आमतौर पर हमारे समाज में बुजुर्गों को लेकर यह सोच रहती है कि रिटायरमेंट के बाद घर पर ही तो एक कोने में बैठकर अपनी पूरी जिंदगी काट लेनी है, लेकिन देखा जाए तो जिंदगी जीने का असली मजा तो रिटायरमेंट के बाद ही होता है। रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंचते पहुंचते हम लगभग अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। फिल्म ‘शिव शास्त्री बाल्बोआ’ में यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि रिटायरमेंट आपके जीवन पर पूर्ण विराम नहीं लगा सकता है। उम्र के किसी पड़ाव पर एक नई जिंदगी की शुरुआत की जा सकती है। एडवेंचर भरी जिंदगी जी जा सकती है।
फिल्म ‘शिव शास्त्री बाल्बोआ ‘ की कहानी मध्य प्रदेश के रहने वाले शिव शास्त्री बाल्बोआ की है। वह हॉलीवुड की फिल्म सीरीज रॉकी से प्रभावित होकर मध्य प्रदेश में एक बॉक्सिंग क्लब की स्थापना करते हैं। खुद तो बॉक्सर नहीं बन पाए, लेकिन उन्होंने देश को कई बॉक्सर चैंपियन दिए हैं। बैंक से रिटायरमेंट के बाद शिव शास्त्री अपनी बाकी की जिंदगी अमेरिका में अपने बेटे के पास रहकर गुजारना चाहते हैं। उनके जिंदगी का अब बस एक ही सपना है फिलाडेल्फिया में रॉकी स्टेप्स पर दौड़ते हुए एक वीडियो बनाना। अमेरिका पहुंचने के बाद फिलाडेल्फिया उसके लिए जाना आसान नहीं क्योंकि शिव शास्त्री का बेटा भाग दौड़ भरी जिंदगी में उलझा हुआ है। शिव शास्त्री अपने सपनो को मार कर जिन्दगी जीना शुरू कर देते हैं।

कहते हैं जहां चाह वहां राह, अगर किसी काम को करने की चाह हो तो रास्ते अपने आप निकल आते हैं। शिव शास्त्री की मुलाकात पास में काम करने वाली हैदराबाद की रहने वाली एल्सा से होती है। एल्सा आठ साल पहले अमेरिका काम करने आई थी। उसके मालिक ने उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया है जिसकी वजह से उसका अपने देश वापस लौटना मुश्किल हो गया। उसके मालिक कमाई का पूरा पैसा सीधा हैदराबाद उसके परिवार के पास भेज देते है और उसे एक पैसा भी नहीं देते हैं। शिव शास्त्री उसे भारत वापस पहुंचाने का वचन देते हैं। फिर दोनों एक एडवेंचर रोड ट्रिप पर निकलते हैं। ‘शिव शास्त्री बाल्बोआ’ का किरदार निभा रहे अनुपम खेर का एडवेंचर ट्रिप कैसा रहता है और क्या वह एल्सा (नीना गुप्ता) को भारत वापस भेजने में कामयाब हो पाते है? फिल्म की कहानी इसी के इर्द गिर्द घूमती है।
