-दीपक रंजन दास
इसे नौकरी दे दो, इसे अनुकंपा में रख लो. इसे भत्ता दे दो. इसका माल खरीद लो. भिखारियों की भाषा में नेतागिरी करने वालों की इन बड़ी-बड़ी बातों पर ठठाकर हंसने का मन करता है पर फिर इनपर तरस भी आता है. एक पार्टी के नेता ‘मल्होत्रा’ कह रहे हैं कि छत्तीसगढ़ से गैर छत्तीसगढ़ियों को भगाना है. अब या तो सबसे पहले वे अपना टिकट कटवा लें या फिर छत्तीसगढ़िया की अपनी वाली परिभाषा को साफ कर दें. वे 1966 के महाराष्ट्र को 2022 के छत्तीसगढ़ में दोहराने का सपना देख रहे हैं. शिवसेना के जनक बाला साहेब ठाकरे ने तब “पुंगी बजाओ-लुंगी हटाओ” का नारा दिया था. मुम्बई की जहाज गोदियां रोजगार का एक बड़ा जरिया थीं. यहां पहले दक्षिण भारतीयों का और फिर मुसलमानों का कब्जा हो गया था. मुम्बई अंडरवर्ल्ज के बीज भी यहीं पड़े थे. मुम्बई में यह नारा इसलिए चल गया था कि लोग अंडरवर्ल्ड से त्रस्त थे. यह नारा देने वाले कार्टूनिस्ट बाला साहेब मुम्बईकरों के दिलों में बसते थे. शिवसैनिक अंडरवर्ल्ड के खिलाफ पुलिस के साथ खड़े थे. मुद्दा भी स्थानीय था और पार्टी भी. लोग शिव सेना के मुखपत्र ‘सामना’ को बड़े चाव से पढ़ते थे. राष्ट्रीय अखबार भी इसकी संपादकीय को उद्धृत करते थे. पर जब बाद के वर्षों में यूपी-बिहार के खिलाफ ऐसा ही नारा दिया गया तो उसे ज्यादा लेवाल नहीं मिले. केवल हंगामा, मारपीट और अराजकता जैसे हालात बने जिसे मुम्बई पुलिस ने काबू कर लिया. इतिहास इतिहास होता है और वर्तमान वर्तमान. कभी छत्तीसगढ़ के एक बड़े भू-भाग पर भी मराठा साम्राज्य का ही कब्जा रहा है. छत्तीसगढ़ की अस्मिता तब भी सुरक्षित थी और आज भी सुरक्षित है. आज छत्तीसगढ़ के गांव, छत्तीसगढ़ की फसलें और छत्तीसगढ़ की संस्कृति व खान-पान की चर्चा पूरे देश में हो रही है. जल्द ही छत्तीसगढ़ जी-20 समिट की मेजबानी करने जा रहा है. शिवसेना कहीं का ईंट-कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा जैसी कार्ययोजना बना रही है. इसमें मुम्बई शिवसेना का बाहरी भगाओ का नारा है, दिलीप सिंह जूदेव का धर्मांतरण रोकने और हिन्दुओं की घर वापसी का तड़का है तो भाजपाई शराब बंदी का मुद्दा भी शामिल है. दरअसल, छत्तीसगढ़ में हाशिए पर जा चुकी शिवसेना अपना अस्तित्व तलाश रही है. वजह भी साफ है कि उसकी नजर 2023 के विधानसभा चुनावों पर टिकी है. माना जाता है कि शिवसेना, विश्व हिन्दू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, आदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बी टीमें हैं. ये भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का काम करते हैं. भाजपा स्वयं को केवल राष्ट्रवाद की बातों तक सीमित रखती है. राज्य में शिवसेना की छवि एक उपद्रवी पार्टी की रही है. छत्तीसगढ़ ने इसके नेताओं को कभी राजनेता के रूप में स्वीकार नहीं किया. इसलिए उसकी बातों को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है. कांग्रेस प्रतिक्रिया न करे, पुलिस को अपना काम आता है.
गुस्ताखी माफ़: भिखारियों का आंदोलन और बड़ी-बड़ी बातें




