-दीपक रंजन दास
जीवित शरीर है तो बीमारियां भी होंगी ही. बीमार पड़ेंगे तो डाक्टर के पास भी जाएंगे. डाक्टर चाहेगा कि उसका रोगी जल्दी ठीक हो. वह बीमारी को ताड़ेगा और दवाइयां लिखेगा. जब दवा काम नहीं करेगी तो वह उसे बदल देगा. एक दो मौका एक डाक्टर को देने के बाद रोगी डाक्टर को ही बदल देगा. बड़ा डाक्टर बीमारी को ताड़ने की कोशिश नहीं करेगा, वह विभिन्न जांचों द्वारा रोग की सही-सही पहचान करेगा. जांच महंगी होगी तो डाक्टर कोसे जाएंगे. रोगी फिर डाक्टर बदल लेगा. इलाज महंगा होगा तब भी लोग यही कहेंगे कि डाक्टर लूट रहे हैं. दवा की गुणवत्ता पर कोई भी संदेह नहीं करेगा. इसकी जांच का आम आदमी के पास कोई उपाय भी नहीं है. लिहाजा यह सबसे सुरक्षित धंधा है. हालांकि दवा की जांच-पड़ताल के लिए नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन है. स्टाफ की कमी से जूझ रहे इस विभाग के हाथ-पैर बंधे हुए हैं. दवा असली भी हो तो वह सही मूल्य पर लोगों तक पहुंच जाए, इसे सुनिश्चित करना तक मुश्किल हो जाता है. फिलहाल बाजार में चार तरह की दवा दुकानें हैं. एक जो अस्पतालों के भीतर संचालित होती हैं. दूसरी जो खुले बाजार में बैठी हैं. तीसरी वो जो केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा प्रवर्तित है. चौथी वह जो ऑनलाइन मार्केट में उपलब्ध है. एक ही दवा की इन चार स्थानों पर कीमतें अलग-अलग होती हैं. दिक्कत यह भी है कि कपड़ा और जूता दुकानों की तरह दवा दुकानों में भी डिस्काउंट के बोर्ड लगे होते हैं. कोई 10 से 15 प्रतिशत छूट दे रहा होता है तो कोई 25 से 30 प्रतिशत. छूट देने वाले दुकानदार कहते हैं कि वे डाक्टर को कमीशन नहीं देते इसलिए ग्राहक को छूट दे पाते हैं. बदनाम यहां भी डाक्टर ही होता है. ऐसा लगने लगता है कि डाक्टर मरीजों का भगवान कम और दवा विक्रेता का एजेंट ज्यादा है. वैसे दोष न तो डाक्टरों का है और न ही दवा विक्रेताओं या औषधि नियंत्रक का हमारे यहां लोग काम की खबरें कम ही पढ़ते हैं. पढ़ते तो पता होता कि कई नामचीन ब्रांडों की कई दवाइयां और उत्पाद अमानक स्तर की पाई गई हैं. स्वदेशी और आयुर्वेद के नाम पर देश में कुछ भी चल जाता है. लोग आज भी फुटपाथ से सांडे का तेल खरीद लेते हैं. किराना दुकानों से जड़ी बूटियां खरीद लाते हैं. यही कारण है कि 2006 में आया एक ब्रांड बाजार के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करने में सफल हुआ. इसके ग्राहक कम और भक्त ज्यादा हैं. ऐसा ही एक आयुर्वेद ब्रांड इंदौर का आयुष संस्थान है. छत्तीसगढ़ में इसकी दो पीड़ानाशक दवाइयों की बड़ी खेप पकड़ी गई है. 50 रुपए की ये दवाइयां यहां 700 रुपए में बिकती हैं. नियंत्रक खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारी भी इसके ग्राहक हैं. दरअसल यह देश भगवान भरोसे चल रहा है. किसी को किसी की नहीं पड़ी है.
Gustakhi Maaf: कभी हम डाक्टर तो कभी दवा बदल लेते हैं
