगढ़ी परम्पराओं से परिपूर्ण कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। जय गणराज…, अरपा पैरी के धार…, झारा-झारा दिया बाती ओ…. छत्तीसगढ़ी गीत के साथ हिन्दी फिल्म आशिकी के गीत गाकर अपने स्वर को बदलते हुए और दर्शकों का मनोरंजन किया। मया होगे रे तोर संग….. ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। लोककला मंच मधुरिमा ने दर्शकों की खूब वाहवाही लुटी। कलाकरों का सम्मान स्थानीय जनप्रतिनिधियों, केन्द्रीय समिति के सदस्यों द्वारा किया गया। मंच का संचालन निरंजन साहू द्वारा किया गया।