-दीपक रंजन दास
लाउडस्पीकर का आविष्कार लगभग 150 साल पहले हुआ. क्या इससे पहले हिन्दू नहीं थे? क्या इससे पहले धर्म नहीं था? अगर था तो लाउड स्पीकर या डीजे, धर्म और संस्कृति का हिस्सा कैसे हो गये? देर रात तक सार्वजनिक रूप से शोर-शराबा करना किसी भी समाज के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता. सभ्य समाज के लिए तो कतई नहीं. पर आस्था और पूजा पाठ के नाम पर इन दिनों देश में यही हो रहा है. इसकी जड़ों में है चंदा संस्कृति. पहले लोग विनम्रता पूर्वक चंदा मांगा करते थे. देवी प्रतिमा मंदिरों में ही गढ़ी जाती थी. छोटे-छोटे बच्चे प्रतिमा निर्माण की पूरी प्रक्रिया देखते थे. पूजा पाठ में लोगों की भक्ति और आस्था दिखाई देती थी. 1970 के दशक तक पूजा पंडालों में सुबह-सुबह श्रद्धालु जुटने लगते थे. बांस के बैरीकेड के पीछे हाथ जोड़कर खड़े रहते थे. अंजलि देने तक वे इसी तरह खड़े रहते. प्रसाद ग्रहण करने के बाद भी वे पंडाल में ही जमे रहते. दोपहर को भोग प्रसाद मिलता था और फिर वे घर जाकर थोड़ा विश्राम करते थे. शाम को देवी दर्शन के लिए अन्यान्य पंडालों में जाते थे. संध्या आरती में ‘धुनुची नाचÓ और रात को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते थे. इसमें ऐतिहासिक कथाओं पर आधारित नृत्य नाट्य शामिल होता था. मंच पर स्थानीय कलाकार भी अपनी प्रस्तुतियां देते थे. चंदे की राशि से बस इतना ही हो पाता था. पर इधर चंदा देने वालों की संख्या बढ़ी. चंदे की राशि का दुरुपयोग शुरू हो गया. चंदा देने वालों और चंदा वसूलने वालों का बोलबाला हो गया. भव्यता के नाम पर चंदे की राशि का जो दुरुपयोग शुरू हुआ, वह अब नासूर बनने लगा है. आज सार्वजनिक पूजा के नाम पर ही कालोनी वासियों की रूह कांप जाती है. इसकी शुरुआत हो जाती है बिजली के दुरुपयोग से. पंडाल से लेकर दूर-दूर तक बिजली की रोशनी की जाती है. ट्रांसफार्मरों पर दबाव बढ़ता है. बिजली की आंखमिचोली शुरू हो जाती है. इसके साथ ही शुरू हो जाता है डीजे का आतंक. कान फाड़ू शोर शराबे से छोटे बच्चे, बुजुर्ग, विद्यार्थी और बीमार सब समान रूप से परेशान होते हैं. पंडालों में दिन भर सन्नाटा छाया रहता है. एक और बात है जो मन को कचोटती है. देव-देवी स्थापना से ज्यादा जोश और उत्साह उसे विदाई देने में दिखाई देती है. विसर्जन रैली पुलिस प्रशासन तक के लिए सिरदर्द बनी हुई है. राजनांदगांव के मोहला में भी यही सबकुछ हुआ. देर रात विसर्जन रैली निकाली गई. डीजे की तेज आवाज के साथ निकली इस रैली पर पुलिस ने कार्रवाई की. पुलिस ने डीजे बंद करवाया और हंगामा शुरू हो गया. कांग्रेस और भाजपा दोनों के नेता, कथित आस्था के समर्थन में सड़क पर बैठ गए. रात्रिकाल तो राक्षसी प्रवृत्तियों के लिए सुरक्षित है. तो क्या आस्था और संस्कृति के नाम पर राक्षसी प्रवृत्तियों को जगाया जा रहा है? आस्था, सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए समाज को ही कुछ करना होगा.
