-दीपक रंजन दास
कबड्डी खेलते समय लगी चोट के कारण 35 वर्षीय ठंडाराम मालाकार की मौत हो गई. उसे तत्काल घरघोड़ा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचाया गया. हालत को देखते हुए उसे रायगढ़ रिफर कर दिया गया. रायगढ़ पहुंचने से पहले ही रास्ते में उसने दम तोड़ दिया. यह एक हादसा था जिसका सभी को शोक-संताप है. खेल-खेल में चोटें लगती हैं. कभी-कभी ये चोटें जानलेवा भी साबित होती हैं. पर इसके कारण कोई खेलना नहीं छोड़ देता. छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश के कोने कोने में कॉर्क और लेदर बाल से बच्चे क्रिकेट खेलते हैं. न सिर पर हेलमेट होता है न ही पैड या ग्लव्स. कबड्डी, हाकी या फुटबाल खेलते समय भी बच्चे बिना किसी सुरक्षा उपकरण के ही होते हैं. छत्तीसगढ़ी ओलम्पिक इसी को एक उत्सव का रूप दे रहा है. विपक्ष की यह मांग सही है कि खेल मैदान पर एक चिकित्सक होना चाहिए, फस्र्ट एड किट होना चाहिए. पर यह भी उतना ही बड़ा सच है कि स्पोट्र्स मेडिसिन के चिकित्सक देश में अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं. इनमें भी अस्थि रोग विशेषज्ञ ही ज्यादा होते हैं. वैसे भी चोटिल को अस्पताल लेकर जाया ही गया था. वहां भी उसकी कोई खास मदद नहीं हो पाई. फिर ग्राउंड पर बैठा डाक्टर ही क्या कर लेता? हम महसूस करें या न करें, 2022 की दुनिया हममे से अधिकांश के लिए नई है. हमारी शारीरिक क्षमताएं पहले जैसी नहीं रहीं. कोविड के चलते यह गिरावट एकाएक आई है. इसकी आदत डालने में अभी वक्त लगेगा. 2021 में 32 लाख लोग खेलकूद के दौरान घायल हो गए. यह संख्या उन लोगों की है जिन्हें अस्पताल पहुंचाना पड़ा. ग्राउंड पर घायल और ठीक होने वालों की संख्या इससे काफी ज्यादो हो सकती है. पर ये आंकड़े अमेरिका के हैं. हमारे यहां अभी इस तरह के आंकड़े जुटाने का रिवाज नहीं है. यह आंकड़े पिछले वर्ष के मुकाबले 20 फीसद ज्यादा थे. कोविड को इसका कारण माना जा रहा है. इस पर राजनीति करने की कोशिश करना, चिता के कोयले पर भुट्टे सेंकने जैसा है. भाजपा के जिम्मेदार महामंत्री ने कहा कि घरघोड़ा से रायगढ़ का खराब रास्ता मौत का कारण बना. जिम्मेदारों को नोटिस दो. एकदम सही कहा. सड़कें पब्लिक के पैसे से बनती हैं. इसमें किसी तरह का कोई समझौता नहीं होना चाहिए. कमीशनखोरी इसकी एक बड़ी वजह है. पर ये सड़क के अनुपयोगी होने की इकलौती वजह नहीं हैं. बिना बात की रैलियां, जुलूस और बेतरतीब बारातों के कारण भी सड़कें बाधित होती हैं. उनपर भी रोक लगनी चाहिए. वैसे जिम्मेदार महामंत्री ने एक मांग और की है. 50 लाख रुपए और सरकारी नौकरी की. रुपए तो समझ में आते हैं पर सरकारी नौकरी क्या कोई गिफ्ट आइटम है?
गुस्ताखी माफ: चिता के कोयले पर भुट्टा सेंकने की फितरत
