राजिम। त्रिवेणी त्रिवेणी संगम का तट इन दिनों बदला हुआ नजऱ आ रहा है। प्रत्येक आने वाले श्रद्धालु इन्हें देखकर कहते है कि हम राजिम में ही है न। वह आश्चर्य प्रकट करते है। क्योंकि पिछले वर्ष ही इनका दृश्य अलग नजऱ आ रहा था परन्तु इस वर्ष राम वनगमन परिपथ के चलते पूरा संगम तट की तस्वीर ही बदल गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में भगवान श्रीराम के वनवास काल से जुड़े स्थलों को विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। जिसमें पहले चरण प्रदेश के 9 स्थल को लिया गया। इसमें राजिम का भी नाम शामिल है। राजिम के लिए 19 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत विकास कार्य किए जा रहे हैं। राजिम में गंगा आरती घाट से लेकर महानदी पुल तक लम्बे चौड़े वर्गाकार क्षेत्रफल में फैले तट जो नदी से करीब 30 फिट ऊंचाई लिए हुए है। यहां पर सीढ़ी बना दिया गया है। कहीं से भी श्रद्धालु नदी में उतरकर स्नान, दान, अस्थि विसर्जन, पूजा-पाठ इत्यादि कृत्य कर सकते है। इन सीढिय़ों पर राजस्थान से लाल पत्थर मंगाकर लगाया गया है। पिछले कई दिनों से कारीगर इन्हे लगाने मे लगे हुए थे। मुक्ताकाशी महोत्सव मंच के दाहिने भाग में बने दर्शक दीर्घा की लुकिंग इन चिकने पत्थरों से बढ़ गई है। उनके ही उपरी भाग में रामवाटिका आकर्षण का केन्द्र बने हुए है। 6 फिट ऊंची चबुतरा जिनमें 12 सीढिय़ां मौजूद है। इसी में 21 फिट ऊंची रामचन्द्र की विशाल प्रतिमा स्थापित किया गया है। प्रभु रामचन्द्र बाँये हस्त में धनुष पकडे हुए हैं तथा दाँये हाथ वरमद्रा में है। प्रतिमा की गेरूंवा शीला उड़ीसा के हैं। बनाने वाले मूर्तिकार भी कटक उड़ीसा से आए हुए थे। चतुष्कोणीय जगती तल के चारों किनारे आकर्षक डिजाईन प्रस्तुत किया गया है। लाईट फाऊंटेन से आभा निखर गई है। हर आने-जाने वाले सीढिय़ों पर बैठकर सेल्फि जरूर लेते है। रामचन्द्र प्रतिमा के पीछे वाटिका बनाया गया है। जहाँ बैठकर लोग थकान मिटाते है।
भित्ती चित्र में रामायण के घटनाओं की जानकारी
रामचन्द्र प्रतिमा चबुतरा के चारो ओर भित्ती चित्र बनाया गया है। इसमें रामायण कालिन घटनाओं को प्रस्तुत किया गया है। करीब 40 चित्र सिमेंट से बनाया गया है। इन्हे म्यूरलआर्ट कहा जाता है। बनाने वाले कारीगर रायपुर, महासमुंद, पाटन से 16 के संख्या में कड़ी मेहनत किये है। जिनमें प्रमुख रूप से योगेश ध्रुव, राजा ध्रुव, राजू साहू, सूरेश प्रजापति, तिलक चक्रधारी इत्यादि है। इन चित्रों में प्रमुख रूप से अहिल्या उद्धार ताड़का वध, सीता स्वयंबर, केंवटराज के द्वारा रामचन्द्र जी का पांव धोना, सीता हरण, रामेश्वरम महादेव स्थापना, राम-सुग्रीव मिलन, शबरी दर्शन, जटायू उद्धार, गुरू विश्वामिंत्र के साथ राम लक्ष्मण, लंका दहन, दशरथ विलाप, सीता के साथ लवकुश आदि है।
गोदना आर्ट से निखरी सुन्दरता
प्रतिमा के आसपास दीवाल पर गोदना आर्ट कि सुन्दरता देखते ही बन रही है। तरह-तरह के चित्र उंकेरे गये हैं। उत्तर-दक्षिण आने जाने का रास्ता है मुख्य द्वार उत्राभिमुख है। परिपथ के अन्तर्गत पंडित श्यामाचरण शुक्ल चौंक पर चार पिलर दाँये-बाँये निर्माण किया जा रहा है इसमें छोटी-छोटी 280 मुर्तियां स्थापित किये गये है। 10म24 इंच के इन मुर्तियों की प्राचीनता अत्यंत सुहावना है। पिलर पर चार कलश स्थापित किया गया है। इसके अलावा व्ही.आई.पी. मार्ग पर स्वागत द्वार निर्मित है। परिपथ के अंतर्गत विश्राम भवन बहुंत जल्द पूर्ण होगा।
19 करोड़ की लागत से बन रहे परिपथ
प्रदेश सरकार के द्वारा राम वनगमन परिपथ के अन्तर्गत जहाँ-जहाँ रामचन्द्र के चरण कमल पड़े है ऐसे 75 स्थलों को विकसित करने का बीड़ा उठाया है पहले चरण में 9 स्थल को विकसित किया जा रहा है। जिसमें कोरिया के सीतामढ़ी-हरचांका, सरगुजा के रामगढ़, जाँजगीर-चांपा के शिवरी नारायण, बलोदाबाजार भाठापारा जिला के तुरतुरिया, रायपुर के चन्द्रखुरी, धमतरी सिहावा के सप्तऋषि आश्रम, बस्तर के जगदलपुर तथा गरियाबंद के राजिम हैं। राजिम के लिए कुल 19 करोड़ रूपये की राशि स्वीकृत किये गये है। काम अभी भी चल रहा है।