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राजीम माघी पुन्नी मेला: लंदन में पूछा वेज कि नॉनवेज मैनें कहा नान दे-पद्मश्री बारले

By Om Prakash Verma Published February 9, 2023
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राजीम माघी पुन्नी मेला: लंदन में पूछा वेज कि नॉनवेज मैनें कहा नान दे-पद्मश्री बारले
राजीम माघी पुन्नी मेला: लंदन में पूछा वेज कि नॉनवेज मैनें कहा नान दे-पद्मश्री बारले
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विदेश जाने यश, नो और ओके मेरे लिए वरदान बनी
राजिम। माघी पुन्नी मेला के मुख्य महोत्सव मंच चौथे दिन पंडवानी की प्रस्तुति देने के बाद मीडिया सेंटर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए पद्मश्री उषा बारले ने कहा कि सन् 2007 में विदेश जाने का सौभाग्य मिला। मेरी शिक्षा कक्षा चौंथी तक हुई थी, बाद में मैनें ओपन में 10वीं पास कर ली है। मुझे अंग्रेजी भाषा नहीं आती। खाने के लिए लंदन में पूछा गया कि वेज कि नॉनवेज मैनें छत्तीसगढ़ी में कहा नान दे। तुरंत चिकन ले आए। देखकर वापस तो करा दी और शाकाहारी भोजन के लिए कहा। हम समझ नहीं पाये ये वेज और नॉनवेज का क्या अर्थ होता है। यह घटना मैं आज तक नहीं भूली हूं।

पद्मश्री ने बताया कि मेरे परिवार में किसी का संगीत का कोई नाता नहीं रहा अन्य बच्चों के साथ बचपन में पंथी सीख रही थी। बावजूद इसके रूझान पंडवानी के तरफ जाता रहा। घर के लोग स्पष्ट कहते थे तुम्हें कलाकार नहीं बनना है परंतु मैं रेडियो में आना चाहती थी। एक दिन मां से कह दिया कि आवाज देने वाली यह रेडियो में आदमी कहां पर है मां ने बताई बेटी बड़े-बड़े कलाकार कार्यक्रम देते है वह ट्रांसमीटर के माध्यम से सुनाई देते है। उसी दिन मैनें प्रण कर लिया कि एक दिन लोग मुझे भी इसी रेडियो से सुनेंगे। पंडवानी सिखाने के लिए मेरे परिवार के फूफा ने हामी भरी और फिर लगातार सिखती रही। फूफा का भी कहना था कि किस्मत में कब क्या हो जाए कोई नहीं जान सकता। एक दिन मेरे पिताजी बहुत क्रोधित हो गये और उठाकर सीधे कुएं में डाल दिये। मां पिताजी को डाटने लगी मुझे बाहर निकाली। बाद में ददा पछताए और कहा कि आज के बाद तुम्हारे कला के क्षेत्र में मैं आड़े नहीं आऊँगा और उसके बाद तो लगातार कपालिक शैली पर पंडवानी किया।

सन् 1988 में आकाशवाणी तथा सन् 1990 में दूरदर्शन में प्रस्तुति दी। सन् 2006 में दिल्ली में प्रोग्राम हुआ। छत्तीसगढ़ की झांकी राष्ट्रीय पर्व में प्रथम आया उस झांकी में मैं बैठी थी। उसके बाद विदेश जाने का द्वार खुला। श्रीमती बारले ने आगे बताया कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। अधिकारी ने कहा कि आप तीन शब्द सीख लो ”यश, नो और वोके” इसके बाद विदेश में कहीं भी घूम सकती हो। मैं इन्हीं तीन शब्दों के साथ विदेश यात्रा पूर्ण की। यश, नो और ओके मेरे लिए वरदान बन गया। उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा भीमसेन दुर्योधन गदा युद्ध, अर्जुन कर्ण युद्ध, जयद्रथ वध की आदि की कथा सुनाती हूं। जैसे ही पद्मश्री के लिए मेरे नाम का घोषणा हुआ। मैं खूब रोई वह खुशी के आंसु थे जो छलक पड़े।

छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन में 45 मिनट तक जेल में रहे
छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन के लिए दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर रहे थे वहां मैं अड़ी रही। इतने पर मुझे 45 मिनट के लिए जेल में डाल दिया गया। अंतत: 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य बना और हमारी मेहनत सफल हो गई।

छत्तीसगढ़ी आभूषण बनीं आकर्षण
मीडिया सेंटर में पहुंची उषा बारले छत्तीसगढ़ी वेशभूषा में दमक रही थी। उन्होंने आभूषण ऐंठी, कंकनी, पहुंची, रूपया, मोहर, करधन, पैजन, पैरी, मुंदरी, बिछिया आदि पहन रखी थी। बारले ने बताया कि विदेश में इन आभूषणों को देखकर वहां के लोग बहुत सवाल करते थे और इन आभूषणों को खुद पहनकर फोटो खिंचवाते थे।

2 साल की उम्र में हो गई थी शादी
पद्मश्री उषा बारले की शादी दो साल की उम्र में मोहल्ले में ही अमर दास बारले के साथ हो गई थी। उषा अपने घर में बड़ी बेटी थीं। पिता को 50 साल के बाद दूसरी पत्नी से संतान हुई थी। इसलिए उन्होंने उषा की शादी जल्दी कर दी थी कि उनके न रहने के बाद उनका पति उनका सहारा बन सके। उषा पति के साथ ही गिल्ली डंडा, भौंरा खेलकर बड़ी हुईं और उन्हीं के साथ पंडवानी को सीखा। अमर दास बारले बीएसपी कर्मी हैं और वो भी पंडवानी गीत गाते हैं।

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