-दीपक रंजन दास
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार के चार साल आज पूरे हो रहे हैं. इन चार सालों में छत्तीसगढ़ी लोक कला, संस्कृति, खान-पान को पुनर्स्थापित करने के प्रयास हुए हैं. स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए जहां आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों की तेजी से स्थापना हुई वहीं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी दो नए विश्वविद्यालयों के साथ कई महाविद्यालय खोले गए. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का हमेशा से यह मानना रहा है कि भारत तब सोने की चिड़िया था जब गांव उत्पादन के और शहर विपणन के केन्द्र थे. वे गांवों को मजबूत करने की दिशा में ही लगातार काम कर रहे हैं. नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी योजना के तहत उन्होंने जमीन की प्यास बुझाने, आवारा मवेशियों का प्रबंधन करने और गोबर से सोना निकालने तक का मार्ग प्रशस्त किया है. उनकी हर कोशिश किसान, मजदूर, आदिवासी, महिलाएं, लघुवनोपज संग्राहकों को रोजगार के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध कराकर आर्थिक रूप से मजबूत करने की रही है. स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य योजना, मुख्यमंत्री विशेष सहायता स्वास्थ्य योजना और हाट बाजार क्लिनिक जैसे उपायों से उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं को हर किसी की पहुंच के भीतर लाने के प्रयास किये हैं. छत्तीसगढ़ आज 0.5 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ देश में सबसे कम बेरोजगारी दर वाला राज्य बन गया है. ऐसा तब हुआ है जब उनके चार साल के कार्यकाल में से दो साल कोरोना ने निगल लिये थे. आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ी हुई थीं. इन उपलब्धियों के बावजूद भूपेश सरकार की आंखों में नींद नहीं है. उनका मानना है कि यदि केन्द्र ने छत्तीसगढ़ के साथ सौतेला व्यवहार नहीं किया होता तो प्रदेश की तरक्की सबको दिखाई देती. उन्होंने इस बात का अफसोस भी है और गुस्सा भी कि केन्द्र सरकार ने केवल छत्तीसगढ़ के हिस्से का पैसा रोक रही है बल्कि तरक्की की राह में अड़चनें भी पैदा कर रही हैं. पिछले लंबे अरसे से छत्तीसगढ़ से होकर गुजरने वाली ट्रेनों के पहिये थमे हुए हैं. इससे छत्तीसगढ़ के पर्यटन उद्योग को नुकसान हुआ है. विकास पर भी इसका विपरीत असर पड़ा है. छत्तीसगढ़ में ऐसे कई वनोपज हैं जो दुनिया में कहीं नहीं मिलते. इन्हें विदेशी बाजार तक पहुंचाने के लिए हवाई सेवा आवश्यकता थी. राज्य ने केन्द्र से रायपुर में एयर कार्गे प्रारंभ करने की अनुमति मांगी है जो आज तक नहीं दी गई है. इसकी पूरी अवसंरचना राज्य के पास मौजूद है, फिर भी केन्द्र इसमें टालमटोल कर रहा है. इससे छत्तीसगढ़ के नायाब उत्पादों को विदेशी बाजार में भेजने में दिक्कतें आ रही हैं. अब चुनाव को एक साल से भी कम समय रह गया है. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या भूपेश सरकार 2018 को दोहरा पाएगी? स्वयं मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य में आज तक किसी भी दल को 68 से ज्यादा सीटें नहीं मिलीं. उपचुनावों में जीत के साथ यह संख्या 71 तक जा पहुंची है. इसे बरकरार रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं.