-दीपक रंजन दास
दुनिया प्रेम से चलती है. नफरत फैलाने वाले इसमें बाधा डालते हैं। बाधाओं को पार करने का अपना रोमांच है। इससे जीवन में नए रंग घुलते हैं। बाधा-विपत्तियों को पार करते समय ही लोग एक दूसरे के ज्यादा करीब आते हैं, उनमें बेहतर आपसी समझ और तालमेल का विकास होता है। वैसे भी भारतीय दर्शन कहता है कि यदि चित्त उदार हो तो धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी एक ही परिवार का सदस्य लगता है- “उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम”। इसी अवधारणा को लेकर स्वामी विवेकानन्द अमेरिका की धर्मसंसद में पहुंचे थे और कह पाए थे “मेरी अमेरिकी भाइयों और बहनों।” इसकी एक झलक छत्तीसगढ़ में फिर एक बार देखी गई। स्वीडन की अमांडा और रायपुर के अपराजित शर्मा विवाह बंधन में बंध गए। विवाह के लिए दोनों ने हिन्दू रीति रिवाजों को चुना। हरिद्रालेपन, चुलमाटी, तेलमाटी, पाणिग्रहण जैसे सभी संस्कार हुए। सात वचन के साथ सात फेरे भी लिये गये। इससे पहले पिछले ही महीने फिलीपीन्स की जेझल ने राजनांदगांव के भावेश गायकवाड़ के साथ दाम्पत्य जीवन में प्रवेश किया। यह विवाह भी भारतीय रीति रिवाजों के साथ सम्पन्न हुआ। इससे पहले चक दे इंडिया की को स्टार चित्रांशी ने छत्तीसगढ़ी फिल्म कलाकार ध्रुवादित्य से विवाह कर लिया। ये सभी विवाह समारोह भारतीय परम्परा के अनुसार हुए। न किसी फूफा ने मुंह फुलाया और न ही समाज के ठेकेदार कहीं नजर आए। यह उन लोगों के मुंह पर एक करारा तमाचा था जो लोग श्रीकृष्ण को तो पूजते हैं पर प्रेम को अपराध मानते हैं। समाज के कथित ठेकेदार इस अपराध की भयानक सजा देते हैं। लड़कियों को घर में कैद कर दिया जाता है। लड़कों को जान से मार दिया जाता है। कुछ लोग इससे भी चार कदम आगे चलते हैं। वो प्रेमी युगल को पकड़ते हैं, लड़की का सामूहिक बलात्कार करवाते हैं। फिर दोनों की जमकर पिटाई की जाती है और मार कर पेड़ों पर टांग दिया जाता है। ये वही राज्य हैं जहां मातारानी को पूजने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। ये वही राज्य हैं जहां दुल्हन दूसरे राज्यों से उठवाकर या खरीद कर लाई जाती है। ये वही राज्य हैं जहां सर्वाधिक बेटियां कोख में मार दी जाती हैं। सवाल फिर से वही उठता है कि हम चाहे कितना पूजा पाठ कर लें, चाहे कितने हवन-प्रवचन कर लें, पर हम पौराणिक घटनाओं से सीखते क्या हैं? भक्ति मार्ग प्रेम की गलियों से होकर निकलता है। जहां प्रेम नहीं, वहां भक्ति नहीं। जहां भक्ति नहीं वहां ईश्वर नहीं। जो लोग इंसानों को अछूत मानते हैं वो गाय को भी दिल से मां नहीं मान सकते? किसी के योगदान की सराहना करने के लिए दिल बड़ा चाहिए। चित्त उदार चाहिए। भारतीय संस्कृति उदारता का पोषण करती है। इसलिए हम चीटिंयों, पर्वतों, नदियों, वृक्षों तक की पूजा करते हैं। सृष्टि में इनकी भूमिका को स्वीकार करते हैं। क्षुद्र, संकीर्ण मानसिकता वाले इसे क्या समझेंगे?
Gustakhi Maaf: बात प्यार की हो तो वसुधैव कुटुम्बकम
