-दीपक रंजन दास
भारत में बच्चों में संस्कार डालने की जिम्मेदारी मां की मानी जाती है. सही के लिए प्रोत्साहन और गलत से बच्चों को हतोत्साहित करने में वह मुख्य भूमिका निभाती आई है. कुछ तो आधुनिक जीवन की व्यस्तता और कुछ महंगाई के कारण बिगड़े हालात ने माता-पिता और बच्चों के बीच एक अजीब से दूरी पैदा कर दी है. बच्चे अपने आप घासफूस की तरह बढ़ने लगे हैं. इनमें से कुछ बच्चे आगे चलकर समाज के लिए कोढ़ बन जाते हैं. जुआ, नशाखोरी और देर रात तक झुंड बनाकर घूमना अपराध को भी बढ़ावा दे रही है. बालोद जिले में माताओं की टोली ने इस गलती को सुधारने की शुरुआत की. शमशाद बेगम के नेतृत्व में महिलाओं ने यह शुरुआत 2006 में की थी. गांव की महिलाएं टोली बनाकर सूर्यास्त के बाद गांव में निकलतीं और एकांत में बैठकर जुआ खेलने और शराब पीने वालों को टोकती. उन्होंने शराब कोचियों और अवैध शराब ठेकों के विरुद्ध भी मोर्चा खोला. इक्का-दुक्का गांवों से शुरू हुआ यह अभियान अब दुर्ग, राजनांदगांव, बेमेतरा, रायपुर, जांजगीत, मुंगेली, कोरबा, बलौदाबाजार, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, बिलासपुर के सैकड़ों गांवों तक पहुंच गया है. 65 हजार से अधिक महिला कमांडों रात को यहां हाथ में लाठी और टार्च लेकर निकलती हैं और लोगों को गलत रास्ते पर जाने से रोकती हैं. वे न केवल जुआ, बल्कि शराब और तम्बाकू का नशा करने से भी रोकती हैं. दरअसल, महिलाओं ने देखा कि नशाखोरी और जुआ खेलने का अंतिम खामियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है. सबसे पहले गृहस्थी चौपट होती है, रोआं-रोआं कर्जदार हो जाता है. सेहत बिगड़ जाती है और इलाज के लिए पैसे नहीं होते. पढ़ाई-लिखाई छोड़ बच्चों को राजगार में जुटना पड़ता है और यह अभिशाप पीढ़ी दर पीढ़ी गरीब को और गरीब बनाती चली जाती है. इसलिए सौ बीमारियों की एक दवा के रूप में सबसे पहले महिलाओं ने व्यसन के खिलाफ जनजागरण शुरू किया. पहले थोड़ा डर लगा पर जब सामने देवी दुर्गा और मां काली का उदाहरण रखा गया तो वे सभी वीरांगनाएं बन गईं. फिर न तो उन्हें शराबियों को पीटने में डर लगा और न ही शराब की अवैध दुकानों को तोड़-फोड़ कर जमींदोज करने में. समाज हित में हो रहे इस कार्य को पुलिस का भी सहयोग मिला और वे महिला कमांडो के रूप में स्थापित हो गईं. सभी महिला कमांडो महिला स्व-सहायता समूहों से जुड़ी हैं जहां वे अर्थोपार्जन के भी प्रयास कर रही हैं. कुछ महिलाएं अकेले दम पर घर चलाने में भी सक्षम हो गई हैं. इस अभियान का स्पंदन अब पूरे समाज में महसूस किया जा रहा है. इनके हस्तक्षेप से स्कूलों की व्यवस्था सुधरी है, बागवानी और उद्यानिकी बढ़ी है, गोठानों में उद्योगों की नींव पड़ी है. गुरूर की शमशाद बेगम, राजनांदगांव की फुलबासन बाई यादव, मनोरमा, भिलाई की पोलम्मा जैसी महिलाओं में छत्तीसगढ़ महतारी मूर्त रूप में विद्यमान हैं. यही छत्तीसगढ़ महतारी हैं.
Gustakhi Maaf: मां ने बचपन में कान नहीं पकड़ा, इसलिए…
