-दीपक रंजन दास
शादियों का सीजन चल रहा है. अधिकांश पार्टियां अब वेजिटेरियन ही होती हैं. बदनाम केवल बंगाली और ओड़ीशा के लोग हैं जहां शादियों में भी नॉनवेज का बनना आम बात है. इधर शादियों का सीजन शुरू होते ही न्यौतों की बारिश भी होने लगी है. कोरोना काल की चुप्पी के बाद शादियों का माहौल कुछ ज्यादा ही मुखर है. एक-एक दिन में दो दो पार्टियां अटेंड करनी पड़ रही है. लिफाफे में पैसा डालना भी महंगा पड़ने लगा है. पुराने गिफ्ट टटोले जा रहे हैं. पैकिंग करने वालों के यहां गिफ्ट बेचने वालों से ज्यादा भीड़ है. जेब में लिफाफा खोंसे, बगल में रंगीन पार्सल दबाए लोग शादी पंडालों में पहुंच रहे हैं. शाकाहारी भोजन स्टालों से मगर हरियाली गायब है. शाकाहार का सबसे उम्दा हिस्सा हरी पत्तेदार सब्जियां होती हैं. पर इसे साफ करने और पकाने में जहां झंझट है वहीं इसे पसंद से खाने वाले भी बहुत कम हैं. लोग कुछ महंगा खाना चाहते हैं. इसलिए पार्टियों में हरी सब्जियों से ज्यादा लेवाल पनीर के मिलते हैं. पनीर का आप चाहे कुछ भी बना दो, लोग उसे चाव से लेते हैं और अंतिम टुकड़ा तक खा भी लेते हैं. हरी सब्जियों के नाम पर भिण्डी और करेला एक तवे पर बैठे सिंक रहे होते हैं. कुछ लोग यहां भी जाते हैं पर सिंका हुआ भटा और टमाटर लेने में ही ज्यादा रुचि दिखाते हैं. पंजाब दिल्ली साइड के लोगों की पार्टी में पालक भी दिख जाता है. शेष सभी जगह मेनू कॉमन होता है. एक पनीर की सब्जी एक छोले, एक रायता, एक दाल, रायता और जीरा फ्राई चावल या पुलाव. रोटी, नान और पूड़ी भी मेनकोर्स के काउंटरों पर बना रहता है. दरअसल, बात यहां शाकाहारी होने या नहीं होने की नहीं है. यहां बात नॉन वेज खाने या नहीं खाने की है. वैसे शाकाहारियों को साग-भाजी भी कुछ बहुत ज्यादा पसंद नहीं है. वे कुछ महंगा ढूंढते हैं. अब तक उनकी यह जरूरत पनीर और मशरूम पूरा कर रहे थे. बेबी कॉर्न और स्वीट कार्न भी अब इसमें शामिल हो गया है. अभी ठंड का मौसम चल रहा है. बाजार में हरी सब्जियों की बाढ़ आई हुई है. यही भारत की खूबसूरती है. यहां खाने के लिए इतना कुछ एक साथ उपलब्ध है जिसकी कल्पना भी किसी और देश में नहीं की जा सकती. घर पर लोग हरी सब्जियों का खूब इस्तेमाल करते हैं. इसमें वेजीटेरियन और नॉनवेजिटेरियन दोनों शामिल हैं. पर जैसे ही पार्टी में जाते हैं या बाहर खाना खाने जाते हैं, हरी सब्जियों से लोगों को एलर्जी हो जाती है. नॉन वेज वालों को तो फिर भी अपनी च्वाइस मालूम होती है. वह दो मिनट में अपना आर्डर दे देते हैं. पर शाकाहारी के साथ ऐसा नहीं है. वह काफी देर तक मेनू कार्ड को उलट पलट कर देखता है और फिर ढेर सारा आर्डर दे देता है. फिर बड़ा सा बिल आता है और वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस करता है.
गुस्ताखी माफ़: शाकाहारियों की थाली से हरियाली गायब क्यों?




