भिलाई। नगर निगम भिलाई के नेता प्रतिपक्ष का आखिरकार चयन हो गया। इसके साथ ही संगठन की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल दो दिन पहले भिलाई निवास में रविवार को भिलाई निवास में भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी और राजनांदगांव सांसद संतोष पांडे ने दुर्ग सांसद विजय बघेल व पूर्व मंत्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय की उपस्थिति में लंबी मंत्रणा की थी। इस दौरान पार्षदों की ओर से जो फीडबैक और बहुमत आया उसे अनदेखा कर भोजराज सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। जबकि बहुमत किसी दूसरे पार्षद के पक्ष में था।
भिलाई निवास में जो बैठक हुई उसके बाद वार्ड 44 लक्ष्मीनगर वार्ड के पार्षद दया सिंह का नेता प्रतिपक्ष बनाना तय माना जा रहा था। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी और राजनांदगांव सांसद संतोष पांडे के फीडबैक में भी दया सिंह का पलडा भारी था। बताया जा रहा है कि 14 पार्षदों दया सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए लिखित में सहमति पत्र दिया था और तीन पार्षदों ने अलग से समर्थन किया। दया सिंह को समर्थन देने वाले पार्षदों में भोजराज सिन्हा का नाम होने की बात भी पक्के तौर पर कही जा रही है। यानी बहुमत पूरा दया सिंह के पक्ष में था लेकिन नेता प्रतिपक्ष भोजराज सिन्हा को बना दिया गया।
संगठन की मनमानी आई सामने
निगम के नेता प्रतिपक्ष चुनाव में संगठन की मनमानी साफ तौर पर देखी जा सकती है। पिछले एक साल से नगर निगम भिलाई के नेता प्रतिपक्ष के चयन की कवायद चल रही थी। इसके दावेदारों में दया सिंह के अलावा रिकेश सेन, पीयूष मिश्रा के नाम सबसे ऊपर थे। पार्षद भोजराज सिन्हा का नाम भी साथ में चल रहा था। रविवार को दिनभर चली बैठक में प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी और राजनांदगांव सांसद संतोष पांडे ने सभी पार्षदों से वन टू वन किया था। इस दौरान सांसद विजय बघेल व पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी अपने चहेते पार्षदों के नाम सामने रखे। दिन भर की बैठक के बाद सभी नाम लेकर चले गए। इसके बाद मंगलवार को नेता प्रतिपक्ष की घोषणा ने सभी को चौंका दिया।
बहुमत की अनदेखी से पार्षदों में नाराजगी
बताया जा रहा है बैठक के दौरान दया सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की पुरजोर मांग थी लेकिन संगठन ने बहुमत को अनदेखा कर अपना निर्णय थोप दिया। संगठन के इस फैसले से पार्षदों में नाराजगी भी देखी जा रही है। हालांकि दया सिंह को उप नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। इस जिम्मेदारी को मिलने के बाद पार्षद दया सिंह ने खुशी भी जाहिर की और जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा के साथ निभाने का वादा भी किया। दया सिंह ने प्रदेश संगठन के फैसले अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। वहीं जिन पार्षदों ने दया सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की वकालत की वे नाराज बताए जा रहे हैं।
पहली बार पार्षद बने यह भी एक रोड़ा
भाजपा संगठन द्वारा बहुमत को नजरअंदाज करने का कारण यह माना जा रहा है कि दया सिंह पहली बार चुनाव लड़े और पार्षद बने। दया सिंह के साथ पहली बार पार्षद बनने का तमगा जुड़ा है और बाकी जो दावेदार थे सभी पिछले चार कार्यकाल से पार्षद रहे हैं। चुंकि बैठक में संगठन के नेताओं ने फीडबैक लिया था इसके बाद भी पार्षदों की भावनाओं की अनदेखी की इसे लेकर नाराजगी है। सदन में सबसे मुखर पार्षदों में शुमार दया सिंह को नेता प्रतिपक्ष न बनाना सभी को खल रहा है। अंदर ही अंदर इस बात की सुगबुगाहट है कि जब संगठन को अपनी मनमानी ही करनी थी तो फीडबैक के लिए बैठक का नाटक क्यों किया गया?